Thursday, 21 July 2022

पावन है भोलेनाथ का सावन

 आत्मस्थित जो महादेव हैं

वही अघोर हैं वही अभेद हैं

वही पवित्र हैं वही हैं पावन

वही संहारक वही हैं जीवन

कहीं हर्ष है कहीं शोक है

विषम दशा में भूमि लोक है

गरल-पान कभी किये सदाशिव

थे द्वेष दंभ सब हरे महा शिव

जप-तप पूजा और अभिषेक

सदा ही करते भक्त प्रत्येक

सर्वत्र व्याप्त है जिनकी शक्ति

शव से बनते जो शिव की उक्ति

रूद्र का अंश है हर जीवात्मा

निराकार निर्लिप्त भावना

करते हैं नर-नारी साधना

अभय बनाते शिव-अराधना

मंजू मनोरथ पूर्ण हो सारे

चिन्मय आस्था रहे हमारे

पावन है भोलेनाथ का सावन

मंगलमय हो हर घर प्रांगण.

भारती दास ✍️


Tuesday, 12 July 2022

गुरु –पूर्णिमा- पूर्णता के प्रतीक

 

भारत को जगत-गुरु की उपमा दी जाती है क्योंकि उसने विश्व मानवता का न केवल मार्गदर्शन किया बल्कि अनगिनत आदर्शों को जीवन में उतारकर प्रेरणा का श्रोत बना .गुरु -शिष्य के परस्पर महान संबंधों एवं समर्पण-भाव द्वारा ज्ञान –प्राप्ति का विवरण ,शास्त्रों में स्थान-स्थान पर मिलता है .भगवान श्रीराम गुरु विश्वामित्र के हर आदेश का पालन प्राण से बढ़कर करते थे .परम आनंद भगवान श्रीकृष्ण भी  गुरु संदीपनी के आश्रम में हर छोटे –छोटे कार्य बड़े ही उत्साह के साथ करते थे . गुरु –भक्त आरुणि, गुरु के आदेश पर खुद को पूर्ण समर्पित कर दिये थे.ऐसे ही कई गाथाऐं हमें अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते है .गुरु को मानवी चेतना का मर्मज्ञ माना गया है. उनका प्रयास यही होता है कि डांट से पुचकार से तथा अन्यतर उपाय के द्वारा भी अपने शिष्य को हर दुर्गुण से निर्मल बना दे.प्राचीनकाल में गुरु के सानिध्य से शिष्यों को कठिनाइयों से संघर्ष करने की अपार  शक्ति होती थी.वार्तालाप-विश्लेषण के द्वारा उनमे चिंतन की प्रवृति जगती थी .साधना-स्वाध्याय से आत्मज्ञान की अनुभूति होती थी .वे ज्ञान,गुण व शक्ति के पुंज होकर निकलते थे .इसीलिए उनको भौतिक सुखों की नहीं कर्तव्य व सेवा की समझ की विकसित होती थी . गुरु-शिष्य का संबंध आध्यात्मिक स्तर का होता था .शिष्य के संबंध में उपनिषद्कार कहते हैं कि---हाथ में समिधा लेकर शिष्य गुरु के पास क्यों जाते थे .इसीलिए कि समिधा आग पकड़ती है .गुरु के ज्ञान भी जीती-जागती ज्वाला ही है .ज्ञान के अग्नि में तपकर वह भी ज्ञान-प्रकाश फैलानेवाले सिद्ध गुरु बने.गुरु जो कहे बिना कोई तर्क किये उस कार्य को करना साधना कहलाता है .गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं ----


"गुरु के वचन प्रतीत न जेहि
सपनेहूं सुख सुलभ न तेहि"

गुरु के निर्देशों का पालन करने वालों को,जी भरके गुरु का अनुदान मिलता है .श्रद्धा की  परिपक्वता, समर्पण की पूर्णता शिष्य में अनंत संभावनाओं के द्वार खोल देते हैं. संत कवीरजी ने कहा है -
"गुरु गोविन्द दोउ खड़े
   काके लागूं पाय
  बलिहारी गुरु आपनो
  गोविन्द दीयो बताय"

