शीतल सुगंध पवन बहे मंद
सृष्टि बौरायी है उन्मत-उमंग
निकला लगाने को फागुन अलबेला
उषा के माथे पर रोली का रेला।
उड़ता है नभ में रंगों का घेरा
कितना है सुन्दर जग का नजारा
चारों ओर शोर है मस्ती का दौर है
शिकवा-शिकायत का कहीं नहीं ठौर है।
विकृत उपासना वासना की भावना
जल उठी होलिका में व्यर्थ सब कामना
हास-परिहास हो उत्सव ये खास हो
रक्त नहीं रंग की स्नेहिल सुवास हो।
ह्रदय की भूमि पर मधुर सा साम्य हो
प्रेम की पुकार पर इठलाता भाग्य हो
सुन्दर मन-मीत हो प्रेम के गीत हो
होली के रंग में सच्ची सी प्रीत हो।
क्लेश-द्वेष भूलकर, छोड़कर गुमान
हँसने-हँसाने का होली है नाम
उत्सव ये प्यारा सा ना हो बदनाम
जब-तक है जीवन,जी लें तमाम।
भारती दास✍️
सच्ची सात्विक शुभकामना से भरी होली !
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी, होली की शुभकामनाएं
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