कवि तुम गीत लिखो ऐसा
अक्षर-अक्षर मुखरित होकर
बोले प्रेम की भाषा , कवि
तुम .......
कला वही सच्ची कहलाती
जिस चिंतन को चित्त अपनाती
उर-स्पंदन के जैसा , कवि
तुम .......
जो झकझोरे भावुकता को
जागृत कर दे मानवता को
जो मनुज में भर दे आशा ,
कवि तुम .......
इंद्रधनुष सा मन हर्षा दे
युग-युग जलकर राह दिखा दे
उन दीपशिखा के जैसा , कवि
तुम .........
मौन व्यथा की स्वर बन जाये
राग करुण बन नीर बहाये
दे व्याकुलता में दिलासा ,
कवि तुम .........
कुंठित मन को प्रेरित कर दे
नयी बोध नयी दृष्टि भर दे
भर दे नव अभिलाषा , कवि तुम
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