विश्व पटल पर सबने कह दी
अपने मन की वेदना सारी
काल ने कैसे छीना सबसे
इस धरती की रचना प्यारी.
दुख सागर में डूबा मन था
भीगे नयनों में थी पीड़ा
बागों में सहमी कलियां थी
मुरझाया था कण-कण सारा.
वो राग भरी स्वर की लहरी थी
थी कोकिल-कंठी गीतों की गूंज
सुर-सुन्दरी की वो तनया थी
तप संयम की ज्योति-पूंज.
अधर-अधर पर गुंजित होगा
उनके मधुर गीतों का गान
अमर रहेगी हर इक उर में
भारत की पुत्री सुबहो शाम.
अंतिम सत्य यही जीवन का
जो आया है वह जायेगा
चिर निद्रा में सो जाने पर
कर्म ही परिचय रह जायेगा.
भारती दास ✍️
बागों में सहमी कलियां थी
ReplyDeleteमुरझाया था कण-कण सारा.
वो राग भरी स्वर की लहरी थी
थी कोकिल-कंठी गीतों की गूंज
सुर-सुन्दरी की वो तनया थी
तप संयम की ज्योति-पूंज.
अधर-अधर पर गुंजित होगा
उनके मधुर गीतों का गान
अमर रहेगी हर इक उर में
भारत की पुत्री सुबहो शाम.
हृदय स्पर्शी श्रृद्धांजलि
बहुत सुंदर सृजन।
बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी
ReplyDeleteलता जी के लिए सुंदर श्रद्धा सुमन अर्पित किए हैं आपने
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteलता जी को आपने बहुत ही अच्छी श्रद्धांजलि दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteसुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteलता जी और इनके साथ कर्म के महत्त्व को बताती सुन्दर रचना है ...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteलता जी को भावभीनी श्रद्धांजलि... नमन ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteसुंदर! नमन!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
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