Monday, 28 October 2024

मोह रात्रि करती विश्राम


गाओ-गाओ कोमल स्वर में

विहग बालिके मंगल गान

तरूवर गोद में छुप-छुप कर 

तुम अबोध देती मुस्कान।

शरद-शिशिर का स्वागत करती

बसंत का गाती गुणगान 

सीख तुम्हीं से हम लेते हैं 

हर पल है जीवन का मान।

स्वर्ण सुख उषा ले आती

थकी गोधूलि ढलती है शाम

दुःख-सुख का सहचर दिवस है 

मोह रात्रि करती है विश्राम।

मकड़ी के जालों में सांस 

उलझ-उलझ जाता है प्राण

नश्वर जगत में नहीं है शांति 

अविरत चलता जीवन-संग्राम।

भारती दास ✍️ 

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