भारती निहारती
पीड़ा से कराहती,
श्रेष्ठवान पुत्र मेरे
क्यों बने स्वार्थी.
असुरता ये विकृति
राष्ट्र की ये दुर्गति,
शौर्यवान पुत्र मेरे
क्यों बने दुर्मति.
सृष्टि कांपती रही
दृष्टि जागती रही,
नौजवान पुत्र मेरे
हुए ना साहसी .
आस्था दम तोड़ती
श्रद्धा जग छोड़ती,
ज्ञानवान पुत्र मेरे
हुए ना प्रार्थी .
संस्कृति पुकारती
स्वाभिमान झांकती,
समर्थवान पुत्र मेरे
हो गए आलसी.
व्यथा कथा बखानती
रास्ता बुहारती,
विवेकवान पुत्र मेरे
हुए ना शुभार्थी.
शुभता संवारती
ममता को वारती,
ओजवान पुत्र मेरे
हो गए सुखार्थी.
कृतार्थ भाव मानती
प्रखरता निखारती,
जागो मेरे सारे पुत्र
वसुधा गुहारती .
भारती दास ✍️
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