Thursday, 30 December 2021

सर्वथा उत्कर्ष हो

 

महारोग इक विपदा बनकर
शोकाकुल कुंज बनाया है
बीते कल की व्यथा कथा से
प्रति घर में दर्द समाया है.
किसी का भाई पिता किसी का
किसी ने ममता गंवाया है
वातावरण की विषैलेपन से
व्याकुल मन घबराया है.
सर्वथा उत्कर्ष हो अब
ना हो कोई क्षोभ व गम
हर्ष ही हर्ष सहर्ष हो सब
सुखद सुभग बन आये क्षण.
विघ्न विहीन हो नया वर्ष ये
जन-जन में अनुराग भरे
नई सुबह की नव बेला से
दुख संताप विहाग हरे.
नव किसलय उल्लास बढाये
डाल-डाल पर खिले सुमन
स्वर्णिम लक्ष्य मिले जीवन में
पग पग पर हो नेह समर्पण.
भारती दास ✍️
(विहाग - वियोग)

Thursday, 23 December 2021

विशालकाय लिए बदन

 विशालकाय लिए बदन

सुगंध भी बहुत है कम

कहा अकड़ कर गुलाब

मुझसे महक रहा चमन.

गुलाब को घमंड था

निज रंग रूप गंध का

करता था हरदम बखान

मदमस्त सी सुगंध का.

मेरे बड़े शरीर पर

मां सरस्वती बैठकर

भरती है वीणा मे स्वर

ज्ञान का देती है वर.

सौंदर्य बना सौभाग्य है

हूं गंधहीन दुर्भाग्य है

बोला कमल - भाई गुलाब

मेरा यही तो भाग्य है.

हम देश के पहचान हैं

संवेदित मन प्राण हैं

चरित्र में नहीं दोष है

हम स्वार्थी ना महान हैं.

सौंदर्य और सुगंध जैसे

सहकार और सहयोग वैसे

दोनों के ही संयोग से

उन्नति होगा योग से.

हंस पड़ा फिर गुलाब

तोड़ कर अहं का भाव

दोनों ही हैं लाजबाव

हैं बेहतरीन बेहिसाब.

भारती दास ✍️



Tuesday, 14 December 2021

ज्ञान बड़ी या भक्ति

 


पूर्णचंद्र का अंतिम प्रहर था
मंद मंद चल रहा पवन था
गंगा की लहरें इठलाती
जैसे शैशव वय बलखाती
विश्वनाथ का पूजा अर्चन
करने बैठे ध्यान व वंदन
एकाग्र हो गई सहज चेतना
पूर्ण हो गयी सघन प्रार्थना
अज्ञानता का मिटा अंधेरा
चित्त से दूर हुआ भ्रम सारा
आम्र वृक्ष का मोहक बागान
सुगंधित पुष्प से सजा उद्यान
आचार्य शंकर बैठे थे मौन
ज्ञान-भक्ति में श्रेष्ठ है कौन
जन जन का क्लेश निवारण
अज्ञानी के भटकन का कारण
ज्ञान से जीवन सहज हो जाता
भक्ति प्रभु के पास ले आता
एक वृद्ध थे झुकी कमर थी
दंतहीन मुख दृष्टि सरल थी
हाथों में पुस्तक को थामें
आये थे शंकर से मिलने
कंपित स्वर से बोले विनीत
हे गुरुवर दें ज्ञान की भीख
विद्व जनों में होगा सम्मान
लोग कहेंगे श्रेष्ठ विद्वान
वृद्ध की मनोदशा समझकर
द्रवित हुये थे ये सब सुनकर
इतनी आयु होने पर भी
क्षीण हुयी ना तृष्णा मन की
इच्छाओं आशाओं में नहीं है
ज्ञान कभी शब्दों में नहीं है
दिवस रात्रि और सुबहो शाम
शिशिर बसंत आये तमाम
काल ने कर दी पूरी आयु
पर छोड़ न पाये इच्छा यूंही
मोक्ष समीप तो होने को है
ज्ञान काम न आने को है
हे महामना गोविंद को भजिये
भक्ति की महिमा समझिये
अब केवल है एक उपाय
गोविंद नाम से अमृत पाय
ज्ञान बिना जीवन दुखद है
अंत समय में भक्ति सुखद है
बिन भक्ति मोक्ष सहज नहीं है
ज्ञान भक्ति में भेद यही है
वृद्ध ने उन उपदेश को जाना
ज्ञान से बड़ी भक्ति को माना.
भारती दास ✍️






Friday, 10 December 2021

नमन अनेकों जनरल रावत

 न जाने कहां वो वीर गये

सर्वस्व न्योछावर कर गये

आतंकमुक्त कश्मीर थे करने

रहे लक्ष्य अधूरे थे पुराने सपने

किसे पता था छोड़ जायेंगे

सब से वादा तोड़ जायेंगे

वो राष्ट्र पुत्र रूला गये

इस देश को दहला गये

विघ्नों से वे डरते नहीं थे

अपने लिए जीते नहीं थे

कीर्ति उनकी अपार थी

सुख शांति की भरमार थी

हर वक्त साथ रही स्वामिनी

चली स्वर्ग तक वो भामिनी

अतिम सफर पर चले गये

अलविदा सबको कह गये

वो रहेंगे अब यादों में यथावत

नमन अनेकों जनरल रावत.

भारती दास ✍️


Friday, 3 December 2021

निराशा _____ हताश मन की व्यथा

 



