मनुष्य होते बहुआयामी
समरसता में ही जीते वे
तन-मन और भावों के बीच
सामंजस्य कई बनाते वे.
सिर्फ तर्क ही जो अपनाते
मस्तिष्क से प्रेरित होते वे
सुमन भाव के खिला नहीं पाते
सौंदर्य से वंचित होते वे.
संकीर्ण संकुचित होती दृष्टि
नहीं करते महसूस उल्लास
रुखी सुखी जीवन में न जाने
होते कितने गम विषाद.
पद प्रतिष्ठा धन का अर्जन
कुशल प्रवीण हो कर लेते हैं
पर वे जीवंत पुलकित न होते
राग विहीन जब उर होते हैं.
हृदय तरंगित कर देता है
काव्य सदा देता है सूकून
निज की झलक दिखा देता है
बनकर दर्पण गीत प्रसून.
भारती दास ✍️
गहन भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteधन्यवाद अनुराधा जी
Deleteहृदय तरंगित कर देता ह
ReplyDeleteकाव्य सदा देता है सूकून
निज की झलक दिखा देता है
बनकर दर्पण गीत प्रसून.
बहुत सुन्दर सृजन भारती जी ।
कृपया *हृदय तरंगित कर देता है* पढ़ें ।
Deleteधन्यवाद मीना जी
Deleteबहुत सुंदर सार्थक रचना।
ReplyDeleteसटीक भाव।
धन्यवाद कुसुम जी
Deleteहृदय तरंगित कर देता है
ReplyDeleteकाव्य सदा देता है सूकून
निज की झलक दिखा देता है
बनकर दर्पण गीत प्रसून.
वाह ! काव्य की महिमा का सुंदर वर्णन
धन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteकाव्य का सृजन ऐसा ही होता है ...
ReplyDeleteखुद से जो उपजता है तो खुद को तो सुकून देगा ही ...
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना ...
धन्यवाद सर
Deleteहृदय तरंगित कर देता है
ReplyDeleteकाव्य सदा देता है सूकून
निज की झलक दिखा देता है
बनकर दर्पण गीत प्रसून...सच जीवन के अनगिनत थपेड़ों के बाद विश्रांति के कहां में काव्य सृजन की अनुभूति परम सुख देती है, बहुत सुंदर कृति भारती जी💐💐👏👏
धन्यवाद जिज्ञासा जी
Deleteबहुत ही सुन्दर भाव एवं सृजन।
ReplyDeleteधन्यवाद अमृता जी
ReplyDeleteयथार्थ कथन - काव्य मन का प्रसादन करता है
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतिभा जी
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद मनोज जी
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