Sunday, 13 November 2022

स्वर वर्ण का ज्ञान हो ( बाल कविता)

 अ - अनार के दाने होते लाल

आ - आम रसीले मीठे कमाल

इ -  इमली खट्टी होती है

ई  - ईट की भट्ठी जलती है

उ - उल्लू दिन को सोता है

ऊ - ऊन से स्वेटर बनता है

ऋ - ऋषि की पूजा करते हैं

 वो ईश्वर जैसे होते हैं.

ए - एक से गिनती होती है 

ऐ - ऐनक अच्छी लगती है 

ओ - ओस से धरती गीली है

औ - औषधि हमने पीली है

अं - अंगूर सभी को भाता है

अॅऺ - ऑख से ऑसू बहता है

अ: - प्रात: सूर्य निकलता है

     जग को रोशन करता है.

     स्वर वर्ण ही मात्रायें बनती

     शब्दों की रचनायें करती 

     कथ्य कई सारे कह देती

     भाव अनेकों उर में भरती.

     व्यंग्य नहीं ना शर्म हो

     अपनी भाषा पर गर्व हो 

     स्वर वर्ण का ज्ञान हो

     मात्रा की पहचान हो.

     भारती दास ✍️



13 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (१४-११-२०२२ ) को 'भगीरथ- सी पीर है, अब तो दपेट दो तुम'(चर्चा अंक -४६११) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी

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  3. बहुत ही सुन्दर बाल कविता है।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद अमृता जी

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद अभिलाषा जी

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  5. वाह!!!!
    बहुत सुन्दर सार्थक....

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी

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  6. सुंदर सृजन

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी

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