ऋषि कश्यप की तपोभूमि वो
सूफी मीर की साधना धाम
हिमालय की मुकुट सी शोभा
मुख सौन्दर्यमयी ललाम .
लेकिन दर्द की गहरी रेखा
भय विषाद में जीवन होता
प्रताड़ना निरंतर है जारी
रक्त सदा ही बहता रहता.
घन अवसाद का भारी है
अपनों को खोता परिवार
मिट जाये ये शाप व्यथा का
बरसे ना यूं अश्क बेजार.
सलज शेफाली खिले जो हंसकर
पुलक-पुलक कर गाये उर
मुस्काये बासंती रजनी
मधुमास सुखद भर आये घर.
निखर उठे सौंदर्य सलोना
मस्त सुहाना दिन फिर आये
अब ना हो कोई पुलवामा
मुग्ध मधुर कश्मीर हो जाये.
भारती दास ✍️
सहमे सतीसर की त्रासदी का सजीव चित्रण।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
ReplyDeleteसुंदर प्रार्थना
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
Deleteबहुत सुंदर रचना,
ReplyDeleteधन्यवाद मधुलिका जी
Deleteआमीन ...
ReplyDeleteप्रार्थना सी रचना ... काश्मीर के साथ साथ पूरा भारत महके ...
धन्यवाद सर
ReplyDeleteआशा और विश्वास जगाती प्रेरक रचना ।
ReplyDeleteधन्यवाद जिज्ञासा जी
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