ऋतुपति के घर में
पुष्प की अधर में
कोयल की स्वर में
प्रणय की पुकार है.
उषा की अरूणिमा
सौन्दर्य की प्रतिमा
अनुराग की लालिमा
जीवन की उदगार है.
वसुधा अभिराम है
पीत परिधान है
सलज सी मुस्कान है
हर्ष की खुमार है.
अनंत ही रमणीय
दिग-दिगंत है प्रिय
छवि नवल सी हिय
उमंग की बहार है.
नीड़ में युगल विहग
नेह से बैठे सहज
निहारते नयन पुलक
मृदुल सी मनुहार है.
भारती दास ✍️
बहुत ही सुंदर सरस सृजन।
ReplyDeleteऋतुपति के घर में
पुष्प की अधर में
कोयल की स्वर में
प्रणय की पुकार है.
उषा की अरूणिमा
सौन्दर्य की प्रतिमा
अनुराग की लालिमा
जीवन की उदगार है... वाह!
सादर
धन्यवाद अनीता जी
Deleteनीड़ में युगल विहग
ReplyDeleteनेह से बैठे सहज
निहारते नयन पुलक
मृदुल सी मनुहार है.
वाह अनुपम! मन को विभोर करता सृजन।
सस्नेह
धन्यवाद कुसुम जी
Deleteउषा की अरूणिमा
ReplyDeleteसौन्दर्य की प्रतिमा
अनुराग की लालिमा
जीवन की उदगार है.
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब मनभावन सृजन।
धन्यवाद सुधा जी
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबधाई
धन्यवाद सर
Deleteआग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
ReplyDeleteआभार
जी सर बिल्कुल
Deleteप्रकृति के रँगों को समेटे हुवे भाव ...
ReplyDeleteधन्यवाद सर
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