नील गगन में घूम रही थी
तारों का मुख चूम रही थी
फिर बादल ने आकर बोला
नभ-प्राँगन में रहना होगा
मोह छोड़ कर जाना होगा।
मैंने तो देखा था सपना
अश्रु भरे थे सबके नयना
छूकर देखा अंगों को अपना
अभी साँस को बहना होगा
मोह छोड़कर जाना होगा।
पूरे हुये अरमान बहुतेरे
कुछ इच्छाएँ रहे अधूरे
है अच्छे कर्मों का अर्जन
दुःख नहीं कुछ ,कहना होगा
मोह छोड़कर जाना होगा।
स्नेहाशीष मैं दे जाऊँगी
प्रभु चरणों में जा बैठूँगी
और किसी से क्या कहूँगी
व्यथा असीम है सहना होगा
मोह छोड़कर जाना होगा।
भारती दास ✍️
मेरी पुण्यमयी सासू माँ गोलोक धाम
चली गई
विनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDeleteमोह छोड़कर जाना होगा
ReplyDeleteहर शब्द में बिछड़ने का दर्द और स्वीकार करने की ताक़त झलक रही है। तुम्हारी सासू माँ के लिए ये श्रद्धांजलि बहुत भावुक और सच्ची लगी। सबसे अच्छा ये लगा कि तुमने उनके जाने के दुःख को ही नहीं, बल्कि उनके स्नेह और आशीर्वाद को भी संजोकर लिखा है।
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