Thursday, 31 July 2025

नष्ट हुए एकता

 

नष्ट हुए एकता

दूरियांँ बढ़ने लगी 

अपेक्षाओं के भार से 

समस्याएँ गढ़ने लगी ।

विश्वास टूटने लगा 

कलह का आरंभ हुआ 

स्वजन के विरोध से

 मतभेद का नाद हुआ ।

स्नेह कहाँ खो गयी

दंभ का विकार हुआ

सुखमय सी स्मृतियाँ

संदेह का आधार हुआ ।

होगा नहीं मिठास अब

रिश्तों में दरार हुआ 

सत्य हारता गया 

वेदना अपार हुआ ।

अपनों का आदर नहीं 

खराब संस्कार हुआ 

क्षमा माँगते बड़े 

छोटे का व्यवहार हुआ ।

व्यथा विषाद कराह से 

क्लेश का संचार हुआ 

मौन रहें अब सर्वदा 

समाधान स्वीकार हुआ ।

भारती दास ✍️

6 comments:

  1. सत्य उकेरती अभिव्यक्ति।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १ अगस्त २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  2. धन्यवाद श्वेता जी

    ReplyDelete