आज रामजी लौटे हैं घर
दीप जलाये खुशी मनाये इक दूजे को गले लगाये स्वर्ग उतर आया है धरा पर आज रामजी लौटे हैं घर.... कवि कल्पना में जीते हैं लेकिन झूठ नहीं कहते हैं तुलसी के मानस के ईश्वर आज रामजी लौटे हैं घर.... पुण्य की धारा सदा सी बहती कोमल शांत कथा सी कहती विकल नीर बहता था झर-झर आज रामजी लौटे हैं घर.... प्रेम से पागल हुआ जहां ये मला अंग में रंग नया ये रोम-रोम में पुलक है भरकर आज रामजी लौटे हैं घर.... श्रद्धा है मंदिर-मस्जिद की जैसे निर्गुण-सगुण की मूर्ति उत्सव सा आया है अवसर आज रामजी लौटे हैं घर.... राघव की महिमा है अनंत दूर हुआ दुर्मति का दंभ आदर्श रूप मर्यादा सुंदर आज रामजी लौटे हैं घर. भारती दास ✍️ |
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10 -11-2019) को "आज रामजी लौटे हैं घर" (चर्चा अंक- 3515) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
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रवीन्द्र सिंह यादव
धन्यवाद रवीन्द्र जी
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी
ReplyDelete. जी राम जी की इससे अच्छी वापसी और क्या हो सकती है बहुत ही अच्छी रचना अपने लिखी
ReplyDeleteधन्यवाद अनिता जी
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
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