Friday 15 January 2021

चांद के घर में बैठे सुख से

 



जीवन के निरंतरता में
याद नदी सी बहती रहेगी
दूर हुये क्यों सबसे बिछड़कर
मां की ममता बिलखती रहेगी.
चोट मिली है सारी उमर की
कातर करूणा सिसकती रहेगी
कौन समझता दर्द किसी का 
वहशी ये दुनिया हंसती रहेगी.
चांद के घर में बैठे सुख से
विकल सी आंखें झड़ती रहेगी
प्रारब्ध बड़ा है जीवन छोटा
मौन व्यथा ये कहती रहेगी.
सूने-सूने से वृन्तों पर
पुष्प कली फिर खिलती रहेगी
अर्पित है भावों के गूंचे
स्नेह की लौ जलती ही रहेगी.
भारती दास ✍️
भाईजी की छठी पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि 

 

14 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (17-01-2021) को   "सीधी करता मार जो, वो होता है वीर"  (चर्चा अंक-3949)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --
    हार्दिक मंगल कामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

    ReplyDelete
  2. बहुत बहुत धन्यवाद सर

    ReplyDelete
  3. चांद के घर में बैठे सुख से
    विकल सी आंखें झड़ती रहेगी
    प्रारब्ध बड़ा है जीवन छोटा
    मौन व्यथा ये कहती रहेगी.----भाईजी की श्रद्धांजल‍ि के ल‍िए इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद

      Delete
  4. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  5. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी

      Delete
  6. सुन्दर सारगर्भित कृति..

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद जिज्ञासा जी

      Delete
  7. अपने जाने के बाद भी कभी दिलों से नहीं जाते हैं
    बहुत अच्छी मर्मस्पर्शी प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद कविता जी

      Delete
  8. प्रारब्ध बड़ा है जीवन छोटा
    मौन व्यथा ये कहती रहेगी. बहुत सुन्दर |

    ReplyDelete
  9. धन्यवाद सर

    ReplyDelete