मृदुल हास से विमल आस से
स्वप्न सुनहरे सजाने चली है
संघर्ष अनंत था श्रांत वर्ष था
हर्ष का दीप जलाने चली है.....
मौन मनन करती थी हरपल
पाठ गहन पढती थी पलपल
पर अधीर विचलित होती थीं
करुण नयन चिंतित होती थी
अनंत फ़िक्र सब दूर हटा कर
मृदु हृदय हरसाने चली है
स्वप्न सुनहरे सजाने चली है.....
चिकित्सा के विस्तृत आंगन में
मुदित मगन पुलकित हो मन में
नव अवसर को अंक लगाकर
अरमानों के पंख लगाकर
खुशी-खुशी से कर्म के पथ पर
निज कर्तव्य निभाने चली है
स्वप्न सुनहरे सजाने चली है.....
मानवता की सेवा करना
स्नेह सरलता सदा ही रखना
कदमों में यश और वैभव हो
चिर सुरभित जीवन का पथ हो
नई उमंग से उत्साहित हो
मधुर अधर मुस्काने चली है
स्वप्न सुनहरे सजाने चली है.....
भारती दास ✍️
बधाई इस सृजन हेतु !!स्वप्न साकार हो !!
ReplyDeleteधन्यवाद अनुपमा जी
Deleteबहुत सुंदर भाव ।
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी
Deleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति भारती जी ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मीना जी
Deleteबहुत अच्छी रचना रचना | सुन्दर भाव |
ReplyDeleteधन्यवाद सर
ReplyDeleteमृदुल हास से विमल आस से
ReplyDeleteस्वप्न सुनहरे सजाने चली है
संघर्ष अनंत था श्रांत वर्ष था
हर्ष का दीप जलाने चली है.....
मौन मनन करती थी हरपल
पाठ गहन पढती थी पलपल
पर अधीर विचलित होती थीं
करुण नयन चिंतित होती थी
अनंत फ़िक्र सब दूर हटा कर
मृदु हृदय हरसाने चली है
स्वप्न सुनहरे सजाने चली है.....
वाह! अद्भुत भाव और विलक्षण शब्द चयन। मन मोह लिया इन पंक्तियों ने। बधाई और आभार!!!
धन्यवाद सर
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा और खूबसूरत रचना !
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मनीषा जी
Deleteवाह बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteचिकित्सा के आंगन में खूब सेवा करें.. खूब नाम कमायें...
ढेरों शुभकामनाएं.
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धन्यवाद रोहितास जी
Deleteबहुत सुंदर शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
Deleteबहुत सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
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