Saturday, 29 January 2022

काव्य सदा देता है सूकून

 

मनुष्य होते बहुआयामी

समरसता में ही जीते वे

तन-मन और भावों के बीच

सामंजस्य कई बनाते वे.

सिर्फ तर्क ही जो अपनाते

मस्तिष्क से प्रेरित होते वे

सुमन भाव के खिला नहीं पाते

सौंदर्य से वंचित होते वे.

संकीर्ण संकुचित होती दृष्टि

नहीं करते महसूस उल्लास

रुखी सुखी जीवन में न जाने

होते कितने गम विषाद.

पद प्रतिष्ठा धन का अर्जन

कुशल प्रवीण हो कर लेते हैं

पर वे जीवंत पुलकित न होते

राग विहीन जब उर होते हैं.

हृदय तरंगित कर देता है

काव्य सदा देता है सूकून

निज की झलक दिखा देता है

बनकर दर्पण गीत प्रसून.

भारती दास ✍️


















21 comments:

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    1. धन्यवाद संगीता जी

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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    1. धन्यवाद अनुराधा जी

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  3. हृदय तरंगित कर देता ह
    काव्य सदा देता है सूकून
    निज की झलक दिखा देता है
    बनकर दर्पण गीत प्रसून.
    बहुत सुन्दर सृजन भारती जी ।

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    1. कृपया *हृदय तरंगित कर देता है* पढ़ें ।

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    2. धन्यवाद मीना जी

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  4. बहुत सुंदर सार्थक रचना।
    सटीक भाव।

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    1. धन्यवाद कुसुम जी

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  5. हृदय तरंगित कर देता है

    काव्य सदा देता है सूकून

    निज की झलक दिखा देता है

    बनकर दर्पण गीत प्रसून.

    वाह ! काव्य की महिमा का सुंदर वर्णन

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  6. धन्यवाद अनीता जी

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  7. काव्य का सृजन ऐसा ही होता है ...
    खुद से जो उपजता है तो खुद को तो सुकून देगा ही ...
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना ...

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  8. हृदय तरंगित कर देता है

    काव्य सदा देता है सूकून

    निज की झलक दिखा देता है

    बनकर दर्पण गीत प्रसून...सच जीवन के अनगिनत थपेड़ों के बाद विश्रांति के कहां में काव्य सृजन की अनुभूति परम सुख देती है, बहुत सुंदर कृति भारती जी💐💐👏👏

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    1. धन्यवाद जिज्ञासा जी

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  9. बहुत ही सुन्दर भाव एवं सृजन।

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  10. धन्यवाद अमृता जी

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  11. यथार्थ कथन - काव्य मन का प्रसादन करता है

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    1. धन्यवाद प्रतिभा जी

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  12. सुन्दर सृजन

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