हर्ष-खुशी हो गम या विषाद
दीपक हरता है तम अवसाद
मौन निशा का गहन अँधेरा
जैसे निबल हो विकल मन हारा
धरणी करती है सम अनुराग
दीपक हरता है तम अवसाद....
काली रजनी विचलित करती
प्राणी सबको विकलित करती
दीपों की लड़ी करती जयनाद
दीपक हरता है तम अवसाद....
कहीं झोंपड़ी कहीं अटारी
रोशन हो गई धरती सारी
गली-गली में खुशी है आज
दीपक हरता है तम अवसाद....
भारती दास ✍️
शुभ हो दीप पर्व
ReplyDeleteआपको भी दिवाली शुभ और मंगलमय हो
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