Saturday 11 June 2016

अद्वितीय है राधा का प्रेम



पूरब में सूरज ने झांका
लेकर लाल किरण की आभा
सविता का अभिवादन करने
चिड़ियां गाती गीत सुहाने
स्वागत में झूमते ये पेड़
जैसे आनंद रहा बिखेर
कल-कल बहती यमुना की धारा
उत्सव सी लगता जग सारा
वृक्ष से लिपटी लताये-वेलें
पुष्पित पौधे सुगंध बिखेरे
कितना सुन्दर कितना पावन
सौन्दर्य लुटाती दृश्य मनोरम
राधा के संग बैठे मोहन
नियति-प्रकृति का हो जैसे संगम
मधुप पालती जिनकी अलकें
उन नैनों में नेह ही छलकें
वहां दुःख और शोक नहीं था
वो धरती नहीं कोई और लोक था   
सीमाओं बंधन से परे था
पवित्र प्रेम जो उनमे भरा था
कठिनाईयों को ओढ़ चली थी
प्रेम डगर की ओर बढ़ी थी
नीतियों के संग रहती रीतियाँ
भटकती रही थी उनकी प्रीतियां
इच्छाओं सपनो को वार
अपना जीवन करके निसार
त्याग करी थी चिर अभिलाषा
अमर कर गयी प्रेम की भाषा
जग विदित है उनका प्रेम
अद्वितीय है राधा का प्रेम.         

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