Saturday 27 June 2020

गगन से बरसा मौत अगन का




गगन से बरसा मौत अगन का
तड़ित समाधि बना निर्मम सा
छीन लिया कुंकुम की आभा
रूप सुहागन की सुख शोभा.
शाप ताप की ज्वाला बनकर
कुपित प्रलय दर्शाया भू पर
वज्रपात का विषाद भयंकर
दंड विधान ये कैसा ईश्वर.
मूर्ति से बाहर आ क्षण भर
देखो दशा धरती का पलभर
उजड़ गया कितनों का आंगन
पग-पग विषम हुआ है जीवन.
अश्क पलक में छलक रहे हैं
कुंज में बचपन बिलख रहे हैं
दो अवलंबन संबल स्वामी
शोक क्षोभ हरो अंतर्यामी.
भारती दास



6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 28 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद यशोदा जी

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद विश्वमोहन जी

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  3. बहुत सुंदर रचना

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद अनुराधा जी

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