नकारात्मक विचारों व भावनाओं के साये से घिरे रहनेवाले लोग ही ज्यादातर निराश दिखाई पड़ते है. आज की पीढ़ी के अधिकतर लोग हताशा भरी परिस्थिति का सामना करते हैं क्योंकि वे व्यवहार कुशल नहीं होते हैं .सामान्य जिन्दगी में भी अपने आपको असहाय महसूस करते हैं .मनोबल कमजोर होता है .अजीब सी उदासी से घिरा जीवन होता है .
        15 से 40 वर्ष के लोग इसी  उहापोह में जीवन व्यतीत करते हैं की हमारा अब कुछ नहीं होगा .वे सिर्फ अपने –आप में ही कमी ढूंढते दिखाई देते हैं. हर कामयाब आदमी से डर लगता है. लम्बे समय तक चलने वाली जद्दोजहद की वजह से मनःस्थिति हताशा में डूब जाती है. किसी भी कार्य को करने के लिए उत्साहित होने के बजाय  निराशाजनक भाव होता है. सही निर्णय लने की क्षमता नहीं रह जाती है. सकारात्मक सोच से दूर होने लगता है. मन हमेशा उदास ही रहता है.
                 निराशा[तनाव]यानि ‘’डिप्रेशन’’एक मानसिक रोग है. इस रोग में आदमी सामान्य चुनौती को भी नहीं स्वीकार कर पाता बल्कि अपना कदम पीछे हटा लेता है. खुशनुमा व्यक्तित्व नहीं रख पाता, डरा-डरा सहमा-सहमा सा माहौल रखता है. "डिप्रेशन"का एक कारण यह भी होता है की nyurotransmitre ठीक ढंग से कम नहीं करते है जिस वजह से निराशा देखने को मिलते है. कुछ अच्छा नहीं लगना, जल्दी थक जाना ये इसके लक्षण होते है. एक कारण यह भी हो सकता है कि जिन्दगी के प्रति सही समझ विकसित नहीं कर पाते है जिससे असफलता मिलती है. धीरे –धीरे अपनी क्षमताओं पर संदेह करने लगते है. एकाग्रता में कमी आने लगती है.
                 अपनी क्षमताओं का सही आकलन करने के लिए सबसे पहले मन को मजबूत बनाना होगा. सकारात्मक सोच के द्वारा अवसाद को मन से दूर भगाना होगा. चिंतन-मनन व अध्यात्मिक अध्ययन के द्वारा विचार शैली को बदलना होगा. स्वाध्याय से सुन्दर विचारों का पोषण मस्तिष्क को मिलेगा.
                 उपासना को नियमित दिनचर्या में शामिल करने से शंकाओं का नाश तथा खुद पे विश्वास बढ़ता है. भगवान के सानिध्य का एहसास होता है. हताशा-निराशा स्वतः नाश होती है. नियमित योग द्वारा भी मनःस्थिति शांत व प्रसन्न होती है. उगते हुए सूरज को नमस्कार करने से मन स्वस्थ व सक्रिय होते हैं.
                   इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए की हमें निराशा क्यों मिले. ईश्वर ने सबको बनाया है. हर किसी में कोई न कोई गुण जरुर दिया है. मुझमे भी कुछ गुण होगा ही, व्यवहार कुशल बनकर लोगों तक पहुंचकर अपना हताशा भगाना चाहिए. जबतक जीवन है हरदिन कुछ सीखने को मिलेगा. अपने को भी तौलते रहना चाहिए ताकि कमी को सुधार सकें. सुन्दर-सुखद जीवन व्यतीत करने के उपाय ढूंढना चाहिए. हँसना ,गाना व खिलखिलाना चाहिए.
                  महाकवि मैथिलीशरण गुप्तजी ने कहा है .........
    "नर हो न निराश करो मन को
    कुछ काम करो ,कुछ काम करो
    जग में रहकर निज नाम करो
    यह जन्म हुआ किस अर्थ कहो
    समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
    कुछ तो उपयुक्त करो तन को
    नर हो न निराश करो मन को."
भारती दास ✍️

Saturday, 27 November 2021

पद्मश्री दुलारी देवी


अभावों में ही पली बढ़ी

नहीं थी कुछ भी लिखी पढी

मल्लाह परिवार में हुआ जनम

मुश्किलों से होता भरण पोषण

पति नहीं था ससुराल नहीं थी

एक बेटी थी जो जीवित नहीं थी

क़दम कदम पर दर्द व्यथा थी

संघर्षों की वो इक गाथा थी

झाड़ू पोछा छोड़ चली वो

रंगों की कूंची पकड़ चली वो

हाथों में कमाल की जादू था 

लगन संयम मन काबू में था 

गजब की चित्र बनाती थी

वो जिजीविषा बन जीती थी

उनके काम को नाम मिला

पद्मश्री का सम्मान मिला

एक प्रेरणा बनकर उभरी

जाति धर्म से ऊपर निखरी

कला ने दी सुंदर पहचान

बिहार की बेटी है दुलारी नाम.

भारती दास ✍️

Saturday, 13 November 2021

हमेशा रहती है दूर

 

एक सुशीला महिला

हमेशा रहती है दूर

शराब की विकृत भावों से

गंदी नजर की कुंठाओं से

अमीर पतियों की घपलेबाजी से

सुविधाओं की चोंचलेबाजी से

करती नहीं कभी गुरूर

हमेशा रहती है दूर....

एक कुलीना महिला

हमेशा रहती है दूर

अधूरे ज्ञान की प्रशंसा से

मित्र गणों की अनुशंसा से

बद आचरण की परिभाषा से

स्वतंत्र उत्थान की अभिलाषा से

होती नहीं कभी मगरुर

हमेशा रहती है दूर....

एक अबला सी महिला

हमेशा रहती है दूर

मंहगे तोहफे उपहारों से

लालच और व्यभिचारों से

खोखली झूठी आकांक्षाओं से

व्यर्थ सी कई इच्छाओं से

 होती नहीं बेबस मजबूर

हमेशा रहती है दूर....

भारती दास ✍️

Monday, 8 November 2021

आस्था का महपर्व ---छठ


सूर्य की उपासना अनादी काल से ही भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के समस्त भागों में श्रद्धा-भक्ति के साथ की जाती रही है.सूर्य सबके ही उपास्य देव रहे हैं. हमारे देश में सूर्य उपासना के लिए विशेष पर्व छठ है जिसे बहुत ही आस्था-श्रद्धा के साथ मनाया जाता है .’ षष्ठी देवी ‘ दुर्गा का ही प्रतिरूप है . ‘ सूर्य और षष्ठी ‘ में भाई-बहन का संबंध है. इसलिए सूर्य उपासना की विशिष्ट व विशेष तिथि है षष्ठी. ‘ सूर्यषष्ठी ‘ व्रत होने के कारण इसे छठ कहा जाता है. इस पर्व में भगवान सूर्य को डूबते हुए और उगते हुए दोनों रूपों में भाव भरा अर्ध्य चढ़ाया जाता है.

         इस अर्ध्यदान में आध्यात्मिक विचार के साथ-साथ वैज्ञानिक विचारों का भी गहन रहस्य भरा है.वेद , उपनिषद , पुराण में विस्तार से इसका उल्लेख किया गया है. वैदिक साहित्य में सूर्यदेव की महिमा का भाव-भरा गायन किया गया है. ‘ सविता ‘ को सूर्य की आत्मा कहा गया है. गायत्री का देवता सूर्य जीवन का केंद्र है.


स्कंद्पुराण में सविता और गायत्री में एकरूपता का वर्णन है.सूर्य आदिदेव हैं.समस्त देवों की आत्मा है.


  मनुस्मृति का वचन है  -----

सूर्य से वर्षा ,वर्षा से अन्न ,अन्न से अनेकों प्राणियों का जन्म और पोषण होता है.पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र होने के कारण काश्यप कहलाये. कश्यप मुनि की पत्नी अदिति के पुत्र होने से आदित्य नाम पड़ा. प्रखर रश्मियों को धारण करने के लिए अंशुमान कहलाये. काल-चक्र के प्रणेता भगवान सूर्य ही हैं. दिन, रात्रि,मास एवम संवत्सर का निर्माण उनसे ही होता है. सूर्य के दिव्य किरणों में कुष्ठ और चर्मरोग को नष्ट करने की अपार क्षमता है. श्री कृष्ण और जामवंती के पुत्र ‘साम्ब’ सूर्य-उपासना करके ही रोगमुक्त हुए थे. इन्ही कारणों की वजह से सूर्य को आरोग्य का देवता कहा गया है. उनकी वृहत पूजा का विधान क्रम में सूर्य-षष्ठी को अनंत श्रद्धा से मनाया जाताहै .’’सूर्य की महिमा’’ से .....

