Wednesday, 13 October 2021

जन नायक श्री राम

 


आतंक कहे या कथा आसुरी,
अनगिनत थी व्यथा ही पसरी.
मिथिला के मारीच-सुबाहु,
ताड़का से त्रस्त थे ऋषि व राऊ.
खर-दूषण-त्रिशरा असुर थे,
सूपर्णखा से भयभीत प्रचुर थे,
दानवों का नायक था रावण
डर से उसके थर्राता जन-गन .
जनता तो घायल पड़ी थी,
विचारशीलता की कमी बड़ी थी.
राम को आना मजबूरी थी,
जन मानस तो सुप्त पड़ी थी.
सही नीति साहस का साथ,
राम ने की थी राह आवाद.
ऋषि-सत्य भूपति बचे
देश सहित संस्कृति बचे.
आसुरी युद्ध को गति देने,
वनवासी बने थे सुमति देने
सत्ता-राज्य का त्याग दिये थे
सुख-साधन का परित्याग किये ये.
राम का उद्देश्य महान बड़े थे
शपथ-प्राण का आह्वान किये थे
वन-वन भटके जन-जन तारे,
ऋषि-मुनि की दशा सुधारे.
व्यापक-जन अभियान बनाये,
जननायक श्री राम कहाये.
भावनाओं की शक्ति जगाये,
प्रखर-तेजस्वी सेना सजाये.
पत्नी-पीड़ा सहज क्षोभ थी,
समाधान की अमिट सोच थी.
आहुति देने को सब थे तत्पर,
दोनों तरफ ही युद्ध था बर्बर.
असुरता को मरना ही पड़ा,
श्री राम के आगे झुकना ही पड़ा.
उनका ये जीवन संघर्ष
दर्शाता रामराज्य का अर्थ
चैतन्य में भरती पूंज-प्रकाश. 
आज भी राम का त्याग आदर्श.

भारती दास ✍️

Friday, 1 October 2021

वसुधा गुहारती

 

भारती निहारती

पीड़ा से कराहती,

श्रेष्ठवान पुत्र मेरे

क्यों बने स्वार्थी. 

असुरता ये विकृति 

राष्ट्र की ये दुर्गति, 

शौर्यवान पुत्र मेरे 

क्यों बने दुर्मति.

सृष्टि कांपती रही 

दृष्टि जागती रही,

नौजवान पुत्र मेरे 

हुए ना साहसी .  

आस्था दम तोड़ती

श्रद्धा जग छोड़ती,

ज्ञानवान पुत्र मेरे 

हुए ना प्रार्थी .

संस्कृति पुकारती 

स्वाभिमान झांकती, 

समर्थवान पुत्र मेरे 

हो गए आलसी.

व्यथा कथा बखानती 

रास्ता बुहारती,

विवेकवान पुत्र मेरे

हुए ना शुभार्थी. 

शुभता संवारती 

ममता को वारती,

ओजवान पुत्र मेरे 

हो गए सुखार्थी.  

कृतार्थ भाव मानती

प्रखरता निखारती,

जागो मेरे सारे पुत्र

वसुधा गुहारती .

भारती दास ✍️