Thursday, 25 September 2025

मोह छोड़कर जाना होगा


नील गगन में घूम रही थी

तारों का मुख चूम रही थी 

फिर बादल ने आकर बोला 

नभ-प्राँगन में रहना होगा 

मोह छोड़ कर जाना होगा।

मैंने तो देखा था सपना 

अश्रु भरे थे सबके नयना

छूकर देखा अंगों को अपना

अभी साँस को बहना होगा 

मोह छोड़कर जाना होगा।

पूरे हुये अरमान बहुतेरे 

कुछ इच्छाएँ  रहे अधूरे

है अच्छे कर्मों का अर्जन

दुःख नहीं कुछ ,कहना होगा 

मोह छोड़कर जाना होगा।

स्नेहाशीष मैं दे जाऊँगी

प्रभु चरणों में जा बैठूँगी

और किसी से क्या कहूँगी

व्यथा असीम है सहना होगा

मोह छोड़कर जाना होगा।

भारती दास ✍️

मेरी पुण्यमयी सासू माँ गोलोक धाम

चली गई

3 comments:

  1. विनम्र श्रद्धांजलि

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  2. मोह छोड़कर जाना होगा

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  3. हर शब्द में बिछड़ने का दर्द और स्वीकार करने की ताक़त झलक रही है। तुम्हारी सासू माँ के लिए ये श्रद्धांजलि बहुत भावुक और सच्ची लगी। सबसे अच्छा ये लगा कि तुमने उनके जाने के दुःख को ही नहीं, बल्कि उनके स्नेह और आशीर्वाद को भी संजोकर लिखा है।

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