छठ-पूजा चार दिनों का होता है. कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन नियम पूर्वक स्नान पूजा से निवृत होकर अस्वाद भोजन करते हैं. प्याज-लहसून वर्जित है. पंचमी तिथि को ‘खरना’ के रूप में मानते हैं. दिनभर उपवास के बाद,गुड़ के खीर और पूरी की प्रसाद बनाते हैं. खुद भी वही खाते है था प्रसाद के रूप में वितरण करते हैं. ‘षष्ठी’ तिथि को निराहार रहकर पूजा के लिए नेवैद्द्य बनाते हैं. ठेकुआ व मौसमी फल और सब्जियों को भी चढाते हैं. बांस के बर्तन तथा मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करते हैं. शाम को डूबते हुए सूरज को दूध का अर्ध्य देते हैं. सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य का इंतजार धूप-दीप जलाकर घंटों पानी में खड़े होकर व्रती करते हैं. सूर्योदय होने पर फिर से दूध का अर्ध्य देकर पूजा पूर्ण करते हैं.


रामायण में-   माता-सीता और भगवान राम ने भी सूर्यषष्ठी के व्रत को किये थे..तथा सूर्य से आशीर्वाद प्राप्त किये थे.


महाभारत में -    महावीर कर्ण भगवान सूर्य के अनंत भक्त थे प्रतिदिन घंटों गंगा में खड़े होकर उनको अर्ध्य देते थे. यही अर्ध्य दान की परंपरा आज भी प्रचलित है. द्रोपदी भी सूर्यषष्ठी की व्रत की थी.


छठ व्रत को सुकन्या ने भी अपने जराजीर्ण अंधे पति के लिए की थी. ऐसी मान्यता है कि व्रत के सफल अनुष्ठान से ऋषि को आँख की ज्योति तथा युवा होने का गौरव प्राप्त है.  


‘षष्ठीदेवी’ दुर्गा का ही प्रतिरूप है. सूर्य और षष्ठी भाई-बहन के प्रेम को दर्शाते हैं. इसी लिए समान भावना के साथ दोनों को पूजा की जाती है. 


ये व्रत अपने श्रद्धा और हैसियत के अनुसार खर्च करके कोई भी कर सकता है. यह कठिन व्रत है जिसे तपस्या की तरह ही लोग करते हैं. दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर,गीत गाते हुए आनंद-पूर्वक सेवा और भक्ति भाव के द्वारा इस व्रत को पूर्ण करते हैं. सर्वकामना सिद्धि का ये पर्व सबकी मनोकामना पूर्ण करे.

भारती दास ✍️

Wednesday, 13 October 2021

जन नायक श्री राम

 


आतंक कहे या कथा आसुरी,
अनगिनत थी व्यथा ही पसरी.
मिथिला के मारीच-सुबाहु,
ताड़का से त्रस्त थे ऋषि व राऊ.
खर-दूषण-त्रिशरा असुर थे,
सूपर्णखा से भयभीत प्रचुर थे,
दानवों का नायक था रावण
डर से उसके थर्राता जन-गन .
जनता तो घायल पड़ी थी,
विचारशीलता की कमी बड़ी थी.
राम को आना मजबूरी थी,
जन मानस तो सुप्त पड़ी थी.
सही नीति साहस का साथ,
राम ने की थी राह आवाद.
ऋषि-सत्य भूपति बचे
देश सहित संस्कृति बचे.
आसुरी युद्ध को गति देने,
वनवासी बने थे सुमति देने
सत्ता-राज्य का त्याग दिये थे
सुख-साधन का परित्याग किये ये.
राम का उद्देश्य महान बड़े थे
शपथ-प्राण का आह्वान किये थे
वन-वन भटके जन-जन तारे,
ऋषि-मुनि की दशा सुधारे.
व्यापक-जन अभियान बनाये,
जननायक श्री राम कहाये.
भावनाओं की शक्ति जगाये,
प्रखर-तेजस्वी सेना सजाये.
पत्नी-पीड़ा सहज क्षोभ थी,
समाधान की अमिट सोच थी.
आहुति देने को सब थे तत्पर,
दोनों तरफ ही युद्ध था बर्बर.
असुरता को मरना ही पड़ा,
श्री राम के आगे झुकना ही पड़ा.
उनका ये जीवन संघर्ष
दर्शाता रामराज्य का अर्थ
चैतन्य में भरती पूंज-प्रकाश. 
आज भी राम का त्याग आदर्श.

भारती दास ✍️

Friday, 1 October 2021

वसुधा गुहारती

 

भारती निहारती

पीड़ा से कराहती,

श्रेष्ठवान पुत्र मेरे

क्यों बने स्वार्थी. 

असुरता ये विकृति 

राष्ट्र की ये दुर्गति, 

शौर्यवान पुत्र मेरे 

क्यों बने दुर्मति.

सृष्टि कांपती रही 

दृष्टि जागती रही,

नौजवान पुत्र मेरे 

हुए ना साहसी .  

आस्था दम तोड़ती

श्रद्धा जग छोड़ती,

ज्ञानवान पुत्र मेरे 

हुए ना प्रार्थी .

संस्कृति पुकारती 

स्वाभिमान झांकती, 

समर्थवान पुत्र मेरे 

हो गए आलसी.

व्यथा कथा बखानती 

रास्ता बुहारती,

विवेकवान पुत्र मेरे

हुए ना शुभार्थी. 

शुभता संवारती 

ममता को वारती,

ओजवान पुत्र मेरे 

हो गए सुखार्थी.  

कृतार्थ भाव मानती

प्रखरता निखारती,

जागो मेरे सारे पुत्र

वसुधा गुहारती .

भारती दास ✍️

Friday, 24 September 2021

पितृ स्मृति भी इक भक्ति है

 

हिन्दू धर्म में है अटूट विश्वास

होता है जीवन मृत्यु पश्चात

पितृ पक्ष के पावन दिनों में

पितृ पूजन है बेहद खास.

श्रद्धा सुमन अर्पण करते हैं

जलांजलि तर्पण करते हैं

साथ बिताये उन पल क्षण को

विह्वल हो स्मरण करते हैं.

कर्मकांड नहीं होता पाखंड

करते महसूस अनुपम आनंद

जरूरत मंद को शामिल करके

दान  देते  हैं श्रद्धा वंत.

