परवानों को खूब पता है
जलती लौ है मौत की राह
फिर भी जलकर मर जाते हैं
नही करते खुद की परवाह.
पहचान बहुत है फूल-शूल की
पर कंटक पथ से ही चलते हैं
असहाय-निरुपाय मनुज तब
मार्ग शलभ जैसी चुनते हैं.
नीति-अनीति जानते सारे
अनभिज्ञ नहीं होते अंजान
होड़ ही होड़ में बढ जाते हैं
सोचते नहीं घातक परिणाम.
आत्मज्ञान भी इक शक्ति है
जो होता है सबके पास
काल-अनुरूप स्व-निर्णय से
बन जाते है बेहद खास.
अंकपाश में शमा को भरकर
प्रेम अथाह कर जाता है
पल दो पल में ही शलभ ये
अनुराग सिद्ध कर जाता है.
भारती दास ✍️