Saturday, 1 February 2014

ऋतू बसंत

 
आया बसंत लाया समस्त
उर में अनंत सपने जीवंत
है दिग- दिगंत पुष्पित सुगंध
स्पर्श वंत  मद मस्त  गंध
गुन-गुनकी स्वर गुंजित भ्रमर
मादक नजर कुसुमित अधर
कोयल की कूक मीठी सी हूक
देती बदन में पी की फूंक
उलझे नयन महके चमन
पुलके प्रणय की मन हिरण
नवनीत गात कोमल ये पात
सुरभित सुभग स्नेहिल प्रगाढ़
पादप –विटप धरती भरी
वातावरण प्रफुलित पड़ी
आमों में मंजरी की लड़ी
चहुँ ओर दर्शित शुभ घड़ी
उज्जवल वसन शोभित बदन
हिमकुंद पद्दम विराजती
वन्दित युगल पंकज चरण
वर – दण्ड वीणा धारती
स्मित अधर मदिरा नजर
प्रगटी है भू पर भारती
जनजन भवन गाते मुदितमन
शारदे की आरती
दुर्बल अहं छोड़े ये मन
रखें सदा ही मन प्रसन्न
ये युग बसंत है श्रेष्ठवंत
है यही मंत्र हो पथ-प्रशस्त .

Monday, 13 January 2014

मकर-संक्राति


एक त्यॊहार कई है नाम ,
भारत कीहै यही पहचान,
मकर-संक्राति,पोंगल,लॊहिडी़ ,
कहीं पर बनता स्वादिष्ट खिचड़ी,
खुशियाँ बांटे , ख़ुशी मनाये  
तिल की मीठी लड्डू खायें  ,
आसमान में चढ़ी पतंगे,
सपनों के उड़ान भरने ,
डोर की जोर पर चढ़ती गयी,
होड़ ही होड़ में बढती गयी,
व्योम के सारे पक्षी तमाम,
'
जी सके ' है यही पैगाम ,
चिड़ियाँ  सब  भी जी पाये
सब कोई  मस्ती कर पाये .

.
HAPPY MAKARSANKRANTI

Monday, 6 January 2014

हे भारत मत भूलो कभी



हे भारत मत भूलो कभी
ये गौरव –गाथा है तेरे ही
सीता –सावित्री –दमयंती सी
नारी के आदर्श अभी भी
सर्वत्यागी नाथ शंकर
उपासना करते है जी भर
वो तुम्हारे हैं अभी भी
मत भूलना तुम कभी भी .
चंडाल –ब्राम्हण और दरिद्र भी
सब तेरे सुत हैं  अभी भी
गंभीर संकट है कोई भी
हल समस्या का सभी ही
करते है कुछ लोग अब भी
वो तुम्हारे है अभी भी
मत भूलना तुम कभी भी .
माता ही सर्वस्व यहाँ पर
जान देते पुत्र उन पर
व्यक्तिगत कोई कभी भी
जीवन नहीं जीता कहीं भी
स्वदेश-मंत्र पढता अभी भी
शहीद होते आज अब भी
वो तुम्हारे हैं अभी भी
मत भूलना तुम कभी भी
वो तेरे अमृत वचन भी
दिल में रखें है अभी भी
फूंकते है प्राण अब भी
सिंह जैसा वीर जब भी
कांपते है रंक अब भी
देश –भक्ति मन में अब भी
उत्कृष्ट –चिंतन संस्कृति भी
देव जैसा मनुज अब भी
वो तुम्हारे है अभी भी
मत भूलना तुम कभी भी .