हे श्रेष्ठ युग सम्राट सृजन के
नमन अनेकों विराट कलम के....
लेखों के सुन्दर मधुवन में
सीखों के अनुपम उपवन में
मधुर विवेचन संचित बन के
नमन अनेकों विराट कलम के....
लोभ-दंभ की जहाँ है काई
ह्रदय में सबकी घृणा समाई
लिखे हजारों ग्रन्थ शुभम के
नमन अनेकों विराट कलम के....
तुलसी-सूर चाणक्य की महता
जिसने लिखा मन की मानवता
सत्य ही शिव है गहन लेखन के
नमन अनेकों विराट कलम के....
संवेदन बन जाये जन-जन
महके मुस्काए वो क्षण-क्षण
तंतु बिखर जाते बंधन के
नमन अनेकों विराट कलम के....
जाने कितने छंद सृजन के
कह देती है द्वन्द कथन के
नैन छलक पड़ते चिन्तन के
नमन अनेकों विराट कलम के....
भारती दास ✍️
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-03-2022) को चर्चा मंच "कवि कुछ ऐसा करिये गान" (चर्चा-अंक 4378) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद सर
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन, भारती दी।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति जी
Deleteलेखों के सुन्दर मधुवन में
ReplyDeleteसीखों के अनुपम उपवन में
मधुर विवेचन संचित बन के
नमन अनेकों विराट कलम के....
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर सृजन।
धन्यवाद सुधा जी
Deleteबेहतर सृजन।
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद अनीता जी
Deleteसादर नमन.
ReplyDeleteधन्यवाद नूपुरं जी
ReplyDeleteजाने कितने छंद सृजन के
ReplyDeleteकह देती है द्वन्द कथन के
नैन छलक पड़ते चिन्तन के
नमन अनेकों विराट कलम के....
सुन्दर रचना
धन्यवाद उषा किरण जी
ReplyDeleteनमन भारती! विराट कलम के!!!
ReplyDeleteधन्यवाद सर
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