Wednesday 19 January 2022

अमन चैन का खींचते दामन.

 


अहंकार बल दर्प कामना

निज हठ को ही सत्य मानना

मिथ्या ज्ञान द्वेष भावना

पर-मानव की निंदा करना.

ऐसी वृत्ति आसुरी होती

अनिष्ट आचरण जिसकी होती

दोष ही दोष दिखाई देती

कर्तव्य बोध न सुनाई देती.

गीता में कहते नारायण

बार-बार गिरते हैं नराधम

जो विध्वंस का बनते कारण

अमन चैन का खींचते दामन.

अंत सुनिश्चित हो जाता है

जो क्रूर शठ हिंसक होता है

ब्रम्ह स्वरूप जो शिक्षक होते

हठी उदंड को दंडित करते.

तुलसी दास जी कहते साईं

दृष्ट का संग ना हो रघुराई

नरक वास भले हो गोसाईं

साथ ना हो जो करते बुराई.

दृग-गगरी जिसकी खुल जाये

ईश-अवतारी वही बन जाये

दुर्बल की लाठी वो कहाये

दीन की साथी बन मुस्काये.

भारती दास ✍️


28 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२०-०१ -२०२२ ) को
    'नवजात अर्चियाँ'(चर्चा अंक-४३१५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. धन्यवाद अनीता जी

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  2. खूबसूरत पंक्तियाँ।

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    1. धन्यवाद नितिश जी

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  3. सुंदर सृजन

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    1. धन्यवाद अनीता जी

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  4. सराहनीय भाव, लाजवाब सृजन

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    1. धन्यवाद जिज्ञासा जी

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  5. बहुत ही सुन्दर सृजन ।

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    1. धन्यवाद अमृता जी

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  6. अहंकार बल दर्प कामना

    निज हठ को ही सत्य मानना

    मिथ्या ज्ञान द्वेष भावना

    पर-मानव की निंदा करना.

    ऐसी वृत्ति आसुरी होती

    अनिष्ट आचरण जिसकी होती

    दोष ही दोष दिखाई देती

    कर्तव्य बोध न सुनाई देती.
    बिल्कुल सही कहा आपने!
    शानदार सृजन..

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  7. धन्यवाद मनीषा जी

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  8. बहुत सुन्दर सृजन भारती जी ।

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  9. सटीक प्रेरक भाव लिए उम्दा सृजन बुराई का विसर्जन आवश्यक है ।
    सस्नेह।

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  10. धन्यवाद कुसुम जी

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  11. गीता में कहते नारायण

    बार-बार गिरते हैं नराधम

    जो विध्वंस का बनते कारण

    अमन चैन का खींचते दामन.
    वाह!!!
    बहुत ही सुंदर संदेशप्रद एवं प्रेरक सृजन।

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  12. सुन्दर रचना

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  13. धन्यवाद मनोज जी

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  14. बेहतरीन रचना।

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  15. धन्यवाद अनुराधा जी

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  16. असुरी प्रिवर्ती मन को भ्रष्ट कर देती है ...
    जितना जल्दी हो भाव परिवर्तन जरूरी है ...

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