अरुणिम प्रभात की वेला आई
घट सुमंगल सबने सजाई
द्वार-द्वार अंबे माँ आई
सुख-सौभाग्य सौगातें लाई।
नवल वसन तन शोभित आई
केहरि वाहन हर्षित आई
मुख अभिराम सुखद मन आई
अरविंद नयन मुस्काती आई।
शिथिल मनुज को जगाती आई
आश का दीप जलाती आई
जगत का कष्ट मिटाती आई
चित्त अनुराग बरसाती आई।
हे जगदंब नमन स्वीकारो
दुर्गम पथ पर दुर्गा निहारो
हे शैल सुता भक्तों को तारो
मुश्किल पल से सदा उबारो।
भारती दास ✍️
शुभकामनाएं
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