थे दानवीर महावीर कर्ण

जीवनभर बांटे थे वे स्वर्ण

लेकिन अपने पूर्वजों का

नहीं किये थे श्राद्ध कर्म.

वे अपना दायित्व निभाने

परिजन को श्रद्धांजलि देने

वे पृथ्वी पर पुनः आये थे

पार्वण व्रत का पालन करने.

पौराणिक ये कथाएं कहती

पितृ स्मृति भी है इक भक्ति

पूर्वजों की पुण्य तिथि पर

श्रद्धा नमन की है ये पद्धति.

सत्य यही धर्म ग्रंथ कहे

संकल्प सदा हरवक्त रहे

आडंबर ना माने इसको

कर्म हमेशा ही श्रेष्ठ रहे.

भारती दास ✍️

Saturday, 18 September 2021

नारी की महता

 

नारी परिवार की मुख्य धूरी है इसके बिना किसी परिवार की कल्पना कभी नहीं की जा सकती.परिवार की स्थिति-परिस्थिति क्या है कैसी है इसकी जिम्मेदारी उस परिवार की नारी पर ही है परन्तु स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार उसे नहीं मिलता.

अपने परिवार को समृद्ध करने के लिए परिश्रम करती है, प्रार्थनायें-व्रत और उपवास करती है.वो कई भूमिकाओं में जीवित होती है ----- बेटी ,बहन ,पत्नी और माँ इत्यादी हर भूमिकाओं में स्नेह दुलार और ममता लुटाती है,बेटी के रूप में माता-पिता का गौरव बढाती है,बहन के रूप में भाई को सहयोग करती है,पत्नी के रूप में पति के दुःख-सुख की सहभागिनी होती है तथा अपने धर्म का पालन करती है.माँ के रूप में अनगिनत कष्ट और पीड़ा सहकर एक नए अस्तित्व को आकार देकर नए जीवन को संवारती है.

जिस घर में स्त्री के किसी भी रूप का अभाव होता है उस अभाव को सहज ही महसूस किया जा सकता है.घर को संभालने वाली परिवार के हर सदस्य की सेवा करने वाली सबके सुख दुःख का ध्यान रखने वाली स्त्री घर की सौभाग्य लक्ष्मियाँ ही तो होती है.परन्तु आधुनिकता के अभिशाप से ग्रसित लोग उनके सेवा भाव व कार्य के महत्व को नजर अंदाज करते है उन्हें कमतर आंकते हैं.ऐसी सोच वाले घरेलू स्त्री को प्रतिभाहीन समझते हैं.उनके विचार से वही नारी श्रेष्ठ है जो नौकरी करती है,धन कमाती है अर्थोपार्जन में पुरुष का हाथ बंटाती है.सच तो यह है कि घर की देख भाल करने वाली,बच्चों के शील संस्कार और शिक्षा पर ध्यान देने वाली नारी का महत्त्व कभी कम नहीं हो सकता.जीवन के संचालन में धन महत्वपूर्ण है ये हमसब जानते हैं लेकिन धन ही सब कुछ हो ये सही नहीं है.

 घरेलू नारी भले ही कोई कमाई नहीं करती हो परन्तु घर के अनगिनत कामों को करके पैसा भी बचाती है और घर में ख़ुशी का माहौल बना पाती है.घर की साफ-सफाई करना, नाश्ता-खाना बनाना,कपड़े धोना,बच्चों को पालना व परवरिश करना आसान नहीं है साथ में शील-संस्कार और संवेदना की बातें भी करना तो फिर उनकी हैसियत को कम आंकना कहां की बुद्धिमानी है.

घरेलु नारी के काम-काज के बारे में यही सोचते हैं कि उसे ये सब हर-हाल में करना है जिसके लिए उसे स्नेह और सम्मान नहीं मिलता है. लोगों की इस सोच की वजह से वो मानसिक और शारीरिक दोनों ही रूप से पल-पल आहत होती है.

व्यापक और गहन परिप्रेक्ष्य में विचार करने पर यही निष्कर्ष निकलता है कि परिवार व समाज का नींव नारी के उन्ही कामों पर टिकी है जो कही पर दर्ज नहीं होता.ग्रामीण जीवन में नारी के योगदान के बिना कृषि कार्य संभव ही नहीं है.कहीं-कहीं देखने को मिली है कि शिक्षित नारियों ने अपनी उच्च शिक्षा के वाबजूद सोच समझकर हाउस वाइफ बनना स्वीकार किया है ताकि वे अपने घर-परिवार को पर्याप्त समय दे सके,बच्चों के भविष्य बना सके.वे घर-परिवार के रोजमर्रा के जीवन को बेहतर बनाने के लिए अपनी शिक्षा का सदुपयोग कर अपना मूल्यांकन कर सके. अतः लोग और समाज नारी के कार्य को समझे अपनी मानसिकता बदले जिससे कई समस्यायें यूँ ही सुलझ जाएगी.अधिकतर लोग ये तो जरुर मानते हैं कि घर-परिवार की शोभा नारी ही है जो शक्ति-रूपिणी,ज्ञान-रूपिणी व लक्ष्मी-रूपिणी होती है.                                                            

विमल-भावना दृष्टी से झरती 

तृप्त मोह ममता से करती

सेवा संयम शिक्षण देती  

पावन जिसकी चिन्तन होती 

विपदाओं को थामके चलती                        

पलकों पर सावन को रखती  

नैनों में सपनो को सजाती 

उर सागर से प्रेम बहाती

वही नारी शक्ति कहलाती 

चिर वंदिता सदा वो होती.

भारती दास ✍️


Sunday, 12 September 2021

 मैं हिन्दी हूं मैं हिन्दी हूं

भारत के भाल की बिन्दी हूं

जैसे सूरज चांद चमकते

वैसे कपाल पर सजती हूं

मैं हिन्दी हूं मैं हिन्दी हूं....

रुप सरस्वती अन्नपूर्णा सी

हंसी है मनहर मां लक्ष्मी सी

मैं सुंदर शोभित लगती हूं

मैं हिन्दी हूं मैं हिन्दी हूं....

गिरि शिखर की महिमा जैसी

ऋषि मुनि की वेद ऋचा सी

हर मुख से भाषित होती हूं

मैं हिन्दी हूं मैं हिन्दी हूं....

संस्कृत है मेरी जननी

मै हूं उसकी प्यारी भगिनी

मैं दिलों में सबके रहती हूं

मैं हिन्दी हूं मैं हिन्दी....

अनपढ गंवार की बोली हूं

शिक्षित की हंसी ठिठोली हूं

मैं प्रेम ही प्रेम समझती हूं

मैं हिन्दी हूं मैं हिन्दी....

भारती दास ✍️

हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं


Friday, 3 September 2021

शिक्षक दिवस

 

राधा-कृष्णन के जन्म-दिन पर

शिक्षक दिवस मनाते हैं 

उनके सुन्दर सद्चिन्तन से 

जन-जन प्रेरणा पाते हैं.

