Friday, 3 December 2021

निराशा _____ हताश मन की व्यथा

 



नकारात्मक विचारों व भावनाओं के साये से घिरे रहनेवाले लोग ही ज्यादातर निराश दिखाई पड़ते है. आज की पीढ़ी के अधिकतर लोग हताशा भरी परिस्थिति का सामना करते हैं क्योंकि वे व्यवहार कुशल नहीं होते हैं .सामान्य जिन्दगी में भी अपने आपको असहाय महसूस करते हैं .मनोबल कमजोर होता है .अजीब सी उदासी से घिरा जीवन होता है .
        15 से 40 वर्ष के लोग इसी  उहापोह में जीवन व्यतीत करते हैं की हमारा अब कुछ नहीं होगा .वे सिर्फ अपने –आप में ही कमी ढूंढते दिखाई देते हैं. हर कामयाब आदमी से डर लगता है. लम्बे समय तक चलने वाली जद्दोजहद की वजह से मनःस्थिति हताशा में डूब जाती है. किसी भी कार्य को करने के लिए उत्साहित होने के बजाय  निराशाजनक भाव होता है. सही निर्णय लने की क्षमता नहीं रह जाती है. सकारात्मक सोच से दूर होने लगता है. मन हमेशा उदास ही रहता है.
                 निराशा[तनाव]यानि ‘’डिप्रेशन’’एक मानसिक रोग है. इस रोग में आदमी सामान्य चुनौती को भी नहीं स्वीकार कर पाता बल्कि अपना कदम पीछे हटा लेता है. खुशनुमा व्यक्तित्व नहीं रख पाता, डरा-डरा सहमा-सहमा सा माहौल रखता है. "डिप्रेशन"का एक कारण यह भी होता है की nyurotransmitre ठीक ढंग से कम नहीं करते है जिस वजह से निराशा देखने को मिलते है. कुछ अच्छा नहीं लगना, जल्दी थक जाना ये इसके लक्षण होते है. एक कारण यह भी हो सकता है कि जिन्दगी के प्रति सही समझ विकसित नहीं कर पाते है जिससे असफलता मिलती है. धीरे –धीरे अपनी क्षमताओं पर संदेह करने लगते है. एकाग्रता में कमी आने लगती है.
                 अपनी क्षमताओं का सही आकलन करने के लिए सबसे पहले मन को मजबूत बनाना होगा. सकारात्मक सोच के द्वारा अवसाद को मन से दूर भगाना होगा. चिंतन-मनन व अध्यात्मिक अध्ययन के द्वारा विचार शैली को बदलना होगा. स्वाध्याय से सुन्दर विचारों का पोषण मस्तिष्क को मिलेगा.
                 उपासना को नियमित दिनचर्या में शामिल करने से शंकाओं का नाश तथा खुद पे विश्वास बढ़ता है. भगवान के सानिध्य का एहसास होता है. हताशा-निराशा स्वतः नाश होती है. नियमित योग द्वारा भी मनःस्थिति शांत व प्रसन्न होती है. उगते हुए सूरज को नमस्कार करने से मन स्वस्थ व सक्रिय होते हैं.
                   इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए की हमें निराशा क्यों मिले. ईश्वर ने सबको बनाया है. हर किसी में कोई न कोई गुण जरुर दिया है. मुझमे भी कुछ गुण होगा ही, व्यवहार कुशल बनकर लोगों तक पहुंचकर अपना हताशा भगाना चाहिए. जबतक जीवन है हरदिन कुछ सीखने को मिलेगा. अपने को भी तौलते रहना चाहिए ताकि कमी को सुधार सकें. सुन्दर-सुखद जीवन व्यतीत करने के उपाय ढूंढना चाहिए. हँसना ,गाना व खिलखिलाना चाहिए.
                  महाकवि मैथिलीशरण गुप्तजी ने कहा है .........
    "नर हो न निराश करो मन को
    कुछ काम करो ,कुछ काम करो
    जग में रहकर निज नाम करो
    यह जन्म हुआ किस अर्थ कहो
    समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
    कुछ तो उपयुक्त करो तन को
    नर हो न निराश करो मन को."
भारती दास ✍️

