छुक-छुक करती भागती रेल
संग में डिब्बों से करके मेल
नदी-पहाड़ खेत-खलिहान
हरी सी धरती ललित ललाम
धन्य है भारत भूमि महान।
भेड़ बकरियां दौड़ती आगे
गाय भैंस घोड़े भी भागे
नीम बरगद पीपल आम
बाजरा गेहूं धान तमाम
धन्य है भारत भूमि महान।
गांवों की कच्ची पगडंडी
सांझ को बहती हवाएं ठंढ़ी
पंख फैलाए नाचते मोर
खेलते बच्चे मचाते शोर
दृश्य मनोरम मन अभिराम
धन्य है भारत भूमि महान।
अच्छी है रेलों की सवारी
सहयात्री की बातें न्यारी
भिन्न है भाषा, भिन्न है गाम
भिन्न है चेहरे भिन्न है नाम
धन्य है भारत भूमि महान।
अनगिनत झांकी दिखलाती
पराव अनेकों आती जाती
लक्ष्य नहीं जबतक आ जाती
रेल ना थकती ना ही रुकती
लगती है प्यारी गति-विराम
धन्य है भारत भूमि महान।
भारती दास ✍️
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