श्रेष्ठ चिन्तक और मनीषी 

आदर्श शिक्षक थे महान

शिक्षा की क्रांति लाने में

अहम् था उनका योगदान.

सामान्य नहीं होते हैं शिक्षक 

वो होते हैं शिल्पकार

गीली मिटटी को संवारनेवाला

जैसे होते हैं कुंभकार .

शिक्षा का ये रूप नहीं है 

हो केवल अक्षर का ज्ञान 

पथ के तिमिर मिटाने वाले

शिक्षक होते ज्योति समान.

संयम सेवा अनुशासन का

वो देते हैं सदा प्रशिक्षण 

जीने की वो कला सिखाते 

सहज-सरल बनाते जीवन. 

शिक्षक होते पथ प्रदर्शक 

वो होते मन के आधार 

मानव-मूल्यों को सिंचित करके

उर में भरते सुभग विचार.

शिक्षण के महत्त्व को समझे 

सार्थक हो इनकी पहचान    

बस प्रतीक का पर्व बने ना

पावन हो शिक्षक की शान.

भारती दास ✍️

शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

Friday, 27 August 2021

योगेश्वर श्रीकृष्ण (जन्म-कथा)

 





मेघगर्जन की धुन के साथ रिम-झिम के गीतों को गाती हुई, हरियाली की चादर ओढ़कर प्रकृति सम्पूर्णता के साथ उत्सव मना रही है. सृष्टि के रचयिता के जन्म का उत्सव है. प्रकृति की इस उत्साह से जीवन के अनेक रंग सजीव हो उठती है. वातावरण में जैसे अनेकों संकेत, कई रहस्य छुपे हों ऐसा महसूस होता है.

      भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है. कई हजार वर्ष पूर्व भारत अत्यधिक ही सम्पन्न था. समृद्ध एवम शक्तिशाली देश था. लोगों में स्फूर्ति थी, उमंग था परन्तु बहुत दिनों तक ये स्थिर नहीं रह सका. अत्याचार बढ़ने लगा, शासक निरंकुश होने लगा, प्रजा त्रस्त हो उठी, इसी समयाकालीन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ. उस समय मथुरा का शासक कंस था. बहुत ही क्रूर स्वाभाव का था. उसने अपनी बहन देवकी और बहनोई वसुदेव को कारागार में डाल दिया क्योंकि देवकी के आठवे पुत्र से उसकी मृत्यु निश्चित थी. समयानुसार देवकी के सभी सात पुत्र कंस द्वारा मारे गए थे.

" भाद्र कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में उनका जन्म हुआ था. नीरव काली डरावनी रात थी, घनघोर बरसात हो रही थी, गंभीर गर्जन के साथ दामिनी चमक जाती थी. यमुना में गरजती लहरे उन्माद की भांति शोर मचा रही थी.  कंस के डर से वसुदेवजी इतनी भयावनी रात में भी जल्द से जल्द अपने मित्र के घर इस नवजात शिशु को पहुँचाना चाहते थे. भगवान की लीला से यमुना ने उन्हें रास्ता दिया और भगवान शेष ने वृष्टि से बचने के लिए अपने फन फैला दिये. गोकुल पहुँचकर वसुदेव ने देखा कि नन्द की पत्नी यशोदा ने एक पुत्री को जन्म दिया है. इस अवसर का लाभ उठाकर वसुदेव ने अपने पुत्र को रखकर यशोदा की पुत्री को उठा लाये. कारागार के सभी द्वार फिर से बंद हो गए,सारी स्थिति पूर्ववत हो गयी. कंस उस आठवे संतान को मारने के लिए आया ये जानते हुए कि देवकी को पुत्री हुई है. उसने अपनी बहन की एक भी दर्द भरी प्रार्थना नहीं सुनी. निर्दयतापूर्वक उस शिशु को मारने के पत्थर पर पटकना चाहा कि वो आकाश में उड़  गयी और कंस को संबोधित करते हुए बोली कि उसको मारनेवाला जन्म ले लिया है वो अपनी आसुरी वृति को छोड़ दे तथा देवकी के प्रति क्रूर ना बने. ‘’

       "  कृष्ण-कथा से ] "

   " श्री कृष्ण प्रतिभावान थे. उनहोंने कई अत्याचारियों का वध किये थे. बचपन से ही अनेक लीलाओं से लोगों को मोहित करते थे. एक पर एक आई विपत्तियों को अपनी बुद्धि-बल के द्वारा निरस्त कर देते थे. गोप-गोपी-ग्वाला के साथ आनंदित बचपन गुजारे थे. राधा उनकी प्रेमिका थी. वो विवाहिता थी इसलिए वे दोनों  अपने जीवन काल में कभी मिल नहीं पाये. उनकी बांसुरी की धुन से राधा सम्मोहित होती थी. अपने कर्तव्य को वो सर्वश्रेष्ठ मानते थे. धर्म को व्यवस्थित करना चाहते थे. एक सम्पूर्ण पुरुष बनकर समाज को नयी दिशा देना चाहते थे. कौरव-पाण्डव के युद्ध में शांति-दूत बनकर गए थे लेकिन कपटी दुर्योधन ने उनकी एक न सुनी थी. उस युद्ध में भी उनहोंने धर्म के पथ चलकर पाण्डव के साथ थे.

अर्जुन को रणक्षेत्र में गीता का ज्ञान दी थी. श्री कृष्ण ने उन्हें समझाया कि मनुष्य, देह नहीं एक आत्मा है जिसे कोई भी नहीं मार सकता. आत्मा सिर्फ नये कपड़ों की तरह, नये शरीर धारण करती है. आत्मा ईश्वर का अंश रुप होती है. ये  कभी वृद्ध नही होती है. मनुष्य केवल कर्तव्य कर सकता है परिणाम पर उनका अधिकार नहीं होता. परिणाम की विफलता और सफलता दोनों में समान भाव रखना चहिये. श्री कृष्ण के ये उपदेश अमृत वचन है. उनके कारण ही महाभारत का युद्ध सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है जिसमें धर्म की अधर्म पर, न्याय की अन्याय पर तथा सत्य की असत्य पर विजय हुई थी. गीता जैसी पवित्र ग्रन्थ निकली थी. "

श्री कृष्ण सभी दिव्य गुणों से सम्पन्न थे. अनगिनत प्रेम लीलाएं की थी परन्तु सदा योगी की तरह ही रहे इसीलिए उन्हें योगेश्वर भी कहा गया है. उनके चरित्र को जीवन में उतारने की कोशिश हो यही उनके जन्म-दिन पर कामना करती हूँ.

मथुरा में जन्मे थे कृष्ण

गोकुल में पले थे कृष्ण

धर्म के रथ पर, कर्म की पथ पर 

जीवन भर चले थे कृष्ण . 