Saturday, 27 November 2021

पद्मश्री दुलारी देवी


अभावों में ही पली बढ़ी

नहीं थी कुछ भी लिखी पढी

मल्लाह परिवार में हुआ जनम

मुश्किलों से होता भरण पोषण

पति नहीं था ससुराल नहीं थी

एक बेटी थी जो जीवित नहीं थी

क़दम कदम पर दर्द व्यथा थी

संघर्षों की वो इक गाथा थी

झाड़ू पोछा छोड़ चली वो

रंगों की कूंची पकड़ चली वो

हाथों में कमाल की जादू था 

लगन संयम मन काबू में था 

गजब की चित्र बनाती थी

वो जिजीविषा बन जीती थी

उनके काम को नाम मिला

पद्मश्री का सम्मान मिला

एक प्रेरणा बनकर उभरी

जाति धर्म से ऊपर निखरी

कला ने दी सुंदर पहचान

बिहार की बेटी है दुलारी नाम.

भारती दास ✍️

Saturday, 13 November 2021

हमेशा रहती है दूर

 

एक सुशीला महिला

हमेशा रहती है दूर

शराब की विकृत भावों से

गंदी नजर की कुंठाओं से

अमीर पतियों की घपलेबाजी से

सुविधाओं की चोंचलेबाजी से

करती नहीं कभी गुरूर

हमेशा रहती है दूर....

एक कुलीना महिला

हमेशा रहती है दूर

अधूरे ज्ञान की प्रशंसा से

मित्र गणों की अनुशंसा से

बद आचरण की परिभाषा से

स्वतंत्र उत्थान की अभिलाषा से

होती नहीं कभी मगरुर

हमेशा रहती है दूर....

एक अबला सी महिला

हमेशा रहती है दूर

मंहगे तोहफे उपहारों से

लालच और व्यभिचारों से

खोखली झूठी आकांक्षाओं से

व्यर्थ सी कई इच्छाओं से

 होती नहीं बेबस मजबूर

हमेशा रहती है दूर....

भारती दास ✍️

Monday, 8 November 2021

आस्था का महपर्व ---छठ


सूर्य की उपासना अनादी काल से ही भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के समस्त भागों में श्रद्धा-भक्ति के साथ की जाती रही है.सूर्य सबके ही उपास्य देव रहे हैं. हमारे देश में सूर्य उपासना के लिए विशेष पर्व छठ है जिसे बहुत ही आस्था-श्रद्धा के साथ मनाया जाता है .’ षष्ठी देवी ‘ दुर्गा का ही प्रतिरूप है . ‘ सूर्य और षष्ठी ‘ में भाई-बहन का संबंध है. इसलिए सूर्य उपासना की विशिष्ट व विशेष तिथि है षष्ठी. ‘ सूर्यषष्ठी ‘ व्रत होने के कारण इसे छठ कहा जाता है. इस पर्व में भगवान सूर्य को डूबते हुए और उगते हुए दोनों रूपों में भाव भरा अर्ध्य चढ़ाया जाता है.

         इस अर्ध्यदान में आध्यात्मिक विचार के साथ-साथ वैज्ञानिक विचारों का भी गहन रहस्य भरा है.वेद , उपनिषद , पुराण में विस्तार से इसका उल्लेख किया गया है. वैदिक साहित्य में सूर्यदेव की महिमा का भाव-भरा गायन किया गया है. ‘ सविता ‘ को सूर्य की आत्मा कहा गया है. गायत्री का देवता सूर्य जीवन का केंद्र है.


स्कंद्पुराण में सविता और गायत्री में एकरूपता का वर्णन है.सूर्य आदिदेव हैं.समस्त देवों की आत्मा है.


