कवि प्रेम की कल्पना करता
सर्वदा शुभ कामना करता
कर्तव्यों की अवधारणा करता
सद्भावों की प्रेरणा देता।
देश की गौरव गान सुनाता
मातृभूमि का मान बढ़ाता
नारायण की महिमा गाता
विद्या कौशल ज्ञान सिखाता।
कहते कवि हरदम यही
दुर्बल दशा ना हो कभी
आश और विश्वास की
जलता रहे दीपक यूँही।
विषपूर्ण ईर्ष्या हो नहीं
सद्गुण भरे मन हो सभी
जीत श्रम का हो सही
हरपल हँसे नभ और मही।
भारती दास ✍️
बहुत बहुत धन्यवाद यशोदा जी
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ReplyDeleteवाह !! कितनी सुंदर कामना है
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
Deleteसब ओर खूबसूरत देखने की एक लेखक की आदत होती है। एक अच्छे लेखक के गुण हैं आपमें भारती जी।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद रीतू जी
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर संदेश ।
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