Friday, 29 November 2024

पौष माह की शीत घड़ी है


दिन है छोटा रात बड़ी है

पौष माह की शीत घड़ी है....

मदिरा जैसी मादक रजनी

सौंदर्य सजाती जैसी सजनी

ललित लालसा ललक भरी है

पौष माह की शीत घड़ी है।

सूर्यदेव भी देर से आते

मुख पर अपने चादर ओढ़े

अरुणिम प्राची धूंध भरी है

पौष माह की शीत घड़ी है।

पवन बदन को कंपा रहा है

तन गर्माहट ढूंढ रहा है

अंगीठी भी धधक रही है

पौष माह की शीत घड़ी है।

अलसाई अंगराई लेती

शुभ्र प्रकृति सुखदाई लगती

लता गात पर ओस पड़ी है

पौष माह की शीत घड़ी है ।

भारती दास ✍️


Wednesday, 20 November 2024

ईश का साथ सदा होता है

नियति कैसी हुई है अपनी 

प्राण, दास बनकर बैठा है 

सतत् संघर्ष भरा है पथ में 

दुर्बल तन-मन ऊब चुका है।

शीत पवन के शक्ति बल से 

थककर मैं तो गिरी बहुत हूं 

निर्बल बनकर रही हमेशा 

ताप भ्रांति की सही बहुत हूं।

रजनी निद्रा के संग में यूं 

जब भी मन विचलित होता है 

अदृश्य रूप वाणी ये कहती

ईश का साथ सदा होता है।

मस्तक में छाई अतृप्ति 

चिर विषाद बन जाता है 

यही विडंबना है जीवन का

अवसाद अश्क बन बह जाता है।

भारती दास ✍️