नकारात्मक विचारों व भावनाओं के साये से घिरे रहनेवाले लोग ही ज्यादातर निराश दिखाई पड़ते है. आज की पीढ़ी के अधिकतर लोग हताशा भरी परिस्थिति का सामना करते हैं क्योंकि वे व्यवहार कुशल नहीं होते हैं .सामान्य जिन्दगी में भी अपने आपको असहाय महसूस करते हैं .मनोबल कमजोर होता है .अजीब सी उदासी से घिरा जीवन होता है .
15 से 40 वर्ष के लोग इसी उहापोह में जीवन व्यतीत करते हैं की हमारा अब कुछ नहीं होगा .वे सिर्फ अपने –आप में ही कमी ढूंढते दिखाई देते हैं. हर कामयाब आदमी से डर लगता है. लम्बे समय तक चलने वाली जद्दोजहद की वजह से मनःस्थिति हताशा में डूब जाती है. किसी भी कार्य को करने के लिए उत्साहित होने के बजाय निराशाजनक भाव होता है. सही निर्णय लने की क्षमता नहीं रह जाती है. सकारात्मक सोच से दूर होने लगता है. मन हमेशा उदास ही रहता है.
निराशा[तनाव]यानि ‘’डिप्रेशन’’एक मानसिक रोग है. इस रोग में आदमी सामान्य चुनौती को भी नहीं स्वीकार कर पाता बल्कि अपना कदम पीछे हटा लेता है. खुशनुमा व्यक्तित्व नहीं रख पाता, डरा-डरा सहमा-सहमा सा माहौल रखता है. "डिप्रेशन"का एक कारण यह भी होता है की nyurotransmitre ठीक ढंग से कम नहीं करते है जिस वजह से निराशा देखने को मिलते है. कुछ अच्छा नहीं लगना, जल्दी थक जाना ये इसके लक्षण होते है. एक कारण यह भी हो सकता है कि जिन्दगी के प्रति सही समझ विकसित नहीं कर पाते है जिससे असफलता मिलती है. धीरे –धीरे अपनी क्षमताओं पर संदेह करने लगते है. एकाग्रता में कमी आने लगती है.
अपनी क्षमताओं का सही आकलन करने के लिए सबसे पहले मन को मजबूत बनाना होगा. सकारात्मक सोच के द्वारा अवसाद को मन से दूर भगाना होगा. चिंतन-मनन व अध्यात्मिक अध्ययन के द्वारा विचार शैली को बदलना होगा. स्वाध्याय से सुन्दर विचारों का पोषण मस्तिष्क को मिलेगा.
उपासना को नियमित दिनचर्या में शामिल करने से शंकाओं का नाश तथा खुद पे विश्वास बढ़ता है. भगवान के सानिध्य का एहसास होता है. हताशा-निराशा स्वतः नाश होती है. नियमित योग द्वारा भी मनःस्थिति शांत व प्रसन्न होती है. उगते हुए सूरज को नमस्कार करने से मन स्वस्थ व सक्रिय होते हैं.
इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए की हमें निराशा क्यों मिले. ईश्वर ने सबको बनाया है. हर किसी में कोई न कोई गुण जरुर दिया है. मुझमे भी कुछ गुण होगा ही, व्यवहार कुशल बनकर लोगों तक पहुंचकर अपना हताशा भगाना चाहिए. जबतक जीवन है हरदिन कुछ सीखने को मिलेगा. अपने को भी तौलते रहना चाहिए ताकि कमी को सुधार सकें. सुन्दर-सुखद जीवन व्यतीत करने के उपाय ढूंढना चाहिए. हँसना ,गाना व खिलखिलाना चाहिए.
महाकवि मैथिलीशरण गुप्तजी ने कहा है .........
"नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो ,कुछ काम करो
जग में रहकर निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ कहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को."
भारती दास ✍️
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०४-१२ -२०२१) को
'हताश मन की व्यथा'(चर्चा अंक-४२६८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
Deleteबहुत सुन्दर सृजन । महाकवि श्री मैथेलीशरण गुप्तजी के कवितांश से समापन बहुत सुन्दर लगा ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मीना जी
Deleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ज्योति जी
Deleteवाह ! जीवन के प्रति सकारात्मक सोच को लिए सुंदर पोस्ट
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
Deleteबहुत ही प्रेरक एवं सकारात्मकता से ओतप्रोत
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteसुंदर सराहनीय प्रेरक, अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद जिज्ञासा जी
ReplyDeleteबिल्कुल ! भारती जी ।
ReplyDeleteहारिये न हिम्मत! बिसारिये न हरि नाम !
बहुत बहुत धन्यवाद नूपुरं जी
Deleteउम्दा लेखन
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
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