Sunday, 18 February 2024

वर्तमान नारी का जीवन

 


वर्तमान नारी का जीवन

क्यों इतनी व्यथित हुई है

व्याभिचारी-अपराधी बनकर

स्वार्थी जैसी चित्रित हुई है.

जब-जब भी बहकी है पथ से

वो पथभ्रष्ट दूषित हुई है

पीड़ा-दाता बनकर उसने

खुद ही जग में पीड़ित हुई है.

रूप कुरूप है उस नारी का

जब सृजन सोच से भ्रमित हुई है.

जीवन में होकर गुमराह 

सदा सदा ही व्यथित हुई है.

परिवार राष्ट की लाज मिटा कर 

भाग्य भी उसकी दुखित हुई है.

युग-युग का इतिहास ये कहती, 

नारी ही तो प्रकृति हुई है.

त्याग- तपस्या थी ऋषियों की,

गरिमामय सी सृजित हुई है.

है निवेदन उस नारी से, 

जो कभी दिग्भ्रमित हुई है.

वो अपना क्षमता दिखलाए, 

जिससे जग में पूजित हुई है.

भारती दास ✍️

8 comments:

  1. संस्कार विहीन पालन-पोषण और चारों ओर बढ़ती हुई विद्रूपता ने कहीं-कहीं नारी के कोमल मन को भी जैसे पाषाण बना दिया है

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  2. धन्यवाद अनीता जी

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  3. समय के साथ ताल में ताल मिलाती स्त्रियों के मध्य कुछ इस तरह की स्त्रियां भी हैं, जो संस्कारों से खेल रही हैं, सार्थक रचना।

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    1. धन्यवाद जिज्ञासा जी

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  4. बहुत सुंदर

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