अ - अनार के दाने होते लाल
आ - आम रसीले मीठे कमाल
इ - इमली खट्टी होती है
ई - ईट की भट्ठी जलती है
उ - उल्लू दिन को सोता है
ऊ - ऊन से स्वेटर बनता है
ऋ - ऋषि की पूजा करते हैं
वो ईश्वर जैसे होते हैं.
ए - एक से गिनती होती है
ऐ - ऐनक अच्छी लगती है
ओ - ओस से धरती गीली है
औ - औषधि हमने पीली है
अं - अंगूर सभी को भाता है
अॅऺ - ऑख से ऑसू बहता है
अ: - प्रात: सूर्य निकलता है
जग को रोशन करता है.
स्वर वर्ण ही मात्रायें बनती
शब्दों की रचनायें करती
कथ्य कई सारे कह देती
भाव अनेकों उर में भरती.
व्यंग्य नहीं ना शर्म हो
अपनी भाषा पर गर्व हो
स्वर वर्ण का ज्ञान हो
मात्रा की पहचान हो.
भारती दास ✍️
बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (१४-११-२०२२ ) को 'भगीरथ- सी पीर है, अब तो दपेट दो तुम'(चर्चा अंक -४६११) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
Deleteबहुत ही सुन्दर बाल कविता है।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अमृता जी
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद अभिलाषा जी
ReplyDeleteवाह!!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक....
बहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी
Deleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
Deleteसुंदर सृजन।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
ReplyDelete