Wednesday 3 May 2023

रुग्ण मानवता के वैद्य

 


नेपाल की तराईमें एक राज्य था जिसकी राजधानी कपिलवस्तु थी. वहां के राजा शुद्धोधन थे. वैशाख पूर्णिमा के दिन महातपस्वी भगवान बुद्ध ने जन्म लिया था. उनके जन्म के कुछ दिन बाद ही उनकी माता महामाया का देहांत हो गया. उनकी मौसी गौतमी के द्वारा लालन-पालन होने की वजह से उनका नाम गौतम पड़ा.

                              भगवन बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था. वे क्षत्रिय थे और राजा का पुत्र भी इसलिए उन्हें युद्ध के सारे कौशल एवम सभी प्रकार की शिक्षा दी गयी. सिद्धार्थ युवा हुए, यशोधरा उनकी महारानी बनी, राहुल के रूप में उनको पुत्र मिला. वे अत्यंत संवेदनशील थे, शिकार करने के बजाय वे सोचते थे कि पशु-पक्षियों को मारना क्या उचित है ? ये पशु-पक्षी बोल भी नहीं सकते, उनका मानना था कि जिसे हम जीवन नहीं दे सकते, उसका जीवन लेने का कोई अधिकार नहीं है. प्रचंड वैराग्य, अनूठा विवेक युवराज सिद्धार्थ के मन में उत्पन्न होने लगा जो अदृश्य रूप में, अनंत काल से उनके अंतःकरण में उपस्थित था. खुली आँखों से सकल चराचर को अपलक निहारते रहते थे. औरों की पीड़ा उनको अपनी पीड़ा प्रतीत होती थी. संसार के समस्त दुःखों से छुटकारा प्राप्त करने के उपायों को ढूंढने के लिए, एक दिन रात्रि में चुपके से पत्नी व पुत्र को सोता छोड़कर महल से बहार निकल गए. जगह-जगह घूमने लगे. कई दिनों के पश्चात् वे गया पहुंचे वहीं एक वटवृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करने लगे. कठिन तपस्या से देह दुर्बल और क्षीण हो गयी. जर्जर हो चुके सिद्धार्थ को सुजाता नाम की एक महिला ने खीर खिलाई, उनकी देह को ही नहीं, उनकी जीवन चेतना को भी नवजीवन मिली. उसी क्षण उनको ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे गौतम बुद्ध के नाम से विख्यात हुए.

                  ‘’  भगवन बुद्ध ने दुःख से मुक्ति के लिए आठ उपायों को बताया है जिसे आष्टांगिक मार्ग कहा गया है ------------

सम्यक दृष्टि-----कामना व वासना की धारणा को छोड़ सबको एक समान देखना व समझना.

सम्यक संकल्प ------हठ एक प्रकार का अहंकार है जो करने योग्य है सही हठ करना तथा स्पष्ट उद्देश्य के साथ जीना.

सम्यक वाणी --------सभी अर्थों में,दृष्टि में और संकल्प में वाणी का दोषमुक्त होना ही सम्यक वाणी है. 

सम्यक कर्मात--------वही कर्म करना जिससे पवित्र जीवन व्यतीत हो अहिंसा का पालन हो.

सम्यक आजीविका ---------उसी आजीविका का चयन हो जिससे जीवन में शांति आये, हिंसा न हो और अति न हो.

सम्यक व्यायाम -----------शरीर की गतिशीलता अनिवार्य है न अति आलस हो, न अति कर्मठता, दोनों ही नुकसानदेह होते हैं.

सम्यक स्मृति ---------व्यर्थ को भूलना और सार्थक को स्मरण रखना जिससे जीवन सरल हो.

सम्यक बोध -----------खुद में होश हो,  जाग्रति हो,  धैर्य हो, सहनशीलता हो , संवेदना हो.           [ भारतीय संस्कृति और अहिंसा ] से "

              आतंकवाद, दंगे, युद्ध, समाज की वे भीषण बीमारियाँ है जिसके दुष्परिणाम हर किसी को झेलने पड़ते हैं. कुछ ऐसी ही स्थिति समाज की तब भी थी जब भगवान बुद्ध का अवतरण हुआ था. उस समय भी मानव भटक गए थे, गलत मार्ग पर अग्रसर थे, अकारण दूसरों को कष्ट दे रहे थे. आज भी हिंसा से जूझते मानव को सही राह पर चलने के लिए भगवन बुद्ध की उन्ही शिक्षाओं की जरुरत है जो आतंक-हिंसा व नकारात्मक प्रवृति से हटाकर शुचिता के मार्ग पर ले चले. अब संवेदना बची नहीं, इंसानियत रही नहीं, न प्रकृति का ध्यान न जीव- जंतुओं की चिंता यहाँ तक कि अपना भी ध्यान नहीं है. अपने ही स्वार्थ लोभ-लालच में मानवता के अस्तित्व को गवाने पर उतारू हो गए हैं जो दुखी हो जिसके विचार अच्छे नहीं हो उसे कोई सुखी नहीं बना सकता. प्राणियों में श्रेष्ठ होने के कारण मानव प्रयत्न जरुर कर सकता है अपना जीवन व्यवस्थित बना सकता है. 

               काल के प्रवाह में क्षण - दिवस और वर्ष बीते हैं वैशाख पुर्णिमा के सत्य का बुद्धत्व का वही चाँद हमेशा निकलता है जिसकी चांदनी की छटा निराली होती है. आज भी मानव जीवन के लिए बुद्ध उतने प्रेरणाप्रद है जितने सदियों पूर्व थे. जिन ओजस्वी वाणी को सुनकर दैत्य अंगुलिमाल का जीवन बदला, बर्बर अजातशत्रु में बदलाव आया, सम्राट अशोक में परिवर्तन हुआ वही सन्देश आज भी हमें प्रेरित करते है. हमारी रुग्न मानवता को नव जीवन प्रदान करने के लिए भगवन बुद्ध के उपदेशों को अपनाना  

ही होगा.

भारती दास ✍️

                                                     

                                                             

        


4 comments:

  1. आज भी हिंसा से जूझते मानव को सही राह पर चलने के लिए भगवन बुद्ध की उन्ही शिक्षाओं की जरुरत है जो आतंक-हिंसा व नकारात्मक प्रवृति से हटाकर शुचिता के मार्ग पर ले चले.
    सही कहा आपने...बहुत सटीक सार्थक एवं सारगर्भित लेख ।

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  2. धन्यवाद सुधा जी

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  3. बुद्ध हों या महावीर, हम उनके उपदेशों को सुनते तो हैं और चाहते हैं कि दूसरे इन उपदेशों पर अमल करें। अगर हम सभी अपनी अपनी जगहों पर इन उपदेशों का अनुकरण करें तो वास्तव में आतंक हिंसा और नकारात्मक प्रवृति को हटाया जा सकता है।

    बहुत ही सटीक लेख।
    कुछ गलत लिखा हो तो क्षमाप्रार्थी 🙏

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद

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