Monday 4 May 2020

भारत मां के दिव्य भाल वो

सृष्टि के हैं पुरातन पुरुष
वे धरती के हैं प्रत्यक्ष देव
बहती रहती जलस्रोत की धारा
है जहां औषधियां रखी सहेज.
वैदिक ऋषियों के संरक्षक
श्वेत शुभ्र अनुदान का गेह
वनों के बीच पली संस्कृतियां
जो कहती है कई कथा अनेक.
साहस-शौर्य का मिशाल बनकर
जो नीलगगन को गले लगाते
हरी भरी धरती के मन में
देश के हित का भाव जगाते.
विशाल वक्ष को रखनेवाला
देख शहादत थका बहुत है
जां बाजों की बलिदानों से
अश्रु रक्त बन बहा बहुत है.
घर में बाहर में जगह-जगह में
जो राष्ट्र की आन बचाते हैं
लाल रंग की कुर्बानी से
विजय की ताज सजाते हैं.
होकर नि:शब्द सर्वस्व-हीन
जो मूक कहानी कह जाते हैं
कोटि-कोटि नमन उन्हें ही
ये भूमि बासी कर पाते हैं.
भारत मां के दिव्य भाल वो
मौन विवश चुप रह जाते हैं
अपने शूरवीर पुत्रों का
शोक-संताप भी सह जाते हैं.
भारती दास





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