  मनुस्मृति का वचन है  -----

सूर्य से वर्षा ,वर्षा से अन्न ,अन्न से अनेकों प्राणियों का जन्म और पोषण होता है.पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र होने के कारण काश्यप कहलाये. कश्यप मुनि की पत्नी अदिति के पुत्र होने से आदित्य नाम पड़ा. प्रखर रश्मियों को धारण करने के लिए अंशुमान कहलाये. काल-चक्र के प्रणेता भगवान सूर्य ही हैं. दिन, रात्रि,मास एवम संवत्सर का निर्माण उनसे ही होता है. सूर्य के दिव्य किरणों में कुष्ठ और चर्मरोग को नष्ट करने की अपार क्षमता है. श्री कृष्ण और जामवंती के पुत्र ‘साम्ब’ सूर्य-उपासना करके ही रोगमुक्त हुए थे. इन्ही कारणों की वजह से सूर्य को आरोग्य का देवता कहा गया है. उनकी वृहत पूजा का विधान क्रम में सूर्य-षष्ठी को अनंत श्रद्धा से मनाया जाताहै .’’सूर्य की महिमा’’ से .....

छठ-पूजा चार दिनों का होता है. कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन नियम पूर्वक स्नान पूजा से निवृत होकर अस्वाद भोजन करते हैं. प्याज-लहसून वर्जित है. पंचमी तिथि को ‘खरना’ के रूप में मानते हैं. दिनभर उपवास के बाद,गुड़ के खीर और पूरी की प्रसाद बनाते हैं. खुद भी वही खाते है था प्रसाद के रूप में वितरण करते हैं. ‘षष्ठी’ तिथि को निराहार रहकर पूजा के लिए नेवैद्द्य बनाते हैं. ठेकुआ व मौसमी फल और सब्जियों को भी चढाते हैं. बांस के बर्तन तथा मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करते हैं. शाम को डूबते हुए सूरज को दूध का अर्ध्य देते हैं. सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य का इंतजार धूप-दीप जलाकर घंटों पानी में खड़े होकर व्रती करते हैं. सूर्योदय होने पर फिर से दूध का अर्ध्य देकर पूजा पूर्ण करते हैं.


रामायण में-   माता-सीता और भगवान राम ने भी सूर्यषष्ठी के व्रत को किये थे..तथा सूर्य से आशीर्वाद प्राप्त किये थे.


महाभारत में -    महावीर कर्ण भगवान सूर्य के अनंत भक्त थे प्रतिदिन घंटों गंगा में खड़े होकर उनको अर्ध्य देते थे. यही अर्ध्य दान की परंपरा आज भी प्रचलित है. द्रोपदी भी सूर्यषष्ठी की व्रत की थी.


छठ व्रत को सुकन्या ने भी अपने जराजीर्ण अंधे पति के लिए की थी. ऐसी मान्यता है कि व्रत के सफल अनुष्ठान से ऋषि को आँख की ज्योति तथा युवा होने का गौरव प्राप्त है.  


‘षष्ठीदेवी’ दुर्गा का ही प्रतिरूप है. सूर्य और षष्ठी भाई-बहन के प्रेम को दर्शाते हैं. इसी लिए समान भावना के साथ दोनों को पूजा की जाती है. 


ये व्रत अपने श्रद्धा और हैसियत के अनुसार खर्च करके कोई भी कर सकता है. यह कठिन व्रत है जिसे तपस्या की तरह ही लोग करते हैं. दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर,गीत गाते हुए आनंद-पूर्वक सेवा और भक्ति भाव के द्वारा इस व्रत को पूर्ण करते हैं. सर्वकामना सिद्धि का ये पर्व सबकी मनोकामना पूर्ण करे.

