Sunday, 23 June 2013

दुर्गा प्रार्थना

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हे माँ स्नेह से गले लगाना
मैंने जितने पुण्य किये हैं
याद उसे ही रखना ,हे माँ ......
मन में पीड़ा भार बहुत है
जीवन में अंधकार बहुत है
ज्ञान प्रकाश दिखाना ,हे माँ .......
सद्दभावों को मन में बसाना
दुश्चिन्तन को दूर भगाना
सद्पथ सदा दिखाना ,हे माँ ........
स्वर्ग धरा पर मैं रच पाऊं
पाप पतन से मैं बच पाऊं
हाथ पकड़ के उठाना,हे माँ ......... 
भारती दास

1 comment:

  1. मुझे आपकी कविता पढ़कर ऐसा लगा जैसे सीधे माँ के सामने खड़े होकर मन की सारी बातें कह दी हों। सच में, यह हर किसी के लिए प्रेरक है, जो जीवन में सही मार्ग ढूंढने की कोशिश कर रहा है। मुझे यह भी अच्छा लगा कि कविता में सिर्फ प्रार्थना नहीं, बल्कि सच्चाई और आत्मनिरीक्षण भी है।

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