जगत वंदनी जनक नंदिनी
सीता राम कें प्रणय जतऽ
एहन सुन्दर पावन धाम
जग में कहू छै और कतऽ .
छलथि विदेह तपस्वी राजा
विज्ञ अनंत परम विद्वान
हुनकर यश जयनाद देखि कें
भेलथि अधीर इंद्र भगवान.
ध्वस्त भेल सब कालखंड में
तैयो जीवित अछि ललित-ललाम
मौन वेदना सं भरल अछि
परम पुनीत ओ अमृत धाम.
नष्ट-विनष्ट भेल एकता
भेद-भाव बढ़ि गेल अनंत
स्वजन विरोधी भऽ रहल छथि
संतप्त ह्रदय संदेह कें संग.
क्षोभयुक्त उन्माद समेटू
चित्त में भरू कोमल अनुराग
संस्कृति कें गौरवमय-गरिमा
बनि रहल अछि दीन विषाद.
रहू जुड़ायेल सबकें जुड़ाऊ
जुड़िशीतल कें शुभ पैगाम
हर्षित भय त्योहार मनाऊ
विहुंस उठय ई मन और प्राण.
भारती दास ✍️
बड निक!
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteवाह! सुंदर।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
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