भारती दास ✍️

Wednesday, 13 October 2021

जन नायक श्री राम

 


आतंक कहे या कथा आसुरी,
अनगिनत थी व्यथा ही पसरी.
मिथिला के मारीच-सुबाहु,
ताड़का से त्रस्त थे ऋषि व राऊ.
खर-दूषण-त्रिशरा असुर थे,
सूपर्णखा से भयभीत प्रचुर थे,
दानवों का नायक था रावण
डर से उसके थर्राता जन-गन .
जनता तो घायल पड़ी थी,
विचारशीलता की कमी बड़ी थी.
राम को आना मजबूरी थी,
जन मानस तो सुप्त पड़ी थी.
सही नीति साहस का साथ,
राम ने की थी राह आवाद.
ऋषि-सत्य भूपति बचे
देश सहित संस्कृति बचे.
आसुरी युद्ध को गति देने,
वनवासी बने थे सुमति देने
सत्ता-राज्य का त्याग दिये थे
सुख-साधन का परित्याग किये ये.
राम का उद्देश्य महान बड़े थे
शपथ-प्राण का आह्वान किये थे
वन-वन भटके जन-जन तारे,
ऋषि-मुनि की दशा सुधारे.
व्यापक-जन अभियान बनाये,
जननायक श्री राम कहाये.
भावनाओं की शक्ति जगाये,
प्रखर-तेजस्वी सेना सजाये.
पत्नी-पीड़ा सहज क्षोभ थी,
समाधान की अमिट सोच थी.
आहुति देने को सब थे तत्पर,
दोनों तरफ ही युद्ध था बर्बर.
असुरता को मरना ही पड़ा,
श्री राम के आगे झुकना ही पड़ा.
उनका ये जीवन संघर्ष
दर्शाता रामराज्य का अर्थ
चैतन्य में भरती पूंज-प्रकाश. 
आज भी राम का त्याग आदर्श.

भारती दास ✍️

Friday, 1 October 2021

वसुधा गुहारती

 

भारती निहारती

पीड़ा से कराहती,

श्रेष्ठवान पुत्र मेरे

क्यों बने स्वार्थी. 

असुरता ये विकृति 

राष्ट्र की ये दुर्गति, 

शौर्यवान पुत्र मेरे 

क्यों बने दुर्मति.

सृष्टि कांपती रही 

दृष्टि जागती रही,

नौजवान पुत्र मेरे 

हुए ना साहसी .  

आस्था दम तोड़ती

श्रद्धा जग छोड़ती,

ज्ञानवान पुत्र मेरे 

हुए ना प्रार्थी .

संस्कृति पुकारती 

स्वाभिमान झांकती, 

समर्थवान पुत्र मेरे 

हो गए आलसी.

व्यथा कथा बखानती 

रास्ता बुहारती,

विवेकवान पुत्र मेरे

हुए ना शुभार्थी. 

शुभता संवारती 

ममता को वारती,

ओजवान पुत्र मेरे 

हो गए सुखार्थी.  

कृतार्थ भाव मानती

प्रखरता निखारती,

जागो मेरे सारे पुत्र

वसुधा गुहारती .

भारती दास ✍️

Friday, 24 September 2021

पितृ स्मृति भी इक भक्ति है

 

हिन्दू धर्म में है अटूट विश्वास

होता है जीवन मृत्यु पश्चात

पितृ पक्ष के पावन दिनों में

पितृ पूजन है बेहद खास.

श्रद्धा सुमन अर्पण करते हैं

जलांजलि तर्पण करते हैं

साथ बिताये उन पल क्षण को

विह्वल हो स्मरण करते हैं.

कर्मकांड नहीं होता पाखंड

करते महसूस अनुपम आनंद

जरूरत मंद को शामिल करके

दान  देते  हैं श्रद्धा वंत.

थे दानवीर महावीर कर्ण

जीवनभर बांटे थे वे स्वर्ण

लेकिन अपने पूर्वजों का

नहीं किये थे श्राद्ध कर्म.

वे अपना दायित्व निभाने

परिजन को श्रद्धांजलि देने

वे पृथ्वी पर पुनः आये थे

पार्वण व्रत का पालन करने.