गुरु के द्वारा ही भगवान के अनंत रूप का दर्शन होता है .ईश्वर की कृपा जीवन में चरितार्थ होती है .यहीं से आरम्भ होता है “तमसो मा ज्योतिर्गमय”. यही महामंत्र सक्रिय व साकार रूप लेकर हमारे जीवन को सुन्दर और सुखद बनाते हैं .आज वैदिकयुग के सारे संस्कार में दोष आ गए हैं .गुरु शिष्य दोनों के ही आचरण पूर्णतः बदल गये हैं .शिक्षक अध्ययन को विक्रेता बना कर बेच रहे हैं ,छात्र उसे मुहमांगी मूल्य पर खरीद रहे हैं.आज शिक्षा पूर्ण-पेशा बन चुका है.एक दुसरे के प्रति न मान है न सम्मान है न शुद्ध आचरण है .ये छात्र जो जिज्ञासु हो कर शिक्षक के चरणों में नत हो सकते थे, ज्ञान-पिपासु हो कर उनके संवेदना में बह सकते थे वो पूरी परम्परा ख़त्म हो रही है. आज फिर से वैदिकयुग की पुनरावृति की आवश्यकता है .समाज के अविष्कारक शिक्षक ही होते हैं जो छात्रों में नैतिक,सामाजिक एवं अध्यात्मिक मूल्य को घोलते हैं जिससे वो जीवन जीने की कला अनिवार्य रूप से सीखते हैं. ये पावन दिवस तम को हरने वाली गुरु-पूर्णिमा
सबके जीवन में शुभता भरे. क्यों न आज से ही स्वनिर्माण की शुरुआत करें.


          आदर्श गुरु ----

गुरु वही जो तम को हरते

श्रेष्ठ सदा भगवन से होते

                  गहन-मनन चिंतन ही करते            

                   ज्ञान-पुंज वो हरदम होते.

        आदर्श शिष्य --------

जो सदा जिज्ञासु होते

ज्ञान-पिपाशु होकर पीते

गुरु का जो करते सम्मान

 कहलाते वो शिष्य महान.

भारती दास ✍️

Thursday, 30 June 2022

वो भगवान के रूप हैं केवल

 आभार व्यक्त करते हैं उनको

जिनके सेवा से मिलता जीवन

रात-दिन और आठों पहर

जो करते हैं कठिन परिश्रम.

स्पंदन भरने को उर में

निज अस्तित्व को भूल जाते हैं

धर्म है जिनका सांसे बचाना

यमराज के आगे अड़ जाते हैं.

वो भगवान के रूप हैं केवल

भाग्य नहीं बदल सकते हैं 

कभी कभी ईश्वर की मर्जी

उन्हें विफल करते रहते हैं. 

मेहनत की उनकी कद्र न करते

लोग उन्हें पहुंचाते ठेस

भावनाओं को आहत करते

भरते उर में पीड़ा व क्लेश.

शालीनता ये दर्शाती है

चिकित्सक भी होते इंसान

संवेदनशील वो रहते हरदम

कर्तव्यनिष्ठ होते सुबहो शाम.

भारती दास ✍️






Friday, 17 June 2022

उर्मिले जनु करू वियोग

उर्मिले जनु करू वियोग
भाग्य सं हमरा भेटल अछि
सेवा के संयोग, उर्मिले जनु....
राज कुमारी जनक दुलारी
तेजल राजसी योग
नाथ शंभु मां आदि भवानी सं
कयलहुं अनुरोध
रघुकुल भानु के संग जायब
अछि नयन में मोद, उर्मिले जनु....
अहीं हमर छी प्रणय के देवी
अहीं सं अछि मृदु नेह
चित्र बनि के दृग बसल छी
अहीं पूजित उर गेह
अहीं प्रिय छी मन के मोहिनी
अहीं सुखद छी बोध, उर्मिले जनु....
हे कल्याणी शौर्य दायिनी
भाव वंदिनी छी
अहीं विनोदिनी अहीं सुहासिनी
पद्म लोचनी छी
हे राजनंदिनी पुण्य भागिनी
छोडू दुख और क्षोभ, उर्मिले जनु....
आर्य पुत्र हम छी बड़भागिनी
पथ अनुगामिनी छी
जाऊ कंटक बाट देखब
चिरकाल संगिनी छी
धरा साक्षिणी सकल देव छथि
नहि उमड़त दृग नोर...
उर्मिले जनु करू वियोग.
भारती दास ✍️
(मैथिली गीत)








Sunday, 12 June 2022

बाल-कविता

 

बाय-बाय नानी बाय-बाय दादी
ख़त्म हुयी सारी आजादी...
इतनी सुन्दर इतनी प्यारी
बीत गयी छुट्टी मनोहारी
खुल़े हैं स्कूल ख़ुशी है आधी
खत्म हुयी सारी आजादी ...
तेज धूप में दौड़ लगाते
मीठे आम रसीले खाते
अब बस्तों ने नींद उड़ा दी
ख़त्म हुयी सारी आजादी...
बहुत हुयी मौजे मनमानी
अनगिनत मस्ती शैतानी
अब उमंग पढने की जागी
ख़त्म हुयी सारी आजादी ...     

भारती दास ✍️










Thursday, 9 June 2022

गंगा गीत

       सुनो हे माँ मेरे उर की तान

       क्यों मुँह फेरी गैर नहीं हूँ

        तेरी हूँ संतान,सुनो हे.....             

        दुखिता बनकर जीती आई

      पतिता बनकर शरण में आई

     मुझ पर कर एहसान,सुनो हे......

       मोक्ष-दायिनी पाप-नाशिनी

      कहलाती संताप-हारिणी

       प्रेम का दे दो दान,सुनो हे......

       शांति-सद्गति सब-कुछ देती

      जन-जन करते तेरी भक्ति

      करके हरपल ध्यान,सुनो हे.......

        पुण्यमयी तेरी जल-धारा

        तूने सगर पुत्रों को तारा   

       तेरी महिमा महान,सुनो हे.......

        तेरी सुमिरन जो भी करते

          नर नारी सब मुक्ति पाते

          तू शिव की वरदान,सुनो हे.......

भारती दास ✍️




Friday, 3 June 2022

भक्ति को ना बदनाम करें

 भक्ति को ना बदनाम करें

गौरी शंकर का गुणगान करें....

भक्ति के व्यापक अर्थ जो जाने

सत्य ही शिव है वो पहचाने

मूढमति उलझन में भटके

प्रभु नागेश्वर का ध्यान करें....

तमस अनेकों होती असुर में

धैर्य की शक्ति होती है सुर में

विवश विकल जब होती धरती

हर की महिमा का बखान करें....

सीमाबद्ध नहीं होते दिगंबर

कण कण में बसते हैं ईश्वर

मौन सभा होती प्रांगण में

डमरूधर सच्चा निदान करें....

कामना जो भी है मनकी

उपासना करते हैं उनकी

भय नहीं है कभी किसी से

महेश्वर सदा कल्याण करें....

भारती दास ✍️



Sunday, 29 May 2022

हे सर्वस्व सुखद वर दाता

 हे सर्वस्व सुखद वर दाता

चिर आनंद जहां पर पाता

हरी भरी सी सुभग छांव में 

हंसते गाते सब सहज गांव में 

उस मनहर बरगद की छाया

जहां विद्व जन वेद को ध्याया

पतित पावन अति मनभावन 

मोक्ष प्रदायक रहते नारायण

जप तप स्तुति धर्म उपासना

योगी यति करते हैं कामना

ब्रह्म देव श्री हरि उमापति

कष्ट क्लेश हरते हैं दुर्मति

यमदेव हर्षित वर देते

आंचल में खुशियां भर देते

सत्यवान ने नव जीवन पाई

मुदित मगन सावित्री घर आई

करती प्रार्थना सभी सुहागिन 

वैसे ही सौभाग्य बढ़ती रहे हरदिन.

भारती दास ✍️









Wednesday, 18 May 2022

रहे सर्वथा उन्नत जन्मभूमि

 जिन गलियों में बचपन बीता

जिन शैशव की याद ने लूटा

उसी बालपन के आंगन में

हर्षित हो कर घूम आये हैं.

स्मृति में हर क्षण मुखरित है

दहलीज़ों दीवारों पर अंकित है

स्नेह डोर से बंधे थे सारे

पुलकित होकर झूम आये हैं.

नहीं थी चिंता फिकर नहीं था

भाई बहन संग मोद प्रखर था 

सुरभित संध्या के आंचल में

पुष्प तरू को चूम आये हैं.

न जाने कब हो फिर आना

इक दूजे से मिलना जुलना

रहे सर्वथा उन्नत जन्मभूमि

जहां स्वप्न हम बुन आये हैं.

भारती दास ✍️




Saturday, 7 May 2022

पोषित करती मां संस्कार

 दशानन के पिता ऋषि थे

पर मिला नहीं शिक्षण उदार

आसुरी वृत्तियों से संपन्न

माता थी उनकी बेशुमार.

दारा शिकोह को भाई ने मारा

कितना कलंकित था वो प्यार

शाहजहां को कैद किया था

ऐसा विकृत था परिवार.

वहीं दशरथनन्दन की मां ने

दी थी सुंदर श्रेष्ठ विचार

श्रीराम का सेवक बनकर

अपनाओ सदगुण आचार.

संघमित्रा और राहुल को पाला

यशोधरा ने देकर आधार

तप त्याग की महिमा सिखाई

बौद्ध धर्म का किया प्रसार.

ब्रह्म वादिनि थी मदालसा

पुत्रों को दी थी ब्रह्म का सार

सिर्फ कर्म स्थल ये जग है

विशुद्ध दिव्य तुम हो अवतार.

पिता हमेशा साधन देता

मां ही देती संपूर्ण आकार

सद आचरण प्रेम सिखाती

देती दंड तो करती दुलार.

सही दिशा उत्कृष्ट गुणों से

पोषित करती मां संस्कार

जैसा सांचा वैसा ही ढांचा 

जिस तरह गढता कुंभकार.

भारती दास ✍️