Saturday, 22 March 2025

सद्भावों की प्रेरणा देता


कवि प्रेम की कल्पना करता

सर्वदा शुभ कामना करता 

कर्तव्यों की अवधारणा करता 

सद्भावों की प्रेरणा देता।

देश की गौरव गान सुनाता 

मातृभूमि का मान बढ़ाता 

नारायण की महिमा गाता

विद्या कौशल ज्ञान सिखाता।

कहते कवि हरदम यही  

दुर्बल दशा ना हो कभी 

आश और विश्वास की

जलता रहे दीपक यूँही।

विषपूर्ण ईर्ष्या हो नहीं 

सद्गुण भरे मन हो सभी 

जीत श्रम का हो सही 

हरपल हँसे नभ और मही।

भारती दास ✍️ 

Thursday, 13 March 2025

सृष्टि बौरायी है उन्मत-उमंग

 


शीतल सुगंध पवन बहे मंद

सृष्टि बौरायी है उन्मत-उमंग

निकला लगाने को फागुन अलबेला

उषा के माथे पर रोली का रेला।

उड़ता है नभ में रंगों का घेरा 

कितना है सुन्दर जग का नजारा

चारों ओर शोर है मस्ती का दौर है

शिकवा-शिकायत का कहीं नहीं ठौर है।

विकृत उपासना वासना की भावना

जल उठी होलिका में व्यर्थ सब कामना

हास-परिहास हो उत्सव ये खास हो

रक्त नहीं रंग की स्नेहिल सुवास हो।

ह्रदय की भूमि पर मधुर सा साम्य हो

प्रेम की पुकार पर इठलाता भाग्य हो

सुन्दर मन-मीत हो प्रेम के गीत हो

होली के रंग में सच्ची सी प्रीत हो।

क्लेश-द्वेष भूलकर, छोड़कर गुमान 

हँसने-हँसाने का होली है नाम 

उत्सव ये प्यारा सा ना हो बदनाम 

जब-तक है जीवन,जी लें तमाम।

‌‌भारती दास✍️

Friday, 7 March 2025

नारी चेतना


जब तक थी वो घर के अंदर

दुनिया कोसती रहती अक्सर

आज दहलीज के पार है

करती सपने साकार है ।

जमीन अपनी तलाशती हुई

साहस का परिचय देती हुई

हर -क्षेत्र में महिला छाई आज

उनसे जाग्रत हुई समाज ।

पराबलंबन छोड़ चुकी है 

तन और मन को जोड़ चुकी है

नारी है सुन्दरतम रचना 

ना कोई क्षोभ ,ना कोई छलना।

जिस घर में नारी का पूजन

उस घर को प्रभु करते वंदन

अहं छोड़ कर उसे अपनाये

अपना घर जन्नत  सा बनाये ।


भारती दास ✍️

Tuesday, 25 February 2025

हे अखंड शिव आनंद वेश

 


दिव्य मनोहर आकृति वाले 

श्यामल-गौर का संधि वरण है 

जैसे पतझड़ बसंत मिलते हैं 

अमृत-विष का आज मिलन है।

भावमयी प्रतिमा की माया 

भक्त नेत्रों से रहे निहार 

युगल-चरण की शक्ति साधना 

प्राणों को देते आधार।

हे सर्वमंगले हे प्रकाशपूंज

करते हैं नमन पद में वंदन

हे अखंड शिव आनंद वेश 

कर मोह नाश, कर पाप शमन।

भारती दास ✍️ 

महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं

Saturday, 22 February 2025

महाकुंभ ये संवेदन का


करें प्रार्थना हम-सब मिलकर

सुधा सलिला शुभ संगम का

गंगा-यमुना-सरस्वती है 

मोक्ष साधना जन तन मन का।

बूंद बूंद में मिला है अमृत

पान किया जिसने जलकण का

देव से अक्षय दान मिला है 

अजर अमर गंगा पावन का।

अंतस का सब भेद मिटाकर 

आनंद मनाये सौम्य प्रेम का

समदर्शी बनकर आया है 

महाकुंभ ये संवेदन का।

सत्य सनातन झूम रहा है 

छलक उठा है अश्रु नयन का

पुष्प की बारिश मनभावन है 

संत जनों के अभिनंदन का।

प्रयाग राज के पुण्य भूमि पर 

उत्साह चरम है साधू मिलन का

अचरज में है सारा जग ये 

देख समर्पण के दर्शन का।

सिंह नाद के जैसा गरजकर 

लक्ष्य निभाया तरुण धर्म का

श्रद्धा दीप जलाकर निकला 

तोड़ के सारे भ्रम उलझन का।

भारती दास ✍️

Monday, 17 February 2025

स्मृति में शतरंग समाई


स्मृति में शतरंग समाई

स्वर्ण प्रात फिर मुस्काई है 

नवल नेह में बंधे थे आज

रमणी सी रजनी शरमाई है।

तीस बसंत आये जीवन में 

अनगिनत बीती पतझाड़ें

हर्षाई है देख विभावरी

विधु चांदनी की मनुहारें।

अवनी की उन्मुक्त हंसी से 

मगन गगन का मुग्ध नयन है 

मनमोहक अरुणिम सी प्राची

सुंदर सुरभित मनभावन है।

मेरी आंखों की मृदु रातें

मूक मधुर ताने बुनती है 

सजल कपाल को सहलाकर

निज अंकों में भर लेती है।

भारती दास ✍️ 

Tuesday, 21 January 2025

धन्य है भारत भूमि महान

 

छुक-छुक करती भागती रेल

संग में डिब्बों से करके मेल

नदी-पहाड़ खेत-खलिहान 

हरी सी धरती ललित ललाम

धन्य है भारत भूमि महान।

भेड़ बकरियां दौड़ती आगे 

गाय भैंस घोड़े भी भागे 

नीम बरगद पीपल आम

बाजरा गेहूं धान तमाम

धन्य है भारत भूमि महान।

गांवों की कच्ची  पगडंडी 

सांझ को बहती हवाएं ठंढ़ी

पंख फैलाए नाचते मोर

खेलते बच्चे मचाते शोर

दृश्य मनोरम मन अभिराम 

धन्य है भारत भूमि महान।

अच्छी है रेलों की सवारी 

सहयात्री की बातें न्यारी 

भिन्न है भाषा, भिन्न है गाम

भिन्न है चेहरे भिन्न है नाम

धन्य है भारत भूमि महान।

अनगिनत झांकी दिखलाती

पराव अनेकों आती जाती 

लक्ष्य नहीं जबतक आ जाती 

रेल ना थकती ना ही रुकती

लगती है प्यारी गति-विराम

धन्य है भारत भूमि महान।

भारती दास ✍️

Tuesday, 14 January 2025

उड़ गयी पतंगें जहां दिवाकर


अपने मृदु पंखों को फैलाकर

उड़ गयी पतंगें जहां दिवाकर 

अधखुली पलकों से रही निहार

दूर मैं आई क्षितिज के पार।

इठलाती नखरे दिखलाती

मुस्काती-अंगराई लेती

अरमान अनेकों लेकर जाती

गगन में सारे रंग सजाती।

जिस पवन के झोंके ने 

गतिमान होने का मंत्र दिया 

वही प्रचंड वायु का प्रहार 

भू पर औंधे मुंह गिराया।

व्यथित होकर आंसू बहाती 

देती अपना जीवन हार

उर में प्रिय का पुलक बसाकर 

मूंद लेती है दृग के द्वार।

भारती दास ✍️

Friday, 3 January 2025

नवल वर्ष शुभ अभिनंदन है


नवल वर्ष शुभ अभिनंदन है

मही आनंदित रहे सदा ही

यही कामना करता मन है....।

कर्म कौशल हो,पथ रोशन हो 

निर्मल-निर्भय दृष्टि-नयनहो

हंसे भवन यूं,हंसता सुमन है 

यही कामना करता मन है....।

शांति परम हो,दम संयम हो

सकल भुवन में दंभ-दमन हो

तम-घन हरता अरूण-किरण है 

यही कामना करता मन है....।

सौभाग्य चरम हो,आरोग्य बदन हो

स्वप्न विमल हो, धवल चिंतन हो

पावन लगता प्रभु- वंदन है 

यही कामना करता मन है....। 

भारती दास ✍️

Tuesday, 24 December 2024

जो धरा धाम से चले गये


जो धरा धाम से चले गये

वो सियाराम के हो ही गये....

हम जिनकी याद में रोते रहे 

वो प्रभु की गोद में सोते रहे 

कोई अमर नहीं दिन रात हुये

वो सूदूर क्षितिज में खो ही गये

जो धरा धाम से चले गये....

प्रहर दिवस कितने बीते 

वो देखें नहीं पीछे मुड़ के 

नेत्रों से झरझर नीर बहे

हतभाग्य बने असहाय रहे

जो धरा धाम से चले गये....

काल जाल बुनता है अपना

छीन के सारा सुख का सपना 

न आनंद रहा न विनोद रहा 

विक्षोभ अनंत अथाह रहा

हम सबने दर्द अनेक सहे

जो धरा धाम से चले गये....

भारती दास ✍️ 


भाई जी की
ग्यारहवीं बरसी पर अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि 🙏🙏