भारती दास ✍️


Friday, 20 August 2021

पृथ्वी का उत्सव ऋतु वर्षा

 

तपती हुई ग्रीष्म के बाद

बारिश की पड़ती है फुहार

प्राण दायिनी वर्षा से ही

जीवन में होता संचार.

उमड़ घुमड़ कर काले बादल

लयबद्ध संगीत सुनाते हैं  

नभ का सीना चीरती चपला

करते भयभीत डराते हैं.

गरजते मेघ कड़कती बिजली

नाचते मयूर पपीहे कुहुकते

झींगुर दादुर के सुर ताल

उर के तार तरंगित करते.

हरीतिमा की चादर ओढ

प्रकृति नयी सी सजती है

मनोहारी नव छटा मोहती

उल्लास सुखद सी लगती है.

आनंद दाता ही नहीं है घन

सेवा भी सिखलाते हैं

अपना ही अस्तित्व मिटाकर

जलप्रदान कर देते है.

पृथ्वी का उत्सव ऋतु वर्षा

अभिनव सृजन करता है

कई सुंदर त्योहार सजाकर

अनगिनत उपहार ले आता है.

भारती दास ✍️



Friday, 30 July 2021

दोस्त मन के होते चिकित्सक

 


कहते ज्ञानी कवि विशारद
दोस्त मन के होते चिकित्सक
अवसाद मिटाते होते सहायक
दूर भगाते गम के सायक.
रखते विचार भावना शुद्ध
करते नहीं वो पथ अवरुद्ध
साझा करते सुख और दुख
मुश्किल में नहीं होते विमुख.
आनंद-हंसी बरसाते हैं
अवगुण तमाम अपनाते हैं
पलकों से पीड़ा हरते हैं
पुलकित अंकों में भरते हैं.
मुसीबत में देते हैं साथ
गिरने पर नहीं छोड़ते हाथ
करते सदा ही हित की बात
मित्र नहीं देते कभी घात.
लेकिन बदल गया परिवेश
मित्रों की पहचान और वेश
सच्ची मित्रता नहीं है शेष
परिभाषा अब बनी विशेष.
टिका स्वार्थ पर है ये रिश्ता
कुत्सित हो गई है मानसिकता
चित्त का वो सुंदर कोमलता
सिमट गई मित्र की पावनता.
भारती दास ✍️

Friday, 23 July 2021

गुरु दीप की ज्योति जैसे

 

गुरु ब्रह्म हैं गुरु रूद्र हैं

गुरु ईश अवतार हैं

गुरु की महिमा सबसे व्यापक

गुरु ज्ञान साकार हैं.

गुरु बोध हैं गुरु ध्यान हैं

गुरु सकल संस्कार हैं

गुरु दीप की ज्योति जैसे

हरते मन के विकार हैं.

गुरु वर्ण हैं गुरु सृजन हैं

गुरु स्वरूप भगवान हैं

गुरु तपन हैं गुरु नमन हैं

गुरु मोक्ष का नाम हैं.

कुंभकार का रुप गुरु हैं

गुरु श्रेष्ठ सम्मान हैं

जीवन सीख से पोषित करते

हम करते उन्हें प्रणाम हैं.

भारती दास ✍️

Friday, 16 July 2021

यह जीवन एक कल्पवृक्ष है

  यह जीवन एक कल्पवृक्ष है

 जो दुर्लभ रुप से मिलते हैं

"ईश्वर अंश जीव अविनाशी"

ऋषि मुनि भी कहते हैं.

अद्वितीय सी कृति ब्रह्म की

अद्भुत कार्य सब करते हैं

लक्ष्य अगर ना हो जीने का

पशुवत जीवन जीते हैं.

सबसे अलग विशिष्ट बनाते

उपलब्धि वो पाते हैं

बहुमूल्य सा हर एक पल को

उम्मीद बना हर्षाते हैं.

आत्मदेवता की अराधना

जो निर्मल मन से करते हैं

स्वस्थ चिंतन-मनन की शक्ति

उनमें सहज ही रहते हैं.

मात्र स्वार्थ वृत्ति के कारण

वो दानव कहलाते हैं

अहंकार का साधन बनकर

चैन कभी ना पाते हैं.

अनंत देव हैं सर्वश्रेष्ठ है

निरोगी काया का उपहार

भगवान सदा ही खुश होते हैं

बरसाते उनपर उपकार.

भारती दास ✍️


Saturday, 3 July 2021

स्वप्न सुनहरे सजाने चली है


मृदुल हास से विमल आस से
स्वप्न सुनहरे सजाने चली है
संघर्ष अनंत था श्रांत वर्ष था
हर्ष का दीप जलाने चली है.....
मौन मनन करती थी हरपल
पाठ गहन पढती थी पलपल
पर अधीर विचलित होती थीं
करुण नयन चिंतित होती थी
अनंत फ़िक्र सब दूर हटा कर
मृदु हृदय हरसाने चली है
स्वप्न सुनहरे सजाने चली है.....
चिकित्सा के विस्तृत आंगन में
मुदित मगन पुलकित हो मन में
नव अवसर को अंक लगाकर
अरमानों के पंख लगाकर
खुशी-खुशी से कर्म के पथ पर
निज कर्तव्य निभाने चली है
स्वप्न सुनहरे सजाने चली है.....
मानवता की सेवा करना
स्नेह सरलता सदा ही रखना
कदमों में यश और वैभव हो
चिर सुरभित जीवन का पथ हो
नई उमंग से उत्साहित हो
मधुर अधर मुस्काने चली है
स्वप्न सुनहरे सजाने चली है.....
भारती दास ✍️

Friday, 25 June 2021

जब सुख संध्या घिर आती है


जब सुख संध्या घिर आती है

अनुराग-राग बरसाती है

जब सुख संध्या घिर आती है....

सूर्य किरण ढल जाती थककर

सांझ स्नेह बरसाती सजकर

अरुनाभ अधर मुस्काती है

जब सुख संध्या घिर आती है....

प्रफुल्ल उरों से धूल उड़ाते

संग कृषक के पशु घर आते

आह्लाद सूकून भर लाती है

जब सुख संध्या घिर आती है....

निशा नशीली आती मनाने

भाल चूम लगती हर्षाने

रक्ताभ नजर इठलाती है

जब सुख संध्या घिर आती है....

भारती दास ✍️


Saturday, 19 June 2021

दृष्टि फलक पर टिक जाती है

 

अब पिता जी नही है साथ

सहेज रखी है स्नेह सौगात

गम कड़वे अवसाद भूलाकर

अपने सारे दर्द छुपाकर

करते थे परवाह सदा ही

दिखाते हरदम राह खुदा सी

विधि ने छीना पिता की साया

आठ वर्ष होने को आया

मन कांपा था दिल दहला था

उनके बिना जब दिवस ढला था

दिन अनेकों गुजर गये हैं

यादें हृदय में ठहर गये हैं 

क्लेश दंश सब मोह को तजकर

छोड़ चले सबको पृथ्वी पर

शाश्वत सत्य में लीन हुये थे

पुनीत गंगा में विलीन हुये थे

गर्वित हो झुक जाता शीश

जैसे पिताजी देते आशीष

आंखें बहकर थक जाती है

दृष्टि फलक पर टिक जाती है.

