अब पिता जी नही है साथ
सहेज रखी है स्नेह सौगात
गम कड़वे अवसाद भूलाकर
अपने सारे दर्द छुपाकर
करते थे परवाह सदा ही
दिखाते हरदम राह खुदा सी
विधि ने छीना पिता की साया
आठ वर्ष होने को आया
मन कांपा था दिल दहला था
उनके बिना जब दिवस ढला था
दिन अनेकों गुजर गये हैं
यादें हृदय में ठहर गये हैं
क्लेश दंश सब मोह को तजकर
छोड़ चले सबको पृथ्वी पर
शाश्वत सत्य में लीन हुये थे
पुनीत गंगा में विलीन हुये थे
गर्वित हो झुक जाता शीश
जैसे पिताजी देते आशीष
आंखें बहकर थक जाती है
दृष्टि फलक पर टिक जाती है.
भारती दास ✍️
पिताजी के प्रति सुन्दर भावों भरी रचना। पिताजी को हार्दिक नमन 🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद जिज्ञासा जी
ReplyDeleteपिताजी की स्मृतियों में डूबी बेटी की हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावसिक्त सृजन ।
धन्यवाद मीना जी
ReplyDeleteमन कांपा था दिल दहला था
ReplyDeleteउनके बिना जब दिवस ढला था
दिन अनेकों गुजर गये हैं
यादें हृदय में ठहर गये हैं
यादें ही रह जाती हैं उम्र भर पिता के बगैर मन ढ़ाँढस बंधाना बहुत मुश्किल होता है...
बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन।
धन्यवाद सुधा जी
ReplyDeleteपिता का साया जब तक रहता है ... इंसान कई बार समझ नहीं पाता उस बरगद को ...
ReplyDeleteबाद में वही यादें रह जाती हैं ...
धन्यवाद सर
ReplyDeleteमन भर आया पिता की स्मृतियों में भीगा हृदयस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बहुत मार्मिक रचना
ReplyDeleteधन्यवाद सर
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