रवि की प्रखरता चरम पर होती
तीव्र गर्म हवायें चलती
भीषण तपन दोपहर की होती
अकुलाहट तन-मन में होती|
प्रकृति का है अलग ही तंत्र
रहे शाश्वत उद्गम और अंत
बरसेगा जब अम्बू तरंग
ताप का ज्वाला होगा मंद|
ज्येष्ठ माह है बड़ा ही व्यापक
बड़ा मंगल है मंगलकारक
शनि-विष्णु है मोक्ष प्रदायक
वट-सावित्री भी शुभफलदायक|
संयम सेवा तप है सुखकारी
श्रीराम-हनुमान की भेंट है
न्यारी
गंगा-दशहरा पावन पुण्यकारी
गायत्री जयंती भी है हितकारी|
भक्ति-शक्ति की रीत अनुपम है
अध्यात्म-धर्म की सीख परम है
उष्ण-तरल का प्रगाढ़ मिलन है
चिर-मंगल का साध सघन है|
भारती दास ✍️
ज्येष्ठ माह की व्यापकता का बहुत सटीक वर्णन किया गया है ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteज्येष्ठ माह पर सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteधन्यवाद सर
ReplyDeleteज्येष्ठ की तपती दोपहर को जितनी खूबसूरती से शब्दों में ढाला है, वो कमाल है। मुझे ये बात सबसे खास लगी कि हर तपन के बाद ठंडक आती है—जैसे जीवन की हर मुश्किल के बाद सुकून। ये पंक्तियाँ remind कराती हैं कि गर्मी का मौसम सिर्फ झुलसाने वाला नहीं होता, बल्कि ये हमें धैर्य, श्रद्धा और साधना की असली सीख भी देता है।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDelete