Friday, 30 July 2021

दोस्त मन के होते चिकित्सक

 


कहते ज्ञानी कवि विशारद
दोस्त मन के होते चिकित्सक
अवसाद मिटाते होते सहायक
दूर भगाते गम के सायक.
रखते विचार भावना शुद्ध
करते नहीं वो पथ अवरुद्ध
साझा करते सुख और दुख
मुश्किल में नहीं होते विमुख.
आनंद-हंसी बरसाते हैं
अवगुण तमाम अपनाते हैं
पलकों से पीड़ा हरते हैं
पुलकित अंकों में भरते हैं.
मुसीबत में देते हैं साथ
गिरने पर नहीं छोड़ते हाथ
करते सदा ही हित की बात
मित्र नहीं देते कभी घात.
लेकिन बदल गया परिवेश
मित्रों की पहचान और वेश
सच्ची मित्रता नहीं है शेष
परिभाषा अब बनी विशेष.
टिका स्वार्थ पर है ये रिश्ता
कुत्सित हो गई है मानसिकता
चित्त का वो सुंदर कोमलता
सिमट गई मित्र की पावनता.
भारती दास ✍️

Friday, 23 July 2021

गुरु दीप की ज्योति जैसे

 

गुरु ब्रह्म हैं गुरु रूद्र हैं

गुरु ईश अवतार हैं

गुरु की महिमा सबसे व्यापक

गुरु ज्ञान साकार हैं.

गुरु बोध हैं गुरु ध्यान हैं

गुरु सकल संस्कार हैं

गुरु दीप की ज्योति जैसे

हरते मन के विकार हैं.

गुरु वर्ण हैं गुरु सृजन हैं

गुरु स्वरूप भगवान हैं

गुरु तपन हैं गुरु नमन हैं

गुरु मोक्ष का नाम हैं.

कुंभकार का रुप गुरु हैं

गुरु श्रेष्ठ सम्मान हैं

जीवन सीख से पोषित करते

हम करते उन्हें प्रणाम हैं.

भारती दास ✍️

Friday, 16 July 2021

यह जीवन एक कल्पवृक्ष है

  यह जीवन एक कल्पवृक्ष है

 जो दुर्लभ रुप से मिलते हैं

"ईश्वर अंश जीव अविनाशी"

ऋषि मुनि भी कहते हैं.

अद्वितीय सी कृति ब्रह्म की

अद्भुत कार्य सब करते हैं

लक्ष्य अगर ना हो जीने का

पशुवत जीवन जीते हैं.

सबसे अलग विशिष्ट बनाते

उपलब्धि वो पाते हैं

बहुमूल्य सा हर एक पल को

उम्मीद बना हर्षाते हैं.

आत्मदेवता की अराधना

जो निर्मल मन से करते हैं

स्वस्थ चिंतन-मनन की शक्ति

उनमें सहज ही रहते हैं.

मात्र स्वार्थ वृत्ति के कारण

वो दानव कहलाते हैं

अहंकार का साधन बनकर

चैन कभी ना पाते हैं.

अनंत देव हैं सर्वश्रेष्ठ है

निरोगी काया का उपहार

भगवान सदा ही खुश होते हैं

बरसाते उनपर उपकार.

भारती दास ✍️


Saturday, 3 July 2021

स्वप्न सुनहरे सजाने चली है


मृदुल हास से विमल आस से
स्वप्न सुनहरे सजाने चली है
संघर्ष अनंत था श्रांत वर्ष था
हर्ष का दीप जलाने चली है.....
मौन मनन करती थी हरपल
पाठ गहन पढती थी पलपल
पर अधीर विचलित होती थीं
करुण नयन चिंतित होती थी
अनंत फ़िक्र सब दूर हटा कर
मृदु हृदय हरसाने चली है
स्वप्न सुनहरे सजाने चली है.....
चिकित्सा के विस्तृत आंगन में
मुदित मगन पुलकित हो मन में
नव अवसर को अंक लगाकर
अरमानों के पंख लगाकर
खुशी-खुशी से कर्म के पथ पर
निज कर्तव्य निभाने चली है
स्वप्न सुनहरे सजाने चली है.....
मानवता की सेवा करना
स्नेह सरलता सदा ही रखना
कदमों में यश और वैभव हो
चिर सुरभित जीवन का पथ हो
नई उमंग से उत्साहित हो
मधुर अधर मुस्काने चली है
स्वप्न सुनहरे सजाने चली है.....
भारती दास ✍️

Friday, 25 June 2021

जब सुख संध्या घिर आती है


जब सुख संध्या घिर आती है

अनुराग-राग बरसाती है

जब सुख संध्या घिर आती है....

सूर्य किरण ढल जाती थककर

सांझ स्नेह बरसाती सजकर

अरुनाभ अधर मुस्काती है

जब सुख संध्या घिर आती है....

प्रफुल्ल उरों से धूल उड़ाते

संग कृषक के पशु घर आते

आह्लाद सूकून भर लाती है

जब सुख संध्या घिर आती है....

निशा नशीली आती मनाने

भाल चूम लगती हर्षाने

रक्ताभ नजर इठलाती है

जब सुख संध्या घिर आती है....

