Thursday, 24 July 2025

मन की कुंठा है

 ऊँचे ऊँचे पर्वत पर भी 

सागर की गहराई में भी 

सारे देश में गूँज उठी है 

भारत की आत्मा हिन्दी है ।

आसामी-गुजराती-मराठी 

क्षेत्रीय भाषा सबको नही आती 

फिर भी रहते मिलकर साथी 

नहीं उठाते भाषा पर लाठी ।

एक ही धरती एक ही आह्वान 

था रूदन-क्रंदन एक समान 

देश हित पर बलिदान हुये थे

उत्सर्ग सबने प्राण किये थे ।

जिनके कार्यों से उन्नति आई 

प्रगति की परचम भी लहराई 

उनके साथ ही हुई हाथापाई 

संकट अनेकों जीवन में आई ।

हिंसा-हत्या करने का बहाना 

समर भूमि भारत को बनाना 

निर्दोषों को अपमानित करना 

मजदूरों को प्रताड़ित करना ।

राजनीति की यह गंदी प्रथा है 

भाषा विवाद मन की कुंठा है 

उपद्रवियों की अपराधी धंधा है 

विकास की राह में हिन्दी सदा है ।

भारती दास ✍️ 



12 comments:

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  2. हिन्दी ...भावनात्मक, आत्मकथ्यात्मक अभिव्यक्ति।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी

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  3. बहुत सुंदर रचना

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  4. सुंदर अभिव्यक्ति!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद शुभा जी

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  5. सत्य कहा है आपने .. पर ये नेता लोग देश की सोचें तब ...

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  6. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  7. हिन्दी भारत के लगभग सभी राज्यों में समझी व बोली जाती है, सुंदर रचना

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  8. धन्यवाद अनीता जी

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