अहंकार बल दर्प कामना
निज हठ को ही सत्य मानना
मिथ्या ज्ञान द्वेष भावना
पर-मानव की निंदा करना.
ऐसी वृत्ति आसुरी होती
अनिष्ट आचरण जिसकी होती
दोष ही दोष दिखाई देती
कर्तव्य बोध न सुनाई देती.
गीता में कहते नारायण
बार-बार गिरते हैं नराधम
जो विध्वंस का बनते कारण
अमन चैन का खींचते दामन.
अंत सुनिश्चित हो जाता है
जो क्रूर शठ हिंसक होता है
ब्रम्ह स्वरूप जो शिक्षक होते
हठी उदंड को दंडित करते.
तुलसी दास जी कहते साईं
दृष्ट का संग ना हो रघुराई
नरक वास भले हो गोसाईं
साथ ना हो जो करते बुराई.
दृग-गगरी जिसकी खुल जाये
ईश-अवतारी वही बन जाये
दुर्बल की लाठी वो कहाये
दीन की साथी बन मुस्काये.
भारती दास ✍️
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२०-०१ -२०२२ ) को
'नवजात अर्चियाँ'(चर्चा अंक-४३१५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
धन्यवाद अनीता जी
Deleteखूबसूरत पंक्तियाँ।
ReplyDeleteधन्यवाद नितिश जी
Deleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteसराहनीय भाव, लाजवाब सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद जिज्ञासा जी
Deleteबहुत ही सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteधन्यवाद अमृता जी
Deleteअहंकार बल दर्प कामना
ReplyDeleteनिज हठ को ही सत्य मानना
मिथ्या ज्ञान द्वेष भावना
पर-मानव की निंदा करना.
ऐसी वृत्ति आसुरी होती
अनिष्ट आचरण जिसकी होती
दोष ही दोष दिखाई देती
कर्तव्य बोध न सुनाई देती.
बिल्कुल सही कहा आपने!
शानदार सृजन..
धन्यवाद मनीषा जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन भारती जी ।
ReplyDeleteधन्यवाद मीना जी
Deleteसटीक प्रेरक भाव लिए उम्दा सृजन बुराई का विसर्जन आवश्यक है ।
ReplyDeleteसस्नेह।
धन्यवाद कुसुम जी
ReplyDeleteगीता में कहते नारायण
ReplyDeleteबार-बार गिरते हैं नराधम
जो विध्वंस का बनते कारण
अमन चैन का खींचते दामन.
वाह!!!
बहुत ही सुंदर संदेशप्रद एवं प्रेरक सृजन।
धन्यवाद सुधा जी
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद मनोज जी
ReplyDeleteबेहतरीन रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद अनुराधा जी
ReplyDeleteअसुरी प्रिवर्ती मन को भ्रष्ट कर देती है ...
ReplyDeleteजितना जल्दी हो भाव परिवर्तन जरूरी है ...
धन्यवाद सर
ReplyDelete