Tuesday 31 January 2017

आया वही मधुमय बसंत



सदमय बसंत मदमय बसंत
आया वही मधुमय बसंत
पेड़ों पर पत्ते डोलते
नव गात से मन मोहते
उर में उमंगें है भरे
तनमन ख़ुशी से झूमते,
नवमय बसंत मुदमय बसंत
आया वही मधुमय बसंत….
ऋतुराज की आई बहार
प्रफुलित हुई फूलों की डार
सुर-सुंदरी ने की श्रृंगार
झंकृत हुए वीणा के तार,
सुरमय बसंत शुभमय बसंत….
आया वही मधुमय बसंत.
खग की मधुर कलरव की शोर
कितनी सुहानी है ये भोर
बहके कदम मेरी किसकी ओर
खींचे कोई मेरे मन की डोर
रसमय बसंत सुखमय बसंत
आया वही मधुमय बसंत…..         

Wednesday 25 January 2017

देश को रहा गर्व है



इतिहास के अध्याय में
क्रांति वीर से ही शान है
स्वार्थ लोलुप सभ्यता से
रो उठा अभिमान है.
माताएं मौन थी विवश
दीनता की बोध से    
तार-तार थे ह्रदय
क्रूरता की क्षोभ से.
भयभीत भूमि क्षुब्ध थी
धधक रहा गगन था
आंचल से रक्त पोंछकर
अश्रु पूरित नयन था.
देश की उस आन पर
जिसने चढ़ाया लाल था
कोख सूनी हो गयी थी
सिंदूर विहीन कपाल था.
नयी-नयी उलझनों से
रोया ना पछताया था
निज बुद्धि के प्रदीप से
आगे बढ़ वो आया था.
आज कोई भूल से
आदर्श बन आये जो
लेकर स्वरुप राम का
अन्याय फिर मिटाये जो.
नीति ज्ञान से सदा ही
रहा कर्म श्रेष्ठ है
उन शूरवीर पुत्र पर
देश को रहा गर्व है.             

Sunday 15 January 2017

ये मतवाला संसार



जाने किस दर्द-दंश से
रोष दिखाता है समीर   
अंग-अंग को कम्पित करता
तन में पहुंचाता है पीर.
चौंक कर गिरते पीले पल्लव
कलियों को देता झकझोर
नीड़ के अन्दर उधम मचाता
विहग-बालिके करती शोर.
पशु ढूंढते छिपने का ठौर
कांपते जन जलाते अंगार
शिथिल चरण से बच्चे बैठे
करुण स्वर से रहे पुकार.
छलकी पलकों से कराहती
जिसका नहीं है घर संसार
तारों भरी नीरव रातों में
जब जीवन जाता है हार.
गोधूली नभ के आँगन में
तिमिर का बढ़ता हाहाकार
निष्ठुर पागल सा दीखता है
बेदर्द ये मतवाला संसार.      

Tuesday 3 January 2017

अभिनंदन हो इस क्रांति का



नूतन वर्ष का हो गया आरम्भ
सब कुछ लगता है नया-नया
फिजा में ऐसी शोर उठी कि
वातावरण बदल सा गया.
गोरख धंधे में उलझे लोग
खुद को असमर्थ सा पाया
महामानव के उस तेवर से
साम्यवाद का युग बन आया.
अवैध रूप की जमा-खोरी का
मूल्य शून्य सा हो गया
भ्रष्टाचार और वोट के नोट
सारा धन मिटटी बन गया.
आर्थिक महाक्रान्ति के पल में
परिणाम विराट सा हो गया
नगद रहित हो गयी व्यवस्था
इक नव सा बदलाव समाया.
अफरा-तफरी का रहा माहौल
असमंजस पसरा चारों ओर
फिर से होगा दिन पुराना
विकल्प नए होंगे पुरजोर.
अभिनन्दन हो इस क्रांति का
आत्मभाव विकसे शुभ-ज्ञान
कोटि-कोटि लोगों के श्रम से
राष्ट्र का हो बेहतर निर्माण.