Monday, 21 April 2025

दर्द दूसरे का महसूस कर

 मिट्टी का हर एक कण 
पानी का सारा जलकण 
वायु का लहर प्रत्येक 
अग्नि का चिंगारी समेत।
आकाश भी शामिल हुये
मिलकर वे प्रार्थना किये 
प्रभु से बोले वे सब साथ
हम पाँच तत्व हैं बेहद खास।
सविता देव के जैसे हम में 
भर दें तेज वैसे ही सब में 
प्रकाशमय और ऐश्वर्यमय
भास्कर सा तेजस्वमय।
ईश का स्वर दिया सुनाई 
माँगने में है नहीं भलाई
सूर्य अपने तन को जलाते 
प्राणी मात्र की सेवा करते।
तेरे पास है जो उत्सर्ग कर
कुछ देने का साहस तो कर
दर्द दूसरे का महसूस कर 
फिर रवि सा हो जा प्रखर।

भारती दास ✍️ 



6 comments:

  1. सुंदर सृजन

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद प्रिया जी

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  4. पाँच तत्वों की ये कल्पना और उनका दर्द समझना, सच में कुछ अलग सोच है। सबसे ज्यादा अच्छा लगा जब लिखा कि “तेरे पास है जो उत्सर्ग कर”, ये लाइन तो जैसे हर खुदगर्ज़ी को थप्पड़ मारती है। और सूर्य की मिसाल? सही बात है, रोज़ खुद को जलाकर दूसरों को रोशनी देना, यही असली सेवा है।

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