Monday, 22 September 2025

हे जगदंब नमन स्वीकारो


अरुणिम प्रभात की वेला आई

घट सुमंगल सबने सजाई

द्वार-द्वार अंबे माँ आई 

सुख-सौभाग्य सौगातें लाई।

नवल वसन तन शोभित आई

केहरि वाहन हर्षित आई 

मुख अभिराम सुखद मन आई

अरविंद नयन मुस्काती आई।

शिथिल मनुज को जगाती आई

आश का दीप जलाती आई

जगत का कष्ट मिटाती आई

चित्त अनुराग बरसाती आई।

हे जगदंब नमन स्वीकारो

दुर्गम पथ पर दुर्गा निहारो

हे शैल सुता भक्तों को तारो

मुश्किल पल से सदा उबारो।

भारती दास ✍️ 




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