Tuesday, 24 December 2024

जो धरा धाम से चले गये


जो धरा धाम से चले गये

वो सियाराम के हो ही गये....

हम जिनकी याद में रोते रहे 

वो प्रभु की गोद में सोते रहे 

कोई अमर नहीं दिन रात हुये

वो सूदूर क्षितिज में खो ही गये

जो धरा धाम से चले गये....

प्रहर दिवस कितने बीते 

वो देखें नहीं पीछे मुड़ के 

नेत्रों से झरझर नीर बहे

हतभाग्य बने असहाय रहे

जो धरा धाम से चले गये....

काल जाल बुनता है अपना

छीन के सारा सुख का सपना 

न आनंद रहा न विनोद रहा 

विक्षोभ अनंत अथाह रहा

हम सबने दर्द अनेक सहे

जो धरा धाम से चले गये....

भारती दास ✍️ 


भाई जी की
ग्यारहवीं बरसी पर अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि 🙏🙏

Saturday, 21 December 2024

धरती की कोख से

 

धरती की कोख से

अनेक पौधे फूट पड़े

दुर्भाग्यवश वे सभी 

आपस में ही लड़ पड़े।

स्वयं को ही श्रेष्ठवान

विवेकवान कहने लगे 

विवाद क्लेश बढ़ने लगा 

अभिमान में रहने लगे।

नित्य विरोध का जहर

सहर्ष ही पीते रहे

मानधन खोता गया 

विषाद बीज बोते रहें।

लड़ने झगड़ने में यूं ही 

वक्त सारे बह गये 

कुछ मिटे कुछ डटे 

कुछ दर्द को सह गये।

क्लांत मन तब रो उठा 

अवसर जब निकल गया

दंभ का महल ढ़हा 

मद धूल बन बिखर गया।

भारती दास ✍️

Sunday, 8 December 2024

आंदोलन का तेवर लेकर


इतिहासों का पन्ना पढ़कर

आंदोलन का तेवर लेकर

धरा वक्ष पर रक्त बहाकर 

हक जताने आया दिसंबर।

शौर्य का टीका सजा ललाट पर 

गौरव गीता गाता विराट स्वर

प्रेम का परिचय देता पथ पर 

स्वागत करता हृदय मंच पर।

वे झुके नहीं थे ,नहीं थे कायर

देश धर्म पर शीश कटाकर

बलिदान हुये थे तेग बहादुर 

वे वीर रत्न है आज धरोहर।

गुरु गोविंद सिंह के पुत्र थे चार

निर्दय दुष्टों ने दिया था मार

था क्षोभ, रूदन था हाहाकार 

रोया था कण-कण जार-जार।

मंदिर तोड़ा मस्जिद जोड़ा 

निर्दोषों को उसने मारा

गांव-शहर-बस्ती  उजाड़ा 

क्रूर हिंसा से अहिंसा हारा।

करता आज भी अत्याचार 

है रोष घोष का स्वर अपार 

धीर मन करता है पुकार 

जब मानवता की होती हार।

भारती दास ✍️