मधुश्रावणी का त्योहार
घन गरजे चपला चमके नभ से छम-छम जल बरसे गाये मस्त पवन मल्हार मधुश्रावणी का त्योहार.... पावस की प्यारी रातें करती चंचल उर गातें दृग में भरते मनुहार मधुश्रावणी का त्योहार.... मेंहदी रचते हाथों में सपने सजते आंखों में प्रियवर का प्रेम-फुहार मधुश्रावणी का त्योहार.... सुहागन करती श्रृंगार गाती मंगलगीत उदार चित्त में उत्साह अपार मधुश्रावणी का त्योहार.... कण-कण में हरियाली है तन-मन में खुशहाली है सावन का ये उपहार मधुश्रावणी का त्योहार..... हर्षित हो करते वंदन गौरी-शंकर की अर्चन भर आंचल में उदगार मधुश्रावणी का त्योहार..... भारती दास ✍️ ('हरियाली तीज' को ही बिहार में ' 'मधुश्रावणी तीज' कहते हैं) |
Wednesday, 22 July 2020
मधुश्रावणी का त्योहार
Wednesday, 15 July 2020
करे महसूस सबका गम
अगर अनमोल है जीवन
कोरोना को हराना है
करे सारे नियम पालन
कोरोना को हराना है.
रहे घर में सहज बनकर
सफाई हो महज सुंदर
गर महफूज हो दामन
कोरोना को हराना है.
जरूरी हो तभी निकले
लगाकर मास्क को टहले
चले दूरी बनाकर जन
कोरोना को हराना है.
धरती पर ये बिखरा है
लोगों से ही पसरा है
रखे धीरज सदा संयम
कोरोना को हराना है.
न जाने कब कहां क्या हो
कहीं ये रोग थामे जो
बचे हर सांस की धड़कन
कोरोना को हराना है.
ना हो बलिदान अब तन की
यही अरमान हो मन की
करे महसूस सबका गम
कोरोना को हराना है.
जीना है या मरना है
सुनिश्चित आज करना है
अडिग अपना हो ये चिन्तन
कोरोना को हराना है.
भारती दास ✍️
कोरोना को हराना है
करे सारे नियम पालन
कोरोना को हराना है.
रहे घर में सहज बनकर
सफाई हो महज सुंदर
गर महफूज हो दामन
कोरोना को हराना है.
जरूरी हो तभी निकले
लगाकर मास्क को टहले
चले दूरी बनाकर जन
कोरोना को हराना है.
धरती पर ये बिखरा है
लोगों से ही पसरा है
रखे धीरज सदा संयम
कोरोना को हराना है.
न जाने कब कहां क्या हो
कहीं ये रोग थामे जो
बचे हर सांस की धड़कन
कोरोना को हराना है.
ना हो बलिदान अब तन की
यही अरमान हो मन की
करे महसूस सबका गम
कोरोना को हराना है.
जीना है या मरना है
सुनिश्चित आज करना है
अडिग अपना हो ये चिन्तन
कोरोना को हराना है.
भारती दास ✍️
Monday, 6 July 2020
वन्दे गुरुवर वन्दे महेश्वर
https://vinbharti.blogspot.com/
आया सावन सूना है मन
बूंद न बरसा छलका है गम
संकट में शिव का आराधन
देव नही मंदिर के प्रांगण.
सांझ प्रात करते हैं वंदन
टेर सुनाता चंचल चितवन
ढूंढ रहा छवि ईश का अनुपम
छोड़ चले हर सीमा बंधन.
नेह में डूबी स्नेह से सिमटी
लहू-लिपटी धरती की मिट्टी
पथराई आंखों से कहती
मिट जायेगी ख्वाहिश किसकी.
दंभी बनकर धमकाते हैं
अनुचित कार्य किये जाते हैं
दोषहीन दंडित होते हैं
आहत होते मर जाते हैं.
तांडव नृत्य न कर अंबर पर
थाम लो कर हे नाथ दिगंबर
हर-हर बोले भोले-शंकर
वन्दे गुरुवर वन्दे महेश्वर.
शुभ्र रुप कर लो अब धारण
महके-दमके जग का आनन
प्रेम का सावन बरसे आंगन
चहके प्रीत मधुर-मनभावन.
भारती दास ✍️
आया सावन सूना है मन
बूंद न बरसा छलका है गम
संकट में शिव का आराधन
देव नही मंदिर के प्रांगण.
सांझ प्रात करते हैं वंदन
टेर सुनाता चंचल चितवन
ढूंढ रहा छवि ईश का अनुपम
छोड़ चले हर सीमा बंधन.
नेह में डूबी स्नेह से सिमटी
लहू-लिपटी धरती की मिट्टी
पथराई आंखों से कहती
मिट जायेगी ख्वाहिश किसकी.
दंभी बनकर धमकाते हैं
अनुचित कार्य किये जाते हैं
दोषहीन दंडित होते हैं
आहत होते मर जाते हैं.
तांडव नृत्य न कर अंबर पर
थाम लो कर हे नाथ दिगंबर
हर-हर बोले भोले-शंकर
वन्दे गुरुवर वन्दे महेश्वर.
शुभ्र रुप कर लो अब धारण
महके-दमके जग का आनन
प्रेम का सावन बरसे आंगन
चहके प्रीत मधुर-मनभावन.
भारती दास ✍️
Wednesday, 1 July 2020
उन डांक्टर को भगवान ही कहते
https://vinbharti.blogspot.com/
कर्त्तव्य सदा
दिन-रात ही करते
अपनी कुछ परवाह न करते
कर्म फल की चाह न करते
बेशक यम से लड़ते रहते.
यत्न कई श्रम-विधान वे करते
रोगों की निदान वे करते
दर्द में भी आराम न करते
उन डांक्टर को भगवान ही कहते.
जो हर जीवन की रक्षक बनते
अम्बे प्राणों की रक्षा कर दे
जो ख्वाब अनेक उमंगे भरते
उनके सपनों को पूरा कर दे.
भारती दास ✍️
अपनी कुछ परवाह न करते
कर्म फल की चाह न करते
बेशक यम से लड़ते रहते.
यत्न कई श्रम-विधान वे करते
रोगों की निदान वे करते
दर्द में भी आराम न करते
उन डांक्टर को भगवान ही कहते.
जो हर जीवन की रक्षक बनते
अम्बे प्राणों की रक्षा कर दे
जो ख्वाब अनेक उमंगे भरते
उनके सपनों को पूरा कर दे.
भारती दास ✍️