पौराणिक ये कथाएं कहती

पितृ स्मृति भी है इक भक्ति

पूर्वजों की पुण्य तिथि पर

श्रद्धा नमन की है ये पद्धति.

सत्य यही धर्म ग्रंथ कहे

संकल्प सदा हरवक्त रहे

आडंबर ना माने इसको

कर्म हमेशा ही श्रेष्ठ रहे.

भारती दास ✍️

Saturday, 18 September 2021

नारी की महता

 

नारी परिवार की मुख्य धूरी है इसके बिना किसी परिवार की कल्पना कभी नहीं की जा सकती.परिवार की स्थिति-परिस्थिति क्या है कैसी है इसकी जिम्मेदारी उस परिवार की नारी पर ही है परन्तु स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार उसे नहीं मिलता.

अपने परिवार को समृद्ध करने के लिए परिश्रम करती है, प्रार्थनायें-व्रत और उपवास करती है.वो कई भूमिकाओं में जीवित होती है ----- बेटी ,बहन ,पत्नी और माँ इत्यादी हर भूमिकाओं में स्नेह दुलार और ममता लुटाती है,बेटी के रूप में माता-पिता का गौरव बढाती है,बहन के रूप में भाई को सहयोग करती है,पत्नी के रूप में पति के दुःख-सुख की सहभागिनी होती है तथा अपने धर्म का पालन करती है.माँ के रूप में अनगिनत कष्ट और पीड़ा सहकर एक नए अस्तित्व को आकार देकर नए जीवन को संवारती है.

जिस घर में स्त्री के किसी भी रूप का अभाव होता है उस अभाव को सहज ही महसूस किया जा सकता है.घर को संभालने वाली परिवार के हर सदस्य की सेवा करने वाली सबके सुख दुःख का ध्यान रखने वाली स्त्री घर की सौभाग्य लक्ष्मियाँ ही तो होती है.परन्तु आधुनिकता के अभिशाप से ग्रसित लोग उनके सेवा भाव व कार्य के महत्व को नजर अंदाज करते है उन्हें कमतर आंकते हैं.ऐसी सोच वाले घरेलू स्त्री को प्रतिभाहीन समझते हैं.उनके विचार से वही नारी श्रेष्ठ है जो नौकरी करती है,धन कमाती है अर्थोपार्जन में पुरुष का हाथ बंटाती है.सच तो यह है कि घर की देख भाल करने वाली,बच्चों के शील संस्कार और शिक्षा पर ध्यान देने वाली नारी का महत्त्व कभी कम नहीं हो सकता.जीवन के संचालन में धन महत्वपूर्ण है ये हमसब जानते हैं लेकिन धन ही सब कुछ हो ये सही नहीं है.

 घरेलू नारी भले ही कोई कमाई नहीं करती हो परन्तु घर के अनगिनत कामों को करके पैसा भी बचाती है और घर में ख़ुशी का माहौल बना पाती है.घर की साफ-सफाई करना, नाश्ता-खाना बनाना,कपड़े धोना,बच्चों को पालना व परवरिश करना आसान नहीं है साथ में शील-संस्कार और संवेदना की बातें भी करना तो फिर उनकी हैसियत को कम आंकना कहां की बुद्धिमानी है.

घरेलु नारी के काम-काज के बारे में यही सोचते हैं कि उसे ये सब हर-हाल में करना है जिसके लिए उसे स्नेह और सम्मान नहीं मिलता है. लोगों की इस सोच की वजह से वो मानसिक और शारीरिक दोनों ही रूप से पल-पल आहत होती है.

