Thursday, 31 December 2015

नववर्ष आपको मंगलमय हो



नव-प्रभात की किरणें आई
मन व गात में पुलकन छाई
सद्चिन्तन में, संवेदन में
जन-पीड़ा से द्रवित ह्रदय हो
नव वर्ष आपको मंगलमय हो.
अतीत के क्षण अब है यादों में
स्वप्न भविष्य के है आँखों में
धरा-गगन में, मस्त पवन में
हर शय में करुणा-विनय हो
नव वर्ष आपको मंगलमय हो.
अक्षर बने अमृत-कलश
ज्ञान-घट छलके वरबस
पथ में,आँगन में,अंतर में
ज्योति की इक दीप उदय हो
नव वर्ष आपको मंगलमय हो.
तन से तपस्वी मन से मनस्वी
जीवन में बन जाये यशस्वी
हंसी  के क्षण में,ख़ुशी हो तन में
एहसास में पल-पल सदा अभय हो
नव वर्ष आपको मंगलमय हो.    
भारती दास ✍️

Wednesday, 23 December 2015

क्यों दर्द हमें बेजार मिला



तू कहाँ चला तू कहाँ चला
क्यों सबसे यूँ मुख मोड़ चला
क्या खता हुई ये बता जरा
क्यों जग से नाता तोड़ चला
तू कहाँ चला ...................
तू छाँव भरा तरुवर पावन
तुझसे ही सजा था घर-आँगन
ना आंधी उठी ना शोर मचा
क्यों जीवन को झकझोर चला
तू कहाँ चला ......................
अब किस पर गर्व करेंगे हम
सूने से घर में जीयेंगे हम
ना तुझ पर कोइ जोर चला
क्यों बेदर्दी से छोड़  चला
तू कहाँ चला ..................
क्यों व्यर्थ हुआ पूजा-अर्चन
क्यों विफल हुआ संध्या-वंदन
ना रात ढली ना दिन निकला
क्यों दर्द हमें बेजार मिला
तू कहाँ चला तू कहाँ चला.         

                  

Friday, 11 December 2015

कल्पने तू पंख पसार



कल्पने तू पंख पसार
साथ तेरे हम भी विचरें  
ख्वाबों में इक बार,
कल्पने तू पंख पसार.......
नील गगन में पिता मिलेंगे
भाई से हम बातें करेंगे
नैन हमारे छलक परेंगे
खुशियों से बेजार , कल्पने तू......
बादलों से जा मिलेंगे
बूंदे बनकर आ पड़ेंगे  
सूखे वसुधा पर गिरेंगे
भर उठेंगे दरार , कल्पने तू........
जग हंसी मेरा उड़ाये
सपने भ्रम के टूट जाये
अपने सारे रूठ जाये
गम नहीं बेकार , कल्पने तू........
आशायें रब से रखेंगे
ना निराशा से डरेंगे
व्यर्थ यूँ ही ना फिरेंगे
हर गली हर द्वार ,
कल्पने तू पंख पसार.          

Friday, 4 December 2015

चेन्नई का महा सैलाब



आसमान से बरसी आफत
जन जीवन की बनी मुसीबत
त्राहि-त्राहि का स्वर है कम्पित
कठोरता कुदरत की दर्शित
मेघ ऐसे बरस रहे थे
जैसे दुश्मन पर गरज रहे थे
सलिल रातभर बहते-बहते
प्रलय मचाया घर और रस्ते
वारिधि हुई परिधि-हीन
दिन और रात हुए गमगीन
देव हुए हैं अंधे-बहरे
क्रूर कहर के मारे थपेड़े
देख मौत का वीभत्स तांडव
पल-पल जूझ रहे हैं मानव
अपनों से अपने छूट रहे हैं
दयनीय होकर बिलख रहे हैं
परिस्थितियां वश में नहीं होती
जीवन में चुनौतियाँ ही बनती
उस जटिल क्षण का दुलार
बन जाती संजीवनी की धार
जगा रहा है ज्ञान हमारा
दुर्गम पल में मिले सहारा
उन चेहरे पर मुस्कान सजाना
उन पीड़ितों की सहायता करना
मानवता को बनाये रखना
संवेदना को जगाये रखना
प्राण डालकर जो संकट में
प्राण बचाते जो झटपट में
उन्हें दुआ है अंजुरी भरके
अरमान हो पूरे सारे उर के.
भारती दास ✍️