भारती दास ✍️

Wednesday, 9 June 2021

ऐसे देवतरू को प्रणाम


छाया जिनकी शीतल सुखकर

मोहक छांव ललाम

ऐसे देवतरु को प्रणाम

खगकुल सारे नीड़ बनाते

पशु पाते विश्राम

ऐसे देवतरु को प्रणाम.....

ब्रह्मा शंकर हरि विराजे

साधक जहां पर मन को साधे

सच्चे निर्मल सुंदर चित्त से

पूजते लोग तमाम

ऐसे देवतरु को प्रणाम....

सुहाग सदा ही रहे सलामत

हो आंचल में हर्ष यथावत

पुष्प दीप प्रसाद चढ़ाकर

गाते मंगल गान

ऐसे देवतरु को प्रणाम....

सत्यवान को प्राण मिला था

नव जीवन वरदान मिला था

अक्षय सौभाग्य जहां पर पाई

नारी श्रेष्ठ महान

ऐसे देवतरु को प्रणाम

भारती दास ✍️


वट सावित्री पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं

 


Tuesday, 1 June 2021

अवसर वादी बनकर ही

 

एक व्यक्ति नदी किनारे 

कुटिया बनाकर रहता था़

नियमित रूप से श्रद्धापूर्वक

पूजा साधना करता था.

देखते-देखते बढ गई ख्याति

अनुयायी बन गये हजार

धन-पैसा बढता ही गया

समाया उर में दूषित विकार.

गरीब उनको रास न आते

अमीरों से मिलता उपहार

सोना चांदी की चकाचौंध में

भूल गया मधुर व्यवहार.

समय के साथ वो वृद्ध हुआ

रोगग्रस्त हो उठा शरीर

मृत्यु के डर से भयभीत हुआ

होने लगा बेचैन अधीर.

चित्त सदा कोसता रहता

सदा ही धन का मान बढ़ाया

लोगों की आस्था से खेला

लोभ में सारा पुण्य गंवाया.

अवसर वादी बनकर ही तो

दुखियों को सताता रहा

चमत्कार के नाम पर

भावनाओं को ठगता रहा.

सारी तपस्यायें विफल हुई

आत्मबोध न पाया कभी

पश्चाताप के आंसू बनकर

मिथ्या आडंबर बहा सभी.

गलती का एहसास हुआ

फिर भक्ति में लीन हुआ

दुविधा मिटी हृदय से सारी

मुक्ति-पथ पर तल्लीन हुआ.

भारती दास ✍️



Saturday, 29 May 2021

गिला यही है भाग्य विधाता

 गिला यही है भाग्य विधाता

भाग्य कभी भी साथ न देता....

चलते संग-संग साथ ये सारे

दर्द अनेकों गम बहुतेरे

दृश्य विकट सा मन घबराता 

भाग्य कभी भी साथ न देता....

छुप-छुप रहती खुशी कहीं पर

मूंदती आंखें भागती छूकर

नैन विकल बस नीर बहाता

भाग्य कभी भी साथ न देता....

था धीरज और धैर्य का संगम

बढता रहा अब तक ये जीवन

संयम हरपल टूटता जाता

भाग्य कभी भी साथ न देता....

अंत तमस का दूर न होता

आश का सूरज उग न पाता

सांसों से ही हर इक नाता

भाग्य कभी भी साथ न देता.....

भारती दास ✍️


Tuesday, 25 May 2021

जन्म से ही उन्मुक्त जो बहती


अंधेरे हो या चाहे उजाले

सहम-सहम कर चलती सांसे

जन्म से ही उन्मुक्त जो बहती

वो स्पंदन भरती आहें.

उथल-पुथल सी मची हुई है

समय की बेबस धारे हैं

कुढ़ते खीजते वक़्त ये बीतते

विरान सी सांझ सकारे हैं.

द्वार-द्वार पर आंखें नम है

गम से भरे नजारे हैं

क्षुब्ध व्यथा से जूझ रहे हैं

टूटे जिनके सितारे हैं.

भव भय दूर नहीं होते हैं

संकट में तन मन सारे हैं

भूख प्यास से बिलखते अभागे

जो हुये अनाथ बेसहारे हैं

दुखी निराश हताश हृदय ने

संशय में हिम्मत हारे हैं.

विकल करुण निरीह की आशा

अब ईश्वर के ही सहारे हैं.

भारती दास ✍️.


Wednesday, 19 May 2021

क्षितिज के छोर से

 क्षितिज के छोर से

गरजते हुए जोर से

घटाओं की शोर से

गिरी बूंद सब ओर से.

बौछार की उल्लास में

धरती की हर प्यास में

विह्वल कली की आश में

सुमन की सुवास में.

बरस रहा मुदित गगन

बुझ गया तृषित मन

तरू लता हुई मगन

पी रहा सौरभ पवन.

धरा की सुगंध से

मदभरी गंध से

हर्ष और आनंद से

नेहभरी बूंद से.

मिट गई सारी तपन

बचपन हंसे उघड़े बदन

उछाल कर सलिल कण

खिलखिला उठा चमन.

भारती दास ✍️

Thursday, 13 May 2021

औरों के हित जी ना पाये


दीपक के बुझने से पहले

हंसा खूब अंधेरा

अंधकार को दिया चुनौती

अंत हो गया तेरा.

दीपक मुस्काया फिर बोला

अंत है निश्चित सबका

अगर नहीं रहता उजाला

तम भी कहां ठहरता.

इस संसार में आना-जाना

हर दिन लगा ही रहता

है उद्देश्य जीव का सुंदर

 मौत परम सुख पाता.

बनता तमस विषाद का कारण

सिर्फ समस्यायें देता

रोशनी मन में ऊर्जा देकर

निदान कई सूझाता.

महामारी के खिलाफ में

संघर्ष सदा है जारी

लाखों लोगों ने जान गंवाई

नहीं माने जिम्मेदारी.

पैसों को अहम बनाते

नहीं देखते लाचारी

जीवन रक्षक चीज़ों से

करते हैं गद्दारी.

संवेदन न बन पाये तो

बने ना दुख का कारण

औरों के हित जी ना पाये

तो अभिशापित है जीवन.

भारती दास ✍️

Friday, 7 May 2021

ये धरती भी तब हंसती है

 


पिता-पुत्री ने मिलकर साथ
कोरोना से पा लिया निजात
खुशी बहुत है हर्ष अगाध
स्वस्थ रहे बस यही है आश.
कौन श्रेष्ठ है कौन हीन है
कहर झेलती ये जमीन है
कहां सूकून है कहां चैन है
दर्द को ढोता मन बेचैन है.
अमीर होती या गरीब होती
सबको कहां नसीब होती
वो ममता जो करीब होती
मां है जिसे खुशनसीब होती.
कितनी सुंदर तब लगती है
जब स्नेहिल थपकी देती है
खुश होती है मुस्काती है
हमें प्यार भी सिखलाती है.
अनंत वेदना वह सहती है
मूक अश्क बहती रहती है
मां की गरिमा जब बढ़ती है
ये धरती भी तब हंसती है.
प्रकृति प्रदत्त मातृत्व उपहार
है अद्वितीय अनुपम सा प्यार
समस्त माताओं को आभार
उत्सव बन आया त्योहार.
भारती दास ✍️

Wednesday, 14 April 2021

आई जगदम्बे मां द्वार

आई जगदम्बे मां द्वार
लाई आंचल में भर प्यार
आई जगदम्बे मां द्वार....
जय शक्ति स्वरूपिणी माता
जय जग पालिनी शुभ दाता
छाई खुशियां हर्ष अपार
आई जगदम्बे मां द्वार....
दुर्बल मन ये घबराया
दुर्गम क्षण फिर बन आया
सुखदाई कर उपकार
आई जगदम्बे मां द्वार....
भयभीत हुआ मही सारा
निर्वाह कठिन है हमारा
शुभदाई हर अंधकार
आई जगदम्बे मां द्वार....
नित दिन करते हैं अर्चन
निज भाव सुमन का अर्पण
महामाई सुन मनुहार
आई जगदम्बे मां द्वार....
भारती दास







 


Saturday, 10 April 2021

लोग नहीं करते हैं चिंतन

 


लापरवाही ने सब छीना
फिर रफ्तार से बढ़ा कोरोना
जानते हैं परिणाम की सीमा
फिर भी चाहते मौत से लड़ना.
गुजरे पल ने खूब सिखाया
समझाया मुश्किल से बचाया
जीवन मूल्य का भेद बताया
फिर भी सबने वही दुहराया.
कहते सुनते थके हर बार
सांसों के रक्षक गये हैं हार
दुख-अतिथि आ पहुंचा द्वार
लेकर ढेरों दर्द उपहार.
बदहाली से करने को जंग
गली-गली फिर हुए हैं बंद
लगे छूटने अपनों के संग
दूर हुये खुशियां-आनंद.
नेताओं की चुनावी रैली
अफरा तफरी जीवन शैली
भीड़-भाड़ उन्मादों वाली
बढ़ाता रहा कोरोना खाली.
अस्पताल में कम है साधन
संकट में है प्राण व जीवन
सेवा कर्मी करते परिश्रम
लोग नहीं करते हैं चिंतन.
भारती दास


 

 

 

Tuesday, 6 April 2021

अन्तर्मन भी हरपल कहता

 


      
      मूक बधिर हो या कोई व्यक्ति
      तलाश सुखों की होती सबकी
      चाहत होती हर एक मन की

हो भविष्य सदा सुंदर सी…
अनुकूल जहां होता है पोषण
अनुरुप वहां होता है बचपन
परंपरा संस्कार का दर्शन
दर्शाता परिवार का चित्रण…
अनुचित आदत रहन-सहन
दम तोड़ता प्रेम समर्पण
नहीं होता कोई अपनापन
दुर्भाग्य ढोंग का होता दर्पण…
शैशव में ही भरता विकार
पनपता रहता द्वेष अपार
टूटता-बिखरता घर संसार
मलते हाथ होते लाचार…
माता-पिता भी तब पछताते
जब महत्व पैसे को देते
बुरी आदतें घर कर जाते
स्वयं समाज से रहते अछूते…
कर्म की खेती चलता रहता
जो बोता है वही है फलता
अंतर्मन भी हर-पल कहता
बदी के बदले बदी ही मिलता…

भारती दास ✍️





 

 




 

 


Wednesday, 31 March 2021

मनाते मूर्ख दिवस अभिराम

 


मूर्ख बनाते या बन जाते
मखौल उड़ाते या उड़वाते
दोनों ही सूरत में आखिर
हंसते लोग तमाम
छेड़ते नैनों से मृदु-बाण....
मन बालक बन जाता पलभर
कौतुक क्रीड़ा करता क्षणभर
शैशव जैसे कोमल चित्त से
भूलते दर्प गुमान
होते अनुरागी मन-प्राण....
सरल अबोध उद्गार खुशी का
हंसता अधर नादान शिशु सा
क्लेश कष्ट दुख दैन्य भुला कर
सहते सब अपमान
देते शुभ संदेश ललाम....
मूर्ख दिवस का रीत बनाकर
सुर्ख लबों पर प्रीत सजाकर
मनहर हास पलक में भरकर
गाते खुशी से गान
मनाते मूर्ख दिवस अभिराम....
भारती दास ✍️ 

 

 

Saturday, 27 March 2021

मै कृतज्ञ हूं हे परमेश्वर

 

रुके-रुके से थके-थके से
कदम जोश से बढ़ेंगे फिर से
कई विघ्न के शिला पड़े थे
समस्त तन-मन हंसेंगे फिर से.....
तड़प-तड़प कर सहम-सहम कर
रात-दिन यूं ही कट रहे थे
उम्मीद आश की लिये पड़े थे
वासंती पुष्पें खिलेंगे फिर से.....
इंद्रधनुष की बहुरंगों सी
विचरते चित्त में भाव कई सी
द्वन्द के साये में जी रहे थे
सुनहरे पल-क्षण मिलेंगे फिर से.....
मैं कृतज्ञ हूं हे परमेश्वर
धन्यवाद करती हूं ईश्वर
अंधकार पथ में बिखरे थे
छंद आनंद के लिखेंगे फिर से.....
भारती दास



 

Sunday, 7 March 2021

मैं धीर सुता मैं नारी हूं

 


सलिल कण के जैसी हूं मैं
कभी कहीं भी मिल जाती हूं
रीत कोई हो या कोई रस्में
आसानी से ढल जाती हूं.
व्योम के जैसे हूं विशाल भी
और लघु रूप आकार हूं मैं
वेश कोई भी धारण कर लूं
स्नेह करूण अवतार हूं मैं.
अस्थि मांस का मैं भी पुतला
तप्त रक्त की धार हूं मैं
बेरहमी से कैसे कुचलते
क्या नरभक्षी आहार हूं मैं.
अर्द्ध वसन में लिपटी तन ये
ढोती मजदूरी का भार हूं मैं
क्षुधा मिटाने के खातिर ही
जाती किसी के द्वार हूं मैं.
मैं धीर सुता मैं नारी हूं
सृष्टि का श्रृंगार हूं मैं
हर रुपों में जूझती रहती
राग विविध झंकार हूं मैं.
भारती दास