Thursday, 10 February 2022

कर्म ही परिचय रह जायेगा

 विश्व पटल पर सबने कह दी

अपने मन की वेदना सारी

काल ने कैसे छीना सबसे

इस धरती की रचना प्यारी.

दुख सागर में डूबा मन था

भीगे नयनों में थी पीड़ा

बागों में सहमी कलियां थी

मुरझाया था कण-कण सारा.

वो राग भरी स्वर की लहरी थी

थी कोकिल-कंठी गीतों की गूंज

सुर-सुन्दरी की वो तनया  थी

तप संयम की ज्योति-पूंज.

अधर-अधर पर गुंजित होगा

उनके मधुर गीतों का गान

अमर रहेगी हर इक उर में

भारत की पुत्री सुबहो शाम.

अंतिम सत्य यही जीवन का

जो आया है वह जायेगा

चिर निद्रा में सो जाने पर

कर्म ही परिचय रह जायेगा.

भारती दास ✍️


14 comments:

  1. बागों में सहमी कलियां थी
    मुरझाया था कण-कण सारा.
    वो राग भरी स्वर की लहरी थी
    थी कोकिल-कंठी गीतों की गूंज
    सुर-सुन्दरी की वो तनया थी
    तप संयम की ज्योति-पूंज.
    अधर-अधर पर गुंजित होगा
    उनके मधुर गीतों का गान
    अमर रहेगी हर इक उर में
    भारत की पुत्री सुबहो शाम.
    हृदय स्पर्शी श्रृद्धांजलि
    बहुत सुंदर सृजन।

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी

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  3. लता जी के लिए सुंदर श्रद्धा सुमन अर्पित किए हैं आपने

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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  4. लता जी को आपने बहुत ही अच्छी श्रद्धांजलि दी।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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  5. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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  6. लता जी और इनके साथ कर्म के महत्त्व को बताती सुन्दर रचना है ...

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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  7. लता जी को भावभीनी श्रद्धांजलि... नमन ।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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  8. बहुत बहुत धन्यवाद

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