Friday 4 December 2015

चेन्नई का महा सैलाब



आसमान से बरसी आफत
जन जीवन की बनी मुसीबत
त्राहि-त्राहि का स्वर है कम्पित
कठोरता कुदरत की दर्शित
मेघ ऐसे बरस रहे थे
जैसे दुश्मन पर गरज रहे थे
सलिल रातभर बहते-बहते
प्रलय मचाया घर और रस्ते
वारिधि हुई परिधि-हीन
दिन और रात हुए गमगीन
देव हुए हैं अंधे-बहरे
क्रूर कहर के मारे थपेड़े
देख मौत का वीभत्स तांडव
पल-पल जूझ रहे हैं मानव
अपनों से अपने छूट रहे हैं
दयनीय होकर बिलख रहे हैं
परिस्थितियां वश में नहीं होती
जीवन में चुनौतियाँ ही बनती
उस जटिल क्षण का दुलार
बन जाती संजीवनी की धार
जगा रहा है ज्ञान हमारा
दुर्गम पल में मिले सहारा
उन चेहरे पर मुस्कान सजाना
उन पीड़ितों की सहायता करना
मानवता को बनाये रखना
संवेदना को जगाये रखना
प्राण डालकर जो संकट में
प्राण बचाते जो झटपट में
उन्हें दुआ है अंजुरी भरके
अरमान पूरे हो सारे उर के.

     

          

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