नहीं बनता समाज बड़ों से
नहीं चलता सब काज बड़ों से
कार्य कुशल व्यक्ति ही महान
जिससे होती उसकी पहचान.
तूफानों के बीच में रहते
अथक मनोबल मन में भरते
बारिश की बूंदों को सहते
जी तोड़ मेहनत वो करते.
प्रखर ताप में तन को जलाते
ऊंचे ऊंचे महल बनाते
खुद रहने खाने को तरसते
सच्चे हितैषी बनकर जीते.
वे कामचोर इंसान न होते
चोर नहीं बे" इमान न होते
लोकहित से जुड़े जो होते
वो सभी मजदूर ही होते.
मजदूर बिना कुछ काम न होता
जन समाज की शान न होता
धर्म कर्म स्वाभिमान न होता
इक दूजे का मान न होता.
भारती दास ✍️
सुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteप्रेरणादायी सुंदर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
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