एक सुशीला महिला
हमेशा रहती है दूर
शराब की विकृत भावों से
गंदी नजर की कुंठाओं से
अमीर पतियों की घपलेबाजी से
सुविधाओं की चोंचलेबाजी से
करती नहीं कभी गुरूर
हमेशा रहती है दूर....
एक कुलीना महिला
हमेशा रहती है दूर
अधूरे ज्ञान की प्रशंसा से
मित्र गणों की अनुशंसा से
बद आचरण की परिभाषा से
स्वतंत्र उत्थान की अभिलाषा से
होती नहीं कभी मगरुर
हमेशा रहती है दूर....
एक अबला सी महिला
हमेशा रहती है दूर
मंहगे तोहफे उपहारों से
लालच और व्यभिचारों से
खोखली झूठी आकांक्षाओं से
व्यर्थ सी कई इच्छाओं से
होती नहीं बेबस मजबूर
हमेशा रहती है दूर....
भारती दास ✍️
सार्थक सृजन ।हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteधन्यवाद सर
ReplyDeleteकुशल कुलीन अबला ... पर नारी आज की हर बात में आगे रहती है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ...
धन्यवाद सर
Deleteसही कहा सुशीला कुलीना अबला महिलाएं हमेशा सदाचारी होती है
ReplyDeleteअधूरे ज्ञान की प्रशंसा से
मित्र गणों की अनुशंसा से
बद आचरण की परिभाषा से
स्वतंत्र उत्थान की अभिलाषा से
इ सभी से बड़ी कुशलता से दूर रहती है
वाह!!!
बहुत ही सार्थक जवं सारगर्भित सृजन।
धन्यवाद सुधा जी
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