Friday, 8 May 2020

कर्महीनता दुर्योधन की

संजीदगी जिसने निभाई
जो संजीदा हुआ यहां
उसका मकसद उसका जीना
प्रवाह प्रकाश का हुआ यहां.
अपमान-मान-अभिमान त्यागकर
धीरता को अपनाया है
ढाल एकता का बनाकर
विषाद गंभीर मिटाया है.
धीरज चित्त से अन्न उगाता
स्थिर होकर देखता बाट
श्रम के साधक पुलकित हो कर
सहयोग सिखा देता है विराट.
ध्येय हो कोई लक्ष्य हो कैसा
कार्य धैर्य से करना है
संजीदगी का सुंदर भूषण
खुद में धारण करना है.
मदिरा की खुल गई दुकानें
मौत के नाम जाम हुआ है
महीनों की जो थी तपस्या
पल भर में ही नाकाम हुआ है.
धीर गंभीर संवेदन मन में
सुख सिमट कर आता है
विकृत होती मानसिकता से
प्रीत विकट बन जाता है.
कर्महीनता दुर्योधन की 
स्पर्धाओं से रहा अधीर
दुर्बलता थी धृतराष्ट्र की
मोह को समझा था गंभीर.
भारती दास



11 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 11 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद

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  3. पुत्र के मोह में कुल का सर्वनाश करने वाले पिता की भाँति अपनी लालसा की महत्वाकांक्षा में मनुष्य सही गलत का भेद भूल जाता है।
    भारती जी सुंदर संदेशात्मक रचना।
    सादर।

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    1. धन्यवाद श्वेता जी

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  4. वाह!खूबसूरत सृजन ।

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  5. धन्यवाद शुभा जी

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  6. धन्यवाद शुभा जी

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  7. बहुत ही सुंदर एवं मार्मिक अभिव्यक्ति आदरणीया दीदी.

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  8. बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी

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  9. Wow apne ye bahut khub Vachan Likhe hai.

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  10. धन्यवाद उमेश जी

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