भारती दास ✍️


Saturday, 19 June 2021

दृष्टि फलक पर टिक जाती है

 

अब पिता जी नही है साथ

सहेज रखी है स्नेह सौगात

गम कड़वे अवसाद भूलाकर

अपने सारे दर्द छुपाकर

करते थे परवाह सदा ही

दिखाते हरदम राह खुदा सी

विधि ने छीना पिता की साया

आठ वर्ष होने को आया

मन कांपा था दिल दहला था

उनके बिना जब दिवस ढला था

दिन अनेकों गुजर गये हैं

यादें हृदय में ठहर गये हैं 

क्लेश दंश सब मोह को तजकर

छोड़ चले सबको पृथ्वी पर

शाश्वत सत्य में लीन हुये थे

पुनीत गंगा में विलीन हुये थे

गर्वित हो झुक जाता शीश

जैसे पिताजी देते आशीष

आंखें बहकर थक जाती है

दृष्टि फलक पर टिक जाती है.

भारती दास ✍️

Wednesday, 9 June 2021

ऐसे देवतरू को प्रणाम


छाया जिनकी शीतल सुखकर

मोहक छांव ललाम

ऐसे देवतरु को प्रणाम

खगकुल सारे नीड़ बनाते

पशु पाते विश्राम

ऐसे देवतरु को प्रणाम.....

ब्रह्मा शंकर हरि विराजे

साधक जहां पर मन को साधे

सच्चे निर्मल सुंदर चित्त से

पूजते लोग तमाम

ऐसे देवतरु को प्रणाम....

सुहाग सदा ही रहे सलामत

हो आंचल में हर्ष यथावत

पुष्प दीप प्रसाद चढ़ाकर

गाते मंगल गान

ऐसे देवतरु को प्रणाम....

सत्यवान को प्राण मिला था

नव जीवन वरदान मिला था

अक्षय सौभाग्य जहां पर पाई

नारी श्रेष्ठ महान

ऐसे देवतरु को प्रणाम

भारती दास ✍️


वट सावित्री पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं

 


Tuesday, 1 June 2021

अवसर वादी बनकर ही

 

एक व्यक्ति नदी किनारे 

कुटिया बनाकर रहता था़

नियमित रूप से श्रद्धापूर्वक

पूजा साधना करता था.

देखते-देखते बढ गई ख्याति

अनुयायी बन गये हजार

धन-पैसा बढता ही गया

समाया उर में दूषित विकार.

गरीब उनको रास न आते

अमीरों से मिलता उपहार

सोना चांदी की चकाचौंध में

भूल गया मधुर व्यवहार.

समय के साथ वो वृद्ध हुआ

रोगग्रस्त हो उठा शरीर

मृत्यु के डर से भयभीत हुआ

होने लगा बेचैन अधीर.

चित्त सदा कोसता रहता

सदा ही धन का मान बढ़ाया

लोगों की आस्था से खेला

लोभ में सारा पुण्य गंवाया.

अवसर वादी बनकर ही तो

दुखियों को सताता रहा

चमत्कार के नाम पर

भावनाओं को ठगता रहा.

सारी तपस्यायें विफल हुई

आत्मबोध न पाया कभी

पश्चाताप के आंसू बनकर

मिथ्या आडंबर बहा सभी.

गलती का एहसास हुआ

फिर भक्ति में लीन हुआ

दुविधा मिटी हृदय से सारी

मुक्ति-पथ पर तल्लीन हुआ.

भारती दास ✍️



Saturday, 29 May 2021

गिला यही है भाग्य विधाता

 गिला यही है भाग्य विधाता

भाग्य कभी भी साथ न देता....

चलते संग-संग साथ ये सारे

दर्द अनेकों गम बहुतेरे

दृश्य विकट सा मन घबराता 

भाग्य कभी भी साथ न देता....

छुप-छुप रहती खुशी कहीं पर

मूंदती आंखें भागती छूकर

नैन विकल बस नीर बहाता

भाग्य कभी भी साथ न देता....

था धीरज और धैर्य का संगम

बढता रहा अब तक ये जीवन

संयम हरपल टूटता जाता

भाग्य कभी भी साथ न देता....

अंत तमस का दूर न होता

आश का सूरज उग न पाता

सांसों से ही हर इक नाता

भाग्य कभी भी साथ न देता.....

भारती दास ✍️


Tuesday, 25 May 2021

जन्म से ही उन्मुक्त जो बहती


अंधेरे हो या चाहे उजाले

सहम-सहम कर चलती सांसे

जन्म से ही उन्मुक्त जो बहती

वो स्पंदन भरती आहें.

उथल-पुथल सी मची हुई है

समय की बेबस धारे हैं

कुढ़ते खीजते वक़्त ये बीतते

विरान सी सांझ सकारे हैं.

द्वार-द्वार पर आंखें नम है

गम से भरे नजारे हैं

क्षुब्ध व्यथा से जूझ रहे हैं

टूटे जिनके सितारे हैं.

भव भय दूर नहीं होते हैं

संकट में तन मन सारे हैं

भूख प्यास से बिलखते अभागे

जो हुये अनाथ बेसहारे हैं

दुखी निराश हताश हृदय ने

संशय में हिम्मत हारे हैं.

विकल करुण निरीह की आशा

अब ईश्वर के ही सहारे हैं.

भारती दास ✍️.