व्यापक और गहन परिप्रेक्ष्य में विचार करने पर यही निष्कर्ष निकलता है कि परिवार व समाज का नींव नारी के उन्ही कामों पर टिकी है जो कही पर दर्ज नहीं होता.ग्रामीण जीवन में नारी के योगदान के बिना कृषि कार्य संभव ही नहीं है.कहीं-कहीं देखने को मिली है कि शिक्षित नारियों ने अपनी उच्च शिक्षा के वाबजूद सोच समझकर हाउस वाइफ बनना स्वीकार किया है ताकि वे अपने घर-परिवार को पर्याप्त समय दे सके,बच्चों के भविष्य बना सके.वे घर-परिवार के रोजमर्रा के जीवन को बेहतर बनाने के लिए अपनी शिक्षा का सदुपयोग कर अपना मूल्यांकन कर सके. अतः लोग और समाज नारी के कार्य को समझे अपनी मानसिकता बदले जिससे कई समस्यायें यूँ ही सुलझ जाएगी.अधिकतर लोग ये तो जरुर मानते हैं कि घर-परिवार की शोभा नारी ही है जो शक्ति-रूपिणी,ज्ञान-रूपिणी व लक्ष्मी-रूपिणी होती है.                                                            

विमल-भावना दृष्टी से झरती 

तृप्त मोह ममता से करती

सेवा संयम शिक्षण देती  

पावन जिसकी चिन्तन होती 

विपदाओं को थामके चलती                        

पलकों पर सावन को रखती  

नैनों में सपनो को सजाती 

उर सागर से प्रेम बहाती

वही नारी शक्ति कहलाती 

चिर वंदिता सदा वो होती.

भारती दास ✍️


Sunday, 12 September 2021

 मैं हिन्दी हूं मैं हिन्दी हूं

भारत के भाल की बिन्दी हूं

जैसे सूरज चांद चमकते

वैसे कपाल पर सजती हूं

मैं हिन्दी हूं मैं हिन्दी हूं....

रुप सरस्वती अन्नपूर्णा सी

हंसी है मनहर मां लक्ष्मी सी

मैं सुंदर शोभित लगती हूं

मैं हिन्दी हूं मैं हिन्दी हूं....

गिरि शिखर की महिमा जैसी

ऋषि मुनि की वेद ऋचा सी

हर मुख से भाषित होती हूं

मैं हिन्दी हूं मैं हिन्दी हूं....

संस्कृत है मेरी जननी

मै हूं उसकी प्यारी भगिनी

मैं दिलों में सबके रहती हूं

मैं हिन्दी हूं मैं हिन्दी....

अनपढ गंवार की बोली हूं

शिक्षित की हंसी ठिठोली हूं

मैं प्रेम ही प्रेम समझती हूं

मैं हिन्दी हूं मैं हिन्दी....

भारती दास ✍️

हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं


Friday, 3 September 2021

शिक्षक दिवस

 

राधा-कृष्णन के जन्म-दिन पर

शिक्षक दिवस मनाते हैं 

उनके सुन्दर सद्चिन्तन से 

जन-जन प्रेरणा पाते हैं.

श्रेष्ठ चिन्तक और मनीषी 

आदर्श शिक्षक थे महान

शिक्षा की क्रांति लाने में

अहम् था उनका योगदान.

सामान्य नहीं होते हैं शिक्षक 

वो होते हैं शिल्पकार

गीली मिटटी को संवारनेवाला

जैसे होते हैं कुंभकार .

शिक्षा का ये रूप नहीं है 

हो केवल अक्षर का ज्ञान 

पथ के तिमिर मिटाने वाले

शिक्षक होते ज्योति समान.

संयम सेवा अनुशासन का

वो देते हैं सदा प्रशिक्षण 

जीने की वो कला सिखाते 

सहज-सरल बनाते जीवन. 

शिक्षक होते पथ प्रदर्शक 

वो होते मन के आधार 

मानव-मूल्यों को सिंचित करके

उर में भरते सुभग विचार.

शिक्षण के महत्त्व को समझे 

सार्थक हो इनकी पहचान    

बस प्रतीक का पर्व बने ना

पावन हो शिक्षक की शान.

भारती दास ✍️

शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं