Thursday, 30 December 2021

सर्वथा उत्कर्ष हो

 

महारोग इक विपदा बनकर
शोकाकुल कुंज बनाया है
बीते कल की व्यथा कथा से
प्रति घर में दर्द समाया है.
किसी का भाई पिता किसी का
किसी ने ममता गंवाया है
वातावरण की विषैलेपन से
व्याकुल मन घबराया है.
सर्वथा उत्कर्ष हो अब
ना हो कोई क्षोभ व गम
हर्ष ही हर्ष सहर्ष हो सब
सुखद सुभग बन आये क्षण.
विघ्न विहीन हो नया वर्ष ये
जन-जन में अनुराग भरे
नई सुबह की नव बेला से
दुख संताप विहाग हरे.
नव किसलय उल्लास बढाये
डाल-डाल पर खिले सुमन
स्वर्णिम लक्ष्य मिले जीवन में
पग पग पर हो नेह समर्पण.
भारती दास ✍️
(विहाग - वियोग)

Thursday, 23 December 2021

विशालकाय लिए बदन

 विशालकाय लिए बदन

सुगंध भी बहुत है कम

कहा अकड़ कर गुलाब

मुझसे महक रहा चमन.

गुलाब को घमंड था

निज रंग रूप गंध का

करता था हरदम बखान

मदमस्त सी सुगंध का.

मेरे बड़े शरीर पर

मां सरस्वती बैठकर

भरती है वीणा मे स्वर

ज्ञान का देती है वर.

सौंदर्य बना सौभाग्य है

हूं गंधहीन दुर्भाग्य है

बोला कमल - भाई गुलाब

मेरा यही तो भाग्य है.

हम देश के पहचान हैं

संवेदित मन प्राण हैं

चरित्र में नहीं दोष है

हम स्वार्थी ना महान हैं.

सौंदर्य और सुगंध जैसे

सहकार और सहयोग वैसे

दोनों के ही संयोग से

उन्नति होगा योग से.

हंस पड़ा फिर गुलाब

तोड़ कर अहं का भाव

दोनों ही हैं लाजबाव

हैं बेहतरीन बेहिसाब.

भारती दास ✍️



Tuesday, 14 December 2021

ज्ञान बड़ी या भक्ति

 


पूर्णचंद्र का अंतिम प्रहर था
मंद मंद चल रहा पवन था
गंगा की लहरें इठलाती
जैसे शैशव वय बलखाती
विश्वनाथ का पूजा अर्चन
करने बैठे ध्यान व वंदन
एकाग्र हो गई सहज चेतना
पूर्ण हो गयी सघन प्रार्थना
अज्ञानता का मिटा अंधेरा
चित्त से दूर हुआ भ्रम सारा
आम्र वृक्ष का मोहक बागान
सुगंधित पुष्प से सजा उद्यान
आचार्य शंकर बैठे थे मौन
ज्ञान-भक्ति में श्रेष्ठ है कौन
जन जन का क्लेश निवारण
अज्ञानी के भटकन का कारण
ज्ञान से जीवन सहज हो जाता
भक्ति प्रभु के पास ले आता
एक वृद्ध थे झुकी कमर थी
दंतहीन मुख दृष्टि सरल थी
हाथों में पुस्तक को थामें
आये थे शंकर से मिलने
कंपित स्वर से बोले विनीत
हे गुरुवर दें ज्ञान की भीख
विद्व जनों में होगा सम्मान
लोग कहेंगे श्रेष्ठ विद्वान
वृद्ध की मनोदशा समझकर
द्रवित हुये थे ये सब सुनकर
इतनी आयु होने पर भी
क्षीण हुयी ना तृष्णा मन की
इच्छाओं आशाओं में नहीं है
ज्ञान कभी शब्दों में नहीं है
दिवस रात्रि और सुबहो शाम
शिशिर बसंत आये तमाम
काल ने कर दी पूरी आयु
पर छोड़ न पाये इच्छा यूंही
मोक्ष समीप तो होने को है
ज्ञान काम न आने को है
हे महामना गोविंद को भजिये
भक्ति की महिमा समझिये
अब केवल है एक उपाय
गोविंद नाम से अमृत पाय
ज्ञान बिना जीवन दुखद है
अंत समय में भक्ति सुखद है
बिन भक्ति मोक्ष सहज नहीं है
ज्ञान भक्ति में भेद यही है
वृद्ध ने उन उपदेश को जाना
ज्ञान से बड़ी भक्ति को माना.
भारती दास ✍️






Friday, 10 December 2021

नमन अनेकों जनरल रावत

 न जाने कहां वो वीर गये

सर्वस्व न्योछावर कर गये

आतंकमुक्त कश्मीर थे करने

रहे लक्ष्य अधूरे थे पुराने सपने

किसे पता था छोड़ जायेंगे

सब से वादा तोड़ जायेंगे

वो राष्ट्र पुत्र रूला गये

इस देश को दहला गये

विघ्नों से वे डरते नहीं थे

अपने लिए जीते नहीं थे

कीर्ति उनकी अपार थी

सुख शांति की भरमार थी

हर वक्त साथ रही स्वामिनी

चली स्वर्ग तक वो भामिनी

अतिम सफर पर चले गये

अलविदा सबको कह गये

वो रहेंगे अब यादों में यथावत

नमन अनेकों जनरल रावत.

भारती दास ✍️


Friday, 3 December 2021

निराशा _____ हताश मन की व्यथा

 



नकारात्मक विचारों व भावनाओं के साये से घिरे रहनेवाले लोग ही ज्यादातर निराश दिखाई पड़ते है. आज की पीढ़ी के अधिकतर लोग हताशा भरी परिस्थिति का सामना करते हैं क्योंकि वे व्यवहार कुशल नहीं होते हैं .सामान्य जिन्दगी में भी अपने आपको असहाय महसूस करते हैं .मनोबल कमजोर होता है .अजीब सी उदासी से घिरा जीवन होता है .
        15 से 40 वर्ष के लोग इसी  उहापोह में जीवन व्यतीत करते हैं की हमारा अब कुछ नहीं होगा .वे सिर्फ अपने –आप में ही कमी ढूंढते दिखाई देते हैं. हर कामयाब आदमी से डर लगता है. लम्बे समय तक चलने वाली जद्दोजहद की वजह से मनःस्थिति हताशा में डूब जाती है. किसी भी कार्य को करने के लिए उत्साहित होने के बजाय  निराशाजनक भाव होता है. सही निर्णय लने की क्षमता नहीं रह जाती है. सकारात्मक सोच से दूर होने लगता है. मन हमेशा उदास ही रहता है.
                 निराशा[तनाव]यानि ‘’डिप्रेशन’’एक मानसिक रोग है. इस रोग में आदमी सामान्य चुनौती को भी नहीं स्वीकार कर पाता बल्कि अपना कदम पीछे हटा लेता है. खुशनुमा व्यक्तित्व नहीं रख पाता, डरा-डरा सहमा-सहमा सा माहौल रखता है. "डिप्रेशन"का एक कारण यह भी होता है की nyurotransmitre ठीक ढंग से कम नहीं करते है जिस वजह से निराशा देखने को मिलते है. कुछ अच्छा नहीं लगना, जल्दी थक जाना ये इसके लक्षण होते है. एक कारण यह भी हो सकता है कि जिन्दगी के प्रति सही समझ विकसित नहीं कर पाते है जिससे असफलता मिलती है. धीरे –धीरे अपनी क्षमताओं पर संदेह करने लगते है. एकाग्रता में कमी आने लगती है.
                 अपनी क्षमताओं का सही आकलन करने के लिए सबसे पहले मन को मजबूत बनाना होगा. सकारात्मक सोच के द्वारा अवसाद को मन से दूर भगाना होगा. चिंतन-मनन व अध्यात्मिक अध्ययन के द्वारा विचार शैली को बदलना होगा. स्वाध्याय से सुन्दर विचारों का पोषण मस्तिष्क को मिलेगा.
                 उपासना को नियमित दिनचर्या में शामिल करने से शंकाओं का नाश तथा खुद पे विश्वास बढ़ता है. भगवान के सानिध्य का एहसास होता है. हताशा-निराशा स्वतः नाश होती है. नियमित योग द्वारा भी मनःस्थिति शांत व प्रसन्न होती है. उगते हुए सूरज को नमस्कार करने से मन स्वस्थ व सक्रिय होते हैं.
                   इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए की हमें निराशा क्यों मिले. ईश्वर ने सबको बनाया है. हर किसी में कोई न कोई गुण जरुर दिया है. मुझमे भी कुछ गुण होगा ही, व्यवहार कुशल बनकर लोगों तक पहुंचकर अपना हताशा भगाना चाहिए. जबतक जीवन है हरदिन कुछ सीखने को मिलेगा. अपने को भी तौलते रहना चाहिए ताकि कमी को सुधार सकें. सुन्दर-सुखद जीवन व्यतीत करने के उपाय ढूंढना चाहिए. हँसना ,गाना व खिलखिलाना चाहिए.
                  महाकवि मैथिलीशरण गुप्तजी ने कहा है .........
    "नर हो न निराश करो मन को
    कुछ काम करो ,कुछ काम करो
    जग में रहकर निज नाम करो
    यह जन्म हुआ किस अर्थ कहो
    समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
    कुछ तो उपयुक्त करो तन को
    नर हो न निराश करो मन को